विवेक सृष्टि में मनाया गया स्वामी विवेकानन्द जयन्ती समारोह
अयोध्या। स्वामी विवेकानन्द का स्पष्ट मत है कि यदि आप जीवन के मूल स्रोत से नहीं जुड़े हैं, तो बूढ़े बच्चे ही हैं। अभ्यास की निरंतरता से ही अपने लक्ष्य प्राप्ति तक पहुंचा जा सकता है| 30 वर्ष पूर्व श्रीअयोध्याधाम में स्वामी जी के व्यक्ति निर्माण के अधिष्ठान का संकल्प लेकर प्रारम्भ किया गया श्याम साधनालय प्रतिदिन की साधना के पर्याय के रूप में स्थापित होकर विवेक सृष्टि की भव्य संकल्पना के साथ समाज को समर्पित है| ये बातें विवेक सृष्टि के अध्यक्ष योगाचार्य डॉ चैतन्य ने विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी शाखा- अयोध्या एवं विवेक सृष्टि के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित विवेकानन्द जयन्ती समारोह में कहीं। उन्होंने कहा कि एक अच्छी दिनचर्या का अभाव भयंकर बीमारियों का मूल है| अभ्यास छोड़कर कोई प्रगति न समझें, मनुष्य जीवन की बाधाएं नित्य अभ्यास न करना ही है| हमारे जीवन में महानतम लक्ष्य निर्धारित कर उसके प्रति समर्पित होकर कार्य करना ही श्रेयस्कर है।
इस अवसर पर तिवारी मन्दिर के महन्त गिरीशपति त्रिपाठी ने कहा कि मैं जब भी श्याम साधानालय से लेकर विवेक सृष्टि की अभ्यास कक्षाओं में आया इसे उत्तरोत्तर उन्नत केन्द्र के रूप में पाया| भारत को सपेरों एवं मदारियों के देश के रूप में दुनिया में प्रचार किया गया परन्तु दुनिया को रास्ता दिखाने का मार्ग भारत में ही है| स्वामी विवेकानन्द के भारत की ओर संसार देख रहा है| हमारी वर्तमान शिक्षा प्रणाली ने अपनी संस्कृति पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करना सिखा दिया है, आध्यात्म के क्षेत्र में- भावनात्मक एवं संस्कृति के क्षेत्र में हम पिछड़ते चले जा रहे हैं| 1893 में स्वामी जी ने भारतीय आध्यात्म के साथ ही विकास की सच्ची अवधारणा प्रस्तुत की, जिसका सारा संसार आज भी कायल है|
इस अवसर पर विवेकानन्द केन्द्र कन्याकुमारी शाखा अयोध्या के संयोजक अवध विश्वविद्यालय के गणित विभाग के आचार्य डॉ सन्तशरण मिश्र ने कहा कि स्वामी विवेकानद ने ज्ञान के स्रोत को समयानुकूल बनाकर आश्रमों की सीमा से बाहर निकालकर झोपड़ी तक ले चलने के सिद्धांत के सफलतापूर्वक प्रतिपादित किया| आत्मनो मोक्षर्थं जगद्हिताय च- आज समय का मूल सिद्धांत है| स्वामी विवेकानन्द आधुनिक युग के गौतम बुद्ध, आदिशंकराचार्य, रामकृष्ण परमहंस एवं व्यावहारिक वेदांत के सिद्ध वैज्ञानिक हैं| वे प्राचीनता के साथ नवीनता के सेतु हैं| भारतीय मनीषा एवं आध्यात्मिक चेतना को विश्वपटल पर पहचान दिलाकर भारत के प्रति हेय दृष्टि के विचारों में परिवर्तन के माध्यम हैं- स्वामी विवेकानन्द| उनके विचारों को अपने जीवन की दैनन्दिन गतिविधियों का आधार बनाकर कर्तव्यरत होना हमें श्रेष्ठता प्रदान करेगा।
कार्यक्रम का संचालन कर रहे सेवा के सचिव ई. रवि तिवारी ने कहा कि अब जब समस्त संसार भारत के अध्यात्म की ओर आकर्षित हो रहा है ऐसे समय में यह बात निश्चय ही स्वयंसिद्ध है कि भारत की आध्यात्मिक शरण में ही विश्व शान्ति एवं कल्याण का मार्ग निहित है। विवेक सृष्टि निरंतर समाज में देशभक्ति एवं राष्ट्र प्रथम के भाव को स्थापित करने के महान संकल्प की ओर सतत सक्रिय है| भारत में कालचक्र परिवर्तन का समय है, सारी दुनिया की दृष्टि भारत की ओर है और भारत की अयोध्या की ओर| हमें अपने महान उत्तरदायित्व का निर्वहन करना होगा| सारे संसार को आध्यात्म एवं विकास का मॉडल देना होगा| समाज के कम से कम 1 लाख लोगों से प्रत्यक्ष सहयोग लेकर स्वामी विवेकानन्द की भव्य मूर्ति एवं आधुनिकतम स्तर का ध्यान कक्ष निर्माण का शिलान्यास हो चुका है, हम समाज के प्रत्येक वर्ग से आह्वान करते हैं कि आगे आयें एवं स्वामी जी के विचारों को घर-घर पहुंचाकर आधुनिक भारत निर्माण के संकल्प को सिद्धि प्रदान करें|
स्वर सुरभि संस्थान की निदेशक डॉ सुरभि पाल जी के निर्देशन में प्रणय रायतानी, विकास पाण्डेय, हर्ष गुप्ता, अखिलेश, सौम्य बरनवाल, रूही बेगम, अर्चना कुमारी आदि संगीत साधकों की संगीतमय प्रस्तुति ने उपस्थित जनमानस को मन्त्रमुग्ध कर दिया।
इस अवसर पर विवेक सृष्टि के कोषाध्यक्ष रामकुमार गुप्त, सचिव राजेश मन्ध्यान, गीता अनुसन्धान प्रकल्प के संयोजक सुदीप तिवारी, राजापाल सिंह, पवन पाण्डेय, ईश्वर चन्द्र तिवारी, विजय बहादुर सिंह, डॉ आकाश मिश्र, सहजराम यादव, सुशील मिश्र, राधेश्याम त्यागी, ज्ञानेंद्र श्रीवास्तव, प्रवीण सिंह, रामलखन यादव, विजय कुमार सिंह बंटी, विवेक शुक्ला, दीपक शुक्ला, मानस तिवारी, अच्छन तिवारी, वासुदेव मौर्या, बबलू खान, सिद्धार्थ सिंह, अनूप पाण्डेय, दिव्य प्रकाश तिवारी, डॉ बृजेश पासवान, वीरेश चंद्र वर्मा, तिलकराम मौर्य, राघवेन्द्र तिवारी, धर्मपाल पाण्डेय, भगवान दास जी, श्रीमती स्मृता तिवारी, सीमा तिवारी, वन्दना द्विवेदी, मीरा वर्मा, सीमा सिंह, आशा तिवारी, ममता श्रीवास्तवा, रीता मिश्रा इत्यादि साधकगण एंव गणमान्यजन उपस्थित रहे।