प्रश्नचिन्ह है लोकतंत्र पर नेताओं की भाषा…

by Next Khabar Team
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अवध साहित्य संगम की हुई गोष्ठी

फैजाबाद। अवध साहित्य संगम की मासिक गोष्ठी संस्था के वजीरगंज कार्यालय पर सम्पन्न हुई। अध्यक्षता ब्रहा्रदेव मधुकर ने तथा संचालन रामानन्द सागर ने किया। मुख्य अतिथि रहे पं0 देव प्रसाद पाण्डेय। कविराज ने वाणी वन्दना की- हंस की सवारी करि मोर महतारी धावा। हमरी गोहारी लगावा जनि देरी मा। नाते पाक सागर ने पेश किया। रखते हैं अपने दिल में जो अरमाने मुस्तफा, छूटे न उनके हाथ से दमाने मुस्तफा। अजयवीर ने गजल पढ़ी-कभी यह रूठ जाती है कभी यह मुस्कुराती है नजाने क्यूं हमें यह जिन्दगी इतना सताती है। अम्बेडकरनगर से पधारे सुभाष चैरसिया ने कहा कभी चिल्मन से जो देखा तो उनपे प्यार आया था बयां कैसे करूं उसको जो पहली बार आया था। रोहित वेद राजपाल ने कहा कि अपने दिल का हाल बताना भी तो बहुत जरूरी है। साथ में रहकर हाथ छोड़ाना यह कैसी मजबूरी है। अवधेष पाल ने कहा- ऊपर से जो हंसता हूँ मुस्कान हमारी नकली है अन्दर से अपनी हालत भी औरों जैसी पतली है। बाराबंकी से पधारे आचार्य संतोष अवस्थी ने दोहा पढ़ा, नाम रहे संसार में जब तक सूरज चंद जन्म जगत सादर नमन भारतेन्दु हरिश्चन्द्र। सुलतानपुर से पधारे देशराज क्रांति ने लोकगीत पढ़ा। आयी बरखा कै ऋतु बा सुहानी पिया करत्या किसानी पिया न। जमशेद अहमद ने कहा- जो मंजिल पर बढ़े हैं वह कदम मेरे ही हैं यारो, मगर रफ्तार पैरों की तुम्हारे हौसलों सै है। अमित साहिल ने कहा प्यार आँखों में लिये यूं रूठ कर मत जाईये दिल में चाहत है अगर होठों पर उसको लाईये। अम्बेडकरनगर से पधारे दुर्गेश श्रीवास्तव निर्मीक ने व्यंग किया- प्रश्नचिन्ह है लोकतंत्र पर नेताओं की भाषा। लूट खजाना भरने की है मात्र एक अभिलाशा। मिल्कीपुर के अनुजेन्द्र अनुज ने कहा राष्ट्र की अखण्डता को करते हों खण्ड-खण्ड क्या तुम्हारीं आँखों का मर गया पानी है। बीकापुर के कविराज ने छन्छ पढ़ा- हिन्दी के अकाश में देवि दिव्य प्रकाश हिन्दी को सर्वथा उजागर बनाइदे। समीर बशर ने कहा- बड़े खुश किस्म हैं खुशियों से नाता जोड़ लेते हैं। गरीबों की वह इज्जत आबरू को ओढ़ लेते हैं। मुजम्मिल फिदा ने कहा-तुम वक्त पर आ जावोगे सोचा भी नहीं था। तुमसे हमारा खून का रिश्ता भी नहीं था। कवियत्री कात्यायिनी ने गजल पढ़ी। चांदनी रात में तारों को चलते देखा है किसी के प्यार में दिल को मचलते देखा है। सत्य नारायण ने आतुकान्त पढ़ा। गरीबों की झोपड़ी में चिराग भी नहीं मयस्सर मगर नदियों में असंख्य दीपक जलाते है। शिव प्रसाद गुप्त शिवम् ने मुक्तक पढ़ा। हमसे अधिक शक्ति है किसमें, हमसे अधिक भक्ति है किसमें। अंजनी कुमार शेष ने हंसाया। जनम दिन कै तुहका बधाई कन्हैया। कान यहरी करो कुछ बताई कन्हैया पेट्रोल के दाम रोजे बढ़त है सोचित है सइकिल चलायी कन्हैया। आनन्द शक्ति ने पढ़ा- रक्षार्थ धर्म जंग का ऐलान कीजिए, गंगा व गीता गाय का सम्मान कीजिए। सैय्यद असद ने सुनाया-हादसा वक्त की कमान में है। एक लरजा सा मेरी जान में है। दिल अवधपुरी ने सुनाया- मिल गयी उस आँख से जिसकी भी आँख बेखुदी में उम्रभर बहका किया। रामानन्द सागर ने कहा-कुछ यूं भी जीने की आशा करते हैं कूड़े में जिन्दगी तलाशा करते हैं। ब्रहा्रदेव मधुकर ने छनद पढ़ा-करत-करत काम चिचुक गये हैं जाम, दिन रात है भिड़ान खेती और बारी मा। इनके अलावा अरविन्द आजाद, वाहिद अली अजय मौर्या आदि भी रहे।

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