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फूल-बंगला से सजकर सुरम्यता के वाहक बने मंदिर

-श्रीराम जन्मभूमि में भगवान रामलला, कनक भवन में बिहारी सरकार, हनुमानगढ़ी में श्री हनुमान जी व मां सरयू के पावन तट पर सजायी गयी फूल-बंगला झांकी


अयोध्या।फूल-बंगला से सजकर सुरम्यता के वाहक बने मंदिर। भगवान राम की नगरी अयोध्या में मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम के जन्मभूमि में भगवान रामलला, कनक भवन में बिहारी सरकार, हनुमानगढ़ी में श्री हनुमानजी व मां सरयू के पावन तट पर शुभव्य फूल-बंगला झांकी सजायी गई। झांकी को वृंदावन से उच्चकोटि के संत जगतगुरु पीपाद्वारचार्य बलराम देवाचार्य महाराज ने अपनी सानिध्यता प्रदान की।

भक्त भगवान के प्रति श्रेष्ठतम समर्पित करने की तैयारी रखता है। मौका कोई भी हो भक्त का यह चरित्र परिभाषित होता है। भीषण गर्मी के भी अवसर पर भक्त का यह स्वभाव-समर्पण फलक पर होता है। गर्मी से आराच्य को बचाने के लिए यदि एगर कंडीशनर लगाए जाने का चलन बढ़ता जा रहा है, तो आराध्य को फूल-बंगला से सज्जित करने की परंपरा भी सदियों से प्रवहमान है। इसके पीछे भाव यह होता है कि आराध्य को चहुंओर से शीतल, सुकोमल और शोभायमान पुष्पों से आच्छादित कर उनके सम्मान और उनकी सुविधा के प्रति कोई कसर न छोड़ी जाय। फूल बंगला से सज्जित किए जाने के प्रयास में भांति-भांति के क्विंटलों फूल की जरूरत होती है और यह जरूरत बनारस, कन्नौज, कानपुर से लेकर कोलकाता तक के। फूलों से पूरी होती है। इसे सज्जित करने के लिए परंपरागत रूप से प्रशिक्षित मालियों का एक खेमा है, जिनकी गर्मी के दिनों में बेहद मांग हो जाती है।


जगद्गुरु पीपाद्वाराचार्य बलराम देवाचार्य महाराज बताते है कि मंदिरों में विराजमान भगवान के विग्रह संत-साधकों के लिए वस्तुतः अर्चावतार की भांति हैं। मंदिरों में प्राण प्रतिष्ठित देव प्रतिमा को सजीव माना जाता है। यही कारण है कि साधक संतों ने उपासना के क्रम में विराजमान भगवान के अष्टयाम सेवा पद्घति अपनाई। इस सेवा पद्घित में भगवान की भी सेवा जीव स्वरूप में ही की जाती है। जिस प्रकार जीव जैसे सोता, जागता है उसी प्रकार भगवान के उत्थापन व दैनिक क्रिया कर्म के बाद उनका श्रृंगार पूजन, आरती भोग-राग का प्रबंध किया जाता है।

इसी क्रम में भगवान को गर्मी से बचाने के लिए पुरातन काल में संतों ने फूलबंग्ला झांकी की परंपरा का भी शुभारंभ किया था, जिसका अनुपालन आज भी हम कर रहे है।पीपाद्वाराचार्य बलराम देवाचार्य महाराज कहते है कि हम जिन प्रसंगों एवं प्रयास से स्वयं को सुखी कर सकते हैं, वह सारा कुछ आराध्य के प्रति समर्पित करते हैं। फूल बंगला सजाए जाने की परंपरा मधुरोपासना की परिचायक है। इस उपासना परंपरा के हिसाब से भक्त के लिए भगवान मात्र प्रतीक नहीं, बल्कि चिन्मय चैतन्य विग्रह हैं और भक्त उनकी शान में किसी भी सीमा तक समर्पित होने को तैयार रहता है।आयोजन जगतगुरु पीपाद्वाराचार्य बलराम देवाचार्य महाराज वृंदावन और सभी भक्तो द्वारा किया जाता है।

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Written by Next Khabar Team

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