-‘फासीवाद के दौर में जनवाद का संघर्ष’ विषय पर हुई संगोष्ठी
अयोध्या। जनवादी लेखक संघ और जनमोर्चा दैनिक के तत्त्वावधान में ‘फासीवाद के दौर में जनवाद का संघर्ष’ विषय एक संगोष्ठी का आयोजन जनमोर्चा सभागार में किया गया। इस अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए सर्वहारा जन मोर्चा के संयोजक मुकेश असीम ने कहा कि वैश्विक स्तर पर नवजागरण के बाद जनवादी मूल्यों से पूरी दुनिया ने एक मानवीय और लोकतांत्रिक व्यवस्था को अर्जित किया था। आज जैसे उन मूल्यों के विरुद्ध एक युद्ध छिड़ गया है। जिन प्रतिगामी ऐतिहासिक तथ्यों को नकारने की ज़रूरत थी आज उनको गौरवान्वित किया जा रहा है।
जिन उत्पीड़क शक्तियों को जनवादी ताकतों से पीछे धकेला गया था आज वे पुनः हमलावर हो चुकी हैं। आज हम साफ़ देख सकते हैं कि फासिस्ट सत्ताओं का पूँजीवादी संस्थाओं से गहरा गठजोड़ हो चुका है। आज विश्व में फ़ासीवादी सत्ताओं का एक व्यापक ध्रुवीकरण बनता हुआ दिखता है। हमको यह समझना चाहिए कि प्रतिगामी विचारों को इतना महत्व पूंजीवाद की तरफ़ से क्यों और कैसे प्राप्त हुआ।
पूँजीवादी होड़ में तकनीक के बढ़ने से बेरोजगारी बढ़ती है और प्रोडक्टिव कैपिटल घटने से सरप्लस वैल्यू कम होती है। पूंजीवाद ऊंचनीच को कम नहीं कर रहा बल्कि अमीर वर्ग की सेवा करने वाले वर्ग को गढ़ रहा है, जिसके पास श्रम की गरिमा नहीं होती। स्टेट मोनोपॉली कॉर्पोरेट का पैट्रोनाइज़र बन गया है। शोषण के एक उपकरण के रूप में छोटे स्वामित्व धारकों को उनकी संपत्ति से बेदख़ल किया जा रहा है। फ़ासीवाद हर देश में अपने अनुकूल प्रतिगामी विचारधारा को चुन लेता है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कवि स्वप्निल श्रीवास्तव ने कहा कि इस समय की विडंबना ही यही है कि हमारे सामने हमेशा सवाल बने रहते हैं। उन्होंने सत्ता के चरित्र के बारे में बताते हुए कहा कि तानाशाही सत्ता धर्म और संस्कृति को अपने निहित एजेंडे की पूर्ति के लिए इस्तेमाल करती है। उनके अनुसार केवल प्रगतिशील और जनतान्त्रिक सोच से ही इन समस्याओं का सामना किया जा सकता है।
इससे पूर्व अपना वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए वरिष्ठ आलोचक प्रो. रघुवंशमणि ने कहा कि फासीवाद अधिनायकवाद से अलग है, ख़ासकर इस बात में कि इसमें एक वर्ग सत्ता पर क़ाबिज़ हो जाता है जो अपने अनुरूप चीज़ों को चलाता है। फ़ासीवाद यह मानता है कि विकास के लिए विरोधियों का दमन आवश्यक है। उन्होंने कहा कि प्रचार तंत्र की प्रणाली फासीवाद में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। फासीवाद प्राचीन इतिहास का मनमाने तरीके से प्रयोग करता है लेकिन साथ ही वह उन्नत तकनीक का भी इस्तेमाल करता है। आज फासीवाद ने अपना रूप बदल लिया है और वह सांविधानिक संस्थाओं को कमजोर कर अपना काम कर रहा है। आज पूंजीवाद का पूरा समर्थन स्टेट द्वारा किया गया है। इस मुश्किल समय में फासीवाद की मिथ्या चेतनाओं से सामने उपस्थित होने वाली चुनौतियों का मुकाबला जनवादी चेतना से ही किया जाना संभव है। जनता के भीतर वास्तविक सूचनाओं और तथ्यों के प्रसार से ही इस काम को किया जा सकता है और इसमें बुद्धिजीवियों की बड़ी भूमिका है।
इस मौके पर बोलते हुए जनमोर्चा की संपादक डॉ. सुमन गुप्ता ने कहा कि जिस समय में हम जी रहे हैं उसकी विडंबनाओं को किसी वाद में सीमित करके नहीं देखा जा सकता है। यदि देखें तो आज ज़मीन पर कोई आंदोलन नहीं हो रहा है। यही कारण है कि आज प्रगतिशील विचारधारा के लिए सर्वाइवल का संकट सामने उपस्थित हो गया है। उन्होंने कहा कि फासीवाद को कुछ लक्षणों तक सीमित करके नहीं देखा जा सकता और उसके तत्त्व समूची व्यापकता में और लंबे अरसे से भारतीय समाज में मौजूद हैं।
चिंतक-कवि और लेखक डॉ. आर डी आनंद ने कहा कि बुर्जुआ वर्ग के नेतृत्व में राज्य एक जादूगर की तरह असत्य को सत्य की तरह दिखाने की कलात्मक कोशिश करता है। फासीवाद सांप्रदायिक नफरत, नस्लीय घृणा और उग्र राष्ट्रवाद पर आधारित एक घोर प्रतिक्रियावादी राजनीतिक मुहिम व आंदोलन क्रिएट करता है। जब फासीवाद सत्तारुढ़ हो जाता है तब तानाशाही का जन्म होता है। फासीवाद वित्तीय पूंजी के सबसे लुटेरे, मानवदोही, निरंकुश एवं युद्धोन्मादी तत्वों के खुले आतंकी शासन का एक दूसरा नाम है। फासीवाद का सबसे विकृत प्रभाव यह है कि व्यक्ति व समूह अपने ही हितों के विरुद्ध उन्मादी रूप से क्रियाशील रहता है।
कार्यक्रम में विषय-प्रवर्तन करते हुए कवि-प्राध्यापक डॉ. विशाल श्रीवास्तव ने कहा कि फासीवाद की उपस्थिति से हम बेखबर दिख सकते हैं लेकिन उसके स्पष्ट लक्षण हमारे चारों ओर दिखते हैं। संस्कृति, परंपरा और इतिहास का मनमाफिक इस्तेमाल और राज्य को नागरिकों से भी सर्वोच्च और सवालों से परे मान लिया जाना इसका एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। प्रसिद्ध चिंतक जिजेक को उद्धरित करते हुए उन्होंने ‘सॉफ्ट फासीवाद’ की चर्चा यह कहते हुए की, कि आज इसका सीधा गठजोड़ पूंजीवाद से हो चुका है और राज्य इसपर एक आभासी नियंत्रण प्रदर्शित करता है। आज फासीवाद भले हिटलर के नाजीवाद की तरह क्रूर नहीं दिखता लेकिन उसने अपने पंजे और अधिक मजबूत कर लिए हैं। उनके अनुसार तार्किक जनवादी सोच और यथार्थ का प्रसार ही इससे मोर्चा ले पाने का एकमात्र रास्ता है।
धन्यवाद ज्ञापन करते हुए संयोजक सत्यभान सिंह जनवादी ने कहा कि लोकतान्त्रिक मूल्यों में विश्वास रखते हुए ही हम फासीवादी ताकतों का सामना कर सकते हैं। संगोष्टी का संचालन जनवादी लेखक संघ, फ़ैज़ाबाद के कार्यकारी सचिव और कोषाध्यक्ष मुजम्मिल फिदा ने किया। कार्यक्रम में जनवादी लेखक संघ के अध्यक्ष मो. ज़फ़र, कवि-प्राध्यापक डॉ प्रदीप सिंह, डॉ नीरज सिन्हा ‘नीर’, पूजा श्रीवास्तव, मांडवी सिंह, मो आफाक, अखिलेश सिंह, अनुश्री यादव, आर एन कबीर, यशवंत मौर्य, विष्णु प्रताप सिंह, राम सुरेश शास्त्री, ब्रजेश कुमार, विनीत, ओम प्रकाश, पूनम कुमारी, सुरेन्द्र कुमार, महावीर पाल सहित शहर के साहित्य-संस्कृति कर्मी और बुद्धिजीवी उपस्थित रहे।