सिंधी-हिंदी के मध्य आदान-प्रदान पर हुआ विचार विमर्श
अयोध्या । उ.प्र.सिंधी अकादमी और अ.भा.साहित्य परिषद्, उ.प्र इकाई के संयुक्त तत्वावधान में अयोध्या में दो दिनों तक सिंधी-हिंदी के मध्य आदान-प्रदान पर उनके साहित्य, समाज व संस्कृति के संदर्भ में हुए विमर्श में अनेक महत्वपूर्ण तथ्य उभरकर आए।जिसके निष्कर्ष में कहा गया कि अभी इसका और गहराई से अध्ययन किया जाय कि सिंधी और हिंदी ने एक दूसरे से क्या लिया दिया।
अध्यक्षता अकादमी उपाध्यक्ष नानकचंद्र लखमानी और साहित्य परिषद् राष्ट्रीय महामंत्री ऋषि कुमार ने की लखमानी ने कहा कि सिंधी हिंदी में शक्कर की तरह इस भाँति घुल मिल गया है कि भाषा,रहन सहन,खानपान पहनावे में दोनों को अलग नहीं किया जा सकता।ऋषि कुमार ने इसको तस्दीक करते हुए कहा कि हिंदी ने सिंधी से प्रखर राष्ट्र वाद,पुरुषार्थ, व्यापार के विशेष गुण सीखे।किंतु संचालन कर रहे परिषद् के प्रदेश महामंत्री पवनपुत्र बादल ने पीड़ा व्यक्त की सिंधी युवा को सिंधी विरासत ठीक से पहुँचाने में कहीं न कहीं चूक हो रही है तो अकादमी सदस्य ज्ञाप्रटे सरल ने कहा आदान प्रदान में कुछ छूट जाता है तो जुड़ भी जाता है उन्होंनें सिंधी भाषी हिंदी सेवी पत्रकारों की चर्चा की।
सिंधी विद्वान सुंदर गोहरानी ने संस्कृति में आदान प्रदान को रेखांकित करते हुए कहा सिंधी ने हिंदी से साड़ी पहनना सीखा और हिंदी ने सिंधी से सलवार सूट।
अकादमी सदस्य लीलाराम सचदेवा ने बताया कि वाराणसी की संस्कृति में सिंधी रचबस कर राजा बनारस हो गए हैं तो विश्व प्रकाश रूपन ने कहा वे ऐसी सुंदर अवधी बोलते हैं उनकी मातृभाषा को उनके लहजे से पकड़ पाना कठिन है। डॉ.सत्यप्रकाश त्रिपाठी ने बताया कि कुरान का पहला अनुवाद सिंधी मे हुआ था। अकादमी सदस्यों आगरा के हेमंत भोजवानी, प्रयागराज के विजय पुर्सवानी ,वाराणसी की शोधक्षात्रा डॉली हीरानी सहित अनेकों ने सिंधी हिंदी आदान प्रदान के विषय पर पूर्ण मनोयोग से विमर्श किया।