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पर्यावरण का मानव के स्वास्थ्य से अटूट संबंध: प्रो. आलोक धवन

करेंट इश्यूज आॅफ इन्वायरमेंटल हेल्थ, क्लाइमेट चेन्ज एण्ड इट्स मैनेजमेन्ट विषय पर नेशनल कांफ्रेन्स का शुभारम्भ

फैजाबाद। डाॅ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग एवं पर्यावरण जीव विज्ञान अकादमी के संयुक्त तत्वाधान में संत कबीर सभागार में करेंट इश्यूज आॅफ इन्वायरमेंटल हेल्थ, क्लाइमेट चेन्ज एण्ड इट्स मैनेजमेन्ट (एन0सी0ई0सी0एम0-2018) विषय पर दो दिवसीय नेशनल कांफ्रेन्स का शुभारम्भ किया गया। कांफ्रेन्स में मुख्य अतिथि प्रो0 आलोक धवन, निदेशक, भारतीय विष संस्थान, लखनऊ एवं विशिष्ट अतिथि डाॅ0 एस0जे0एस0फ्लोरा, निदेशक, एन0आई0पी0आर, रायबरेली रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 मनोज दीक्षित ने की।
कांफ्रेन्स को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि प्रो0 आलोक धवन, निदेशक, भारतीय विष संस्थान, लखनऊ ने कहा कि पर्यावरण हमारे जीवन का अभिन्न अंग है। इसे बचाये रखना आवश्यक हैं। उन्होंने बताया कि पर्यावरण का मानव के स्वास्थ्य से अटूट संबंध है। पृथ्वी पर लाखों प्रजातियां है और मनुष्य ऐसा प्राणी जिसकी वजह से उनमें से पर्यावरण संतुलन बिगड़ता हैं। आज जरूरत है कि पर्यावरण को संगठित किया जाये जिससे जैव विविधता को संरक्षित किया जा सके।
विशिष्ट अतिथि डाॅ0 एस0जे0एस0फ्लोरा, निदेशक, एन0आई0पी0आर, रायबरेली ने कहा कि स्वच्छता अभियान का अर्थ केवल शौचालय और सड़कों की साफ-सफाई नहीं है बल्कि अपने आस-पास वातावरण को हरा-भरा बनाये रखना भी है, उन्होंने पर्यावरण में हो रहे बदलाव के विभिन्न पहलुओं से लोगों को अवगत कराया। आर्सेनिक जहर से होने वाली बीमारियों एवं उसके उपचार के बारे में डाॅ0 फ्लोरा ने कहा कि 90 मिलियन लोग आर्सेंनिक जहर से पीड़ित है जिसका संक्रमण प्रदूषित भूजल की वजह से होता है। इसके इलाज हेतु अभी तक कोई विशेष दवा उपलब्ध नहीं है, अभी इस दिशा में शोध कार्य किया जा रहा है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 मनोज दीक्षित ने कहा कि पर्यावरण कोई ऐसा विषय नही है जिसे किसी प्रयोगशाला में समझा जा सके। आज ढेरों आपदायें एक साथ आ रही है। जिनका हमारे पास कोई प्रत्युत्तर नहीं है लेकिन ऐसा भी नहीं है कि हम उसके कारणों से अंजान है। प्रो0 दीक्षित ने कहा कि मानव एक स्वार्थी प्राणी है जो अत्याधुनिक मशीनों से सारी सुविधाएं ले रहा है जबकि इन मशीनों के प्रयोग से पर्यावरण पर दुष्प्रभाव भी पड़ रहा है। कुलपति ने उत्तर प्रदेश के पर्यावरण पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि प्रदेश में हरित आवरण बहुत सीमित है। उत्तराखण्ड के अलग होने के पश्चात प्रदेश के वन संपदा में बड़ी मात्रा में कमी हो गयी है। प्रदेश में वन संपदा व हरियाली बढ़ाने के सुनियोजित तरीके से वृहद स्तर पर सघन वृक्षा रोपण की जरूरत है। दो दिवसीय नेशनल कांफ्रेन्स के प्रथम दिन दी एकेडमी आॅफ इन्वायरमेंटल बायोलाॅजी अवार्ड से डाॅ0 एस0 जे0 फ्लोरा, डाॅ0 देबाजीत शर्मा, डाॅ0 जे0पी0 शुक्ला, प्रो0 जसवंत सिंह, प्रो0 एच0एस0 श्रीवास्तव, प्रो0 जी0एस0 शुक्ला, प्रो0 सी0पी0एम0 त्रिपाठी, डाॅ0 आकृति श्रीवास्तव, डाॅ0 योगेश्वर शुक्ला, प्रो0 ए0के0 चैबे, डाॅ0 श्यामल चन्द्र बर्मन, प्रो0 पी0डब्ल्यू राम टेके, प्रो0 के0वी0 शास्त्री एवं डाॅ0 पूनम गोस्वामी को सम्मानित किया गया। नेशनल कांफ्रेन्स में प्रथम दिन तीन तकनीकी सत्र आयोजित किये गये जिसमें सौ से अधिक शोधार्थी अपने शोध-पत्र प्रस्तुत किये।
इस अवसर पर कुलसचिव प्रो0 एस0एन0 शुक्ला, परीक्षा नियंत्रक प्रो0 एम0पी0 सिंह, प्रो0 आर0एल0 सिंह, प्रो0 आर0के0 तिवारी, प्रो0 एस0के0 गर्ग, मीडिया प्रभारी प्रो0 के0के0 वर्मा, प्रो0 एस0के0 रायजादा, प्रो0 राजीव गौड़, प्रो0 फारूख जमाल, डाॅ0 बी प्रसाद, डाॅ0 विनोद कुमार चौधरी, रूद्र प्रताप सिंह, डाॅ0 मणिकांत त्रिपाठी सहित बडी संख्या में शिक्षक, शोधार्थी एवं छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।

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