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आत्मघात जागरूकता कार्यशाला में डा आलोक मनदर्शन

ग्लानि व हताशा है, आत्मघाती मनोदशा : डॉ. आलोक मनदर्शन

-आत्महत्या के विचार का करें ससमय उपचार, छात्र आत्महत्या बन गयी है महामारी


अयोध्या। मनोस्वास्थ्य जागरूकता का अभाव,परिस्थितियों से अनुकूलन की क्षमता में कमी तथा दुनिया को केवल काले और सफेद में देखने की मनोवृत्ति तथा अवसाद व अन्य मनोरोग, अति अपेक्षावादी माहौल,अकादमिक व कैरियर प्रेशर,लव लाइफ इवेंट,नशा व जुआ आदि युवा आत्मघात के मुख्य कारक पहलू है।

यह बातें यश स्किल्स सभागार में विश्व आत्महत्या- रोधी दिवस-10 सितंबर पर आयोजित आत्मघात जागरूकता कार्यशाला में डा आलोक मनदर्शन ने कहीं। डा मनदर्शन के अनुसार आत्मग्लानि व हताशा की पराकाष्ठा में आत्मघात के विचार पहले अक्रिय रूप में आते है, जिसमे किसी दुर्घटना या बीमारी आदि से जीवन समाप्त हो जाने की रुग्ण प्रत्याशा होती है,पर कुछ समय पश्चात सुसाइड की इच्छा सक्रियरुप में आत्मघाती कृत्य की तरफ मादक खिचाव पैदा कर देती है।

इस खिचाव को आत्मघाती मनोअगवापन कहा जाता है नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की हालिया रिपोर्ट के अनुसार भारत में कुल आत्महत्या की सालाना वृद्धि दर 2 प्रतिशत है, जबकि छात्र आत्महत्या के आंकड़े 4 प्रतिशत वृद्धि दिखा रहें हैँ । 2022 में देश में कुल 1.70 लाख से ज्यादा लोगों ने आत्महत्या की।

सलाह : आत्महत्या के कृत्य से बचाने का फर्स्ट एड करीबी मित्रों व परिजनों की सूझ बूझ ही होती है। आत्मघाती कृत्य पर अमादा व्यक्ति कुछ परोक्ष व बारीक अभिव्यक्ति शुरु कर देता है। ज़रूरत है इन सूक्ष्म मनोभावों को समय रहते संज्ञान में लेने की मनोदक्षता की। इस मनोदक्षता का उपयोग व्यक्ति के आत्महत्या के विचार पर इंस्टेंट ब्रेक लगाने व सतर्कता के साथ मनोउपचार व पुनर्वास में किया जाना चाहिये।कार्य शाला का संयोजन नयन हसानी व आभार सम्बोधन दीपक पाण्डेय द्वारा किया गया।

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