क्रोनिक हेपेटाईटिस संक्रमणों की संख्या में भारत दूसरे स्थान पर
अयोध्या। क्रोनिक हेपेटाईटिस संक्रमणों की संख्या में भारत, चीन के बाद दूसरे स्थान पर है। लगभग 5 करोड़ भारतीय हेपेटाईटिस बी से क्रोनिक रूप से संक्रमित है और 1.2 करोड़ से 1.8 करोड़ भारतीयों को हेपेटाईटिस सी है। ये आंकड़े एनसीबीआई ने दिए हैं। देश में यह बढ़ती चिंता का विषय है क्योंकि यह वायरस बहुत तेजी से फैलने वाला है उक्त विचार वर्ल्ड हेपेटाइटिस डे के अवसर पर आयोजित पत्रकार वार्ता में हेपेटोलॉजिस्ट डॉ. अनुराग बाजपेई ने व्यक्त किया।
उन्होंने आगे कहा कि यदि हेपेटाईटिस बी व सी का समय पर इलाज न किया जाए, तो ये जानलेवा बीमारियां जैसे लिवर की क्रोनिक बीमारी – साईरोसिस (लिवर पर धब्बे) और लिवर कैंसर तक कर सकती हैं। इसलिए वैक्सीनेशन एवं एंटीवायरल इलाज समय पर किया जाना हेपेटाईटिस के नियंत्रण के लिए बहुत जरूरी है। डब्लूएचओ-एसईएआरओ के अनुसार, वायरल हेपेटाईटिस बी एवं सी स्वास्थ्य की बड़ी समस्याएं हैं, जो दुनिया में 325 मिलियन लोगों को प्रभावित कर रही हैं। हर साल साउथ ईष्ट एशिया में हेपेटाईटिस से 4,10,000 मौतें हो जाती हैं और इनमें से 81 प्रतिशत का कारण हेपेटाईटिस बी और सी की क्रोनिक बीमारियां हैं। ये दो वायरस संक्रमित खून या वायरस से पीड़ित व्यक्ति के शरीर के अन्य द्रव्यों के संपर्क में आने से फैलते हैं। यह यौन संसर्ग, संक्रमित सुई या सिरिंज, संक्रमित इन्वेसिव मेडिकल उपकरणों के उपयोग, या माता-पिता से वर्टिकल ट्रांसमिषन द्वारा फैल सकता है। हैल्थकेयर वर्कर को सबसे ज्यादा जोखिम होता है क्योंकि वो मरीजों या संक्रमित सामग्री के लगातार संपर्क में रहते हैं। हेपेटाईटिस का भारत से 2030 तक उन्मूलन करने के उद्देश्य से यूनियन मिनिस्टर ऑफ स्टेट, हैल्थ एवं फैमिली वैलफेयर, अश्विनी कुमार चैबे ने 24 फरवरी, 2019 को मुंबई में एक ‘नेशनल एक्षन प्लान – वायरल हेपेटाईटिस’ लॉन्च किया। इस अभियान के तहत, गर्भवती महिलाओं की जाँच हेपेटाईटिस वायरस के लिए की जाती है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि संक्रमित होने की स्थिति में उन्हें वैक्सीनेयशन एवं उचित इलाज मिल सके। वायरस से पीड़ित लोगों के लिए सरकारी अस्पतालों में निशुल्क दवाई की व्यवस्था की गई है। एचआईवी/एड्स के मरीजों की जाँच पर भी ध्यान दिया जा रहा है और यदि कोई पॉजिटिव पाया जाता है, तो उसका इलाज किया जाता है। हेपेटाईटिस बी एवं सी को नियंत्रित किया जा सकता है, लेकिन जब एक बार संक्रमण हो जाए, तो पूरे इलाज का भरोसा नहीं दिलाया जा सकता। इन्हें एंटीवायरल दवाईयों से नियंत्रित किया जाता है, जिसके लिए आजीवन दवाई की जरूरत पड़ती है। डॉ. अनुराग बाजपेई ने कहा, ‘‘एसिंपटोमेटिक प्रकृति होने के कारण हेपेटाईटिस बी और सी के संक्रमण कुछ सालों में लिवर को खराब कर सकते हैं, जबकि मरीज को इस संक्रमण का पता तक नहीं रहता। इससे संक्रमण के फैलने का खतरा बढ़ जाता है। जिन मरीजों को एंटीवायरल दवाईयां नहीं दी जाती हैं, उन्हें लिवर की दीर्घकालिक व गंभीर बीमारियां हो सकती हैं और हर चार में से एक व्यक्ति साईरोसिस या लिवर कैंसर के कारण मौत का शिकार हो सकता है।’’एक्यूट एचबीवी एवं एचसीवी संक्रमणों के ज्यादातर मामले एसिंपटोमेटिक होते हैं। कुछ मरीजों में लक्षण कई हफ्तों तक दिखाई देते हैं, कुछ की त्वचा व आंखें पीली पड़ जाती हैं (पीलिया) एवं गहरे रंग की मूत्र, अत्यधिक थकावट, बेहोशी, उल्टी एवं पेट में दर्द की शिकायत होती है। इस बीमारी की क्रोनिक प्रवृत्ति उस उम्र पर निर्भर करती है, जब व्यक्ति को बीमारी का संक्रमण होता है। 6 साल से कम आयु के बच्चे, जिन्हें हेपेटाईटिस वायरस का संक्रमण होता है, उन्हें क्रोनिक संक्रमण का खतरा ज्यादा होता है एक साल की आयु में संक्रमित होने वाले 80 से 90 प्रतिशत शिशु को क्रोनिक संक्रमण हो जाता है और 6 साल की उम्र से पहले संक्रमित होने वाले 30 से 50 प्रतिषत बच्चों को क्रोनिक संक्रमण हो जाता है। व्यस्कों के रूप में संक्रमित होने वाले 5 प्रतिशत से कम लोगों को क्रोनिक संक्रमण होता है और क्रोनिक संक्रमण वाले 20 से 30 प्रतिशत व्यस्कों को साईरोसिस या लिवर कैंसर हो जाता है।