-पुस्तकालय के लिए भेंट की पुस्तकें
अयोध्या। साहित्य मनुष्य की आत्मा का ऐतिहासिक दस्तावेज होता है आत्मा अव्यक्त और अदृश्य है तथा इसे अनुभव के आधार पर जाना जा सकता है साहित्यकार शब्दों के माध्यम सेअव्यक्त को व्यक्त करने की कोशिश करता है जहां एक तरफ तमाम तरह के विमर्श के नाम पर यथार्थ का हवाला देते हुए प्रतिगामी साहित्य रचा जा रहा है आरोप-प्रत्यारोप और गाली गलौज को साहित्य की कोटि में रखने का कुत्सित प्रयास चल रहा है वही परमात्म चिंतन में निमग्न डॉ हरि नाथ मिश्र का सृजन मानवीय मूल्यों और संवेदना ओं को स्वर देने का प्रयास है। श्री रामचरित बखान श्री कृष्ण चरित बखानद्य गीता सार धूप और छांव एक झलक जिंदगी की जैसी कृतियां भारतीय सांस्कृतिक चेतना के पुनर्जागरण का उद्घोष है सोशल मीडिया के माध्यम से भी इनकी अनुगूंज भारत और हिंदी से प्रेम रखने वाले अनेक देशों में सुनाई दे रही है। आभासी मंच के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाठक और श्रोता डॉक्टर हरिनाथ मिश्र की रचनाओं द्वारा राम रूपी राष्ट्र और सीता रूपी संस्कृत से परिचित हो रहे हैं। भगवान राम की जन्म स्थली अयोध्या डॉ0 मिश्र की कर्म स्थली रही है अंग्रेजी विभाग अध्यक्ष के रूप में साकेत महाविद्यालय से सेवानिवृत्त होने के पश्चात आप अनवरत का विसर्जन करते हुए राष्ट्रभाषा की श्रीवृद्धि कर रहे हैं। उनका मानना है कि पुस्तकालय वह देहरी है जहां रखा गया साहित्य रूपी दीपक अध्ययनरत विद्यार्थियों अर्थात भविष्य के नागरिकों को दीर्घकाल तक आलोकित करेगा इस सोच को क्रियान्वित करने के उद्देश्य महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ अभय कुमार सिंह द्वारा भावपूर्ण आमंत्रण देकर डॉ. मिश्र की कृतियों को पुस्तकालय में सम्मान स्थान देना एक उत्तम पहल है हिंदी के विद्यार्थियों के अलावा साहित्य में अभिरुचि रखने वाले लोगों को डॉ हरिनाथ मिश्र का साहित्य सुलभ होगा।
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