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आत्महत्या के पहले होता है मादक मनो खिंचाव : डा. आलोक मनदर्शन

“विश्व आत्महत्या रोधी दिवस’’ पर हुई कार्यशाला

अयोध्या। डा. आलोक मनदर्शन ने विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस (10 सितम्बर) के मद्देनजर जिला चिकित्सालय में आयोजित निदानात्मक शोध कार्यशाला में बताया कि आज के युग में आत्महत्या एक वैश्विक महामारी का रूप ले चुका है और इसके सबसे ज्यादा हाई रिस्क ग्रुप में किशोर व अल्प आयु युवा वर्ग आ चुके हैं। इन्टरनेशनल एसोसियेशन फार सुसाइड प्रिवेंशन की रिपोर्ट के अनुसार भारत के कुल 30 प्रतिशत किशोर व अल्प आयु युवाओं के मन में आत्म हत्या के विचार बहुत की ज्यादा हावी हो चुके है। यह एक गंभीर चिन्ता एवं समाधान का विषय है क्योंकि आज का किशोर व युवा ही देश के लिए कल का मानव संसाधन साबित होता है, अतः यह एक राष्ट्रीय एवं अर्न्तराष्ट्रीय चिन्ता का विषय बन चुका है।

आत्म हत्या के विचार के विभिन्न चरणः-

जिला चिकित्सालय के किशोर मनोस्वास्थ्य परामर्शदाता डा0 आलोक मनदर्शन के अनुसार आत्म हत्या के विचार पहले तो पैसिव रूप में आते हैं। जिससें कि किसी प्राकृतिक आपदा, बीमारी, दुर्घटना इत्यादि में जीवन समाप्त हो जाने की प्रबल इच्छा पैदा होती है। परन्तु स्वयं से आत्म हत्या के कृत्य करने से वह बचना चाहता है। मगर धीरे-धीरे ये आत्महत्या के विचार सक्रिय रूप ले लेते हैं तथा व्यक्ति आत्म हत्या के कृत्य को स्वयं अंजाम देने पर इस कदर आमादा हो जाता है कि उसके मन में सुसाइड का कृत्य एक मादक खिंचाव बन जाता है जिसे मेंन्टल हाईजैक कहा जाता है और फिर आत्म हत्या के विभिन्न तौर तरीकों पर ध्यान केन्द्रित करना शुरू कर देता है और आत्म हत्या का कृत्य कर बैठता है। कई असफल आत्महत्या के कृत्य जिसको पैरा सुसाइड कहते हैं के बाद वह सुसाइड करने में सफल भी हो जाता है।

बचाव व उपचार-

मनोस्वास्थ्य जागरूकता व परिस्थितियों से अनुकूलन की क्षमता में कमी तथा दुनिया को केवल काले और सफेद में देखने की मनोवृत्ति इसके लिए प्रमुख रूप से जिम्मेदार है। वही दूसरी तरफ बनावटी व्यक्तित्व विकार, चिन्तित व्यक्तित्व विकार, उन्मादित व्यक्तित्व विकार तथा सर्वश्रेष्ठ दिखने का व्यक्तित्व विकार भी काफी हद तक जिम्मेदार है। रही-सही कसर अभिभावकों की फाल्टी पैरेटिंग, अति अपेक्षित मनोदशा व पीयर प्रेशर व तुलनात्मक आकलन है। सोशल मीडिया व नेट फीलिया भी किशोरों की नकारात्मक भावनात्मक उड़ान को काफी बढ़ावा दे रहे हैं जिससे कि, उनमें एकांकीपन, नशाखोरी, फैन्टेसी फिलिया, जेंडर फिलिया व हीरोइज्म के द्वारा बिना सोचे समझे नकारात्मक कदम ले लेने की प्रवृत्ति को बढ़ावा दे रहे हैं।

फैमिली थिरैपी का है अहम रोल :

परिवार एक चेन है और इसकी हर एक कड़ी का मजबूत होना ही सभी परिवारीजनों के मानसिक स्वास्थ्य व भावनात्मक सहयोग को बढ़ाता है।आत्महत्या के विचार से ग्रषित व्यक्ति को उस परिवार की वह कड़ी माना जा सकता है जो कि मानसिक रूप से टूटने के कगार पर आ चुकी है और शेष परिजनों को टूटी मनोबल वाले व्यक्ति को भावनात्मक व सहयोगात्मक तरीके से पूर्ण स्वीकार्यता करनी चाहिये व भावनात्मक लगाव का मनोउपयोग आत्महत्या के विचार को उदासीन करने में किया जाना चाहिये । इस मनोतकनीक को इमोशनल हुकिंग कहा जाता है,जिससे आत्मघाती कृत्य पर उतारू व्यक्ति की डेथ इंस्टिंक्ट या मृत्वेषणा को उदासीन तथा लाइफ इंस्टिंक्ट या जीवेषणा का सम्यक सवंर्धन किया जा सकता है।

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