एंटीबायोटिक जागरूकता सप्ताह के अंतर्गत छात्र-छात्राओं को दी गयी जानकारी
कुमारगंज । आमतौर पर हर छोटी-बड़ी बीमारी के लिए लोग झट से एंटीबायोटिक दवा ले लेते हैं , एंटीबायोटिक दवाओं के दुष्प्रभाव को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा 12 से 18 नवंबर के बीच एंटीबायोटिक जागरूकता सप्ताह के अंतर्गत नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कुमारगंज की प्रभारी परिसर चिकित्सालय एवं पशु चिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय की प्रो. नमिता जोशी द्वारा देव बक्श बलदेव महाविद्यालय सरूरपुर हनुमानगंज प्रांगण में छात्र-छात्राओं को जागरूकता अभियान के माध्यम से बताया । एंटीबायोटिक के प्रति प्रतिरोधक क्षमता पैदा हो रही है जो सेहत के लिए सबसे बड़े खतरों में से एक है। छोटे-मोटे संक्रमण के लिए भी मरीज एंटीबायोटिक दवाओं का बेवजह इस्तेमाल कर रहे है जिससे बैक्टीरिया इनके प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर रहे हैं। डा. नमिता ने छात्र-छात्राओं से कहा कि एंटीबायोटिक दवा लेने से पहले डॉक्टरों से सलाह ले मरीजों को एंटीबायोटिक दवा तभी लेनी चाहिए जब प्रशिक्षित डॉक्टर ने कहा हो। डॉक्टर ने जितनी दिनों की दवाई दी हो, उतने दिन दवा लेनी चाहिए भले ही आप बेहतर महसूस कर रहे हों द्यबीच में दवाई छोड़ने से बैक्टीरिया प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर सकते हैं द्यज़ुकाम या फ्लू जैसे वायरसों से होने वाले संक्रमण में एंटीबायोटिक दवा मददगार नहीं होती है।
डॉक्टरों द्वारा अनुचित, एंटीबायोटिक दवाओं की विक्रय बिक्री, इसके अलावा घटिया एंटीबायोटिक दवाइया, बीमारी को रोकने के लिए कम टीकाकरण स्तर, अस्पतालों में खराब संक्रमण नियंत्रण, स्वच्छ पानी की कमी और नियंत्रित सीवर, एंटीबायोटिक निर्माण के लिए पर्यावरण नियंत्रण की कमी और मांस के लिए बढ़ती भूख, विशेष रूप से पोल्ट्री उत्तरदाई हैं। एंटीबायोटिक दवा खपत अक्सर बिना परामर्श के एक बड़ी समस्या है। यहां तक कि जब कोई चिकित्सक भी शामिल होता है तो एंटीबायोटिक दवाएं कभी-कभी दस्त, खांसी, सर्दी और फ्लू के लिए निर्धारित होती हैं जो मुख्य रूप से वायरस के कारण होती हैं जो एंटीबायोटिक दवाओं का जवाब नहीं देते हैं। भारत में सबसे बड़ी सम्स्या का कारण है बिना किसी परामर्श के असानी से एंटीबायोटिक दवाओं का मिलना। परामर्श के बिना नए एंटीबायोटिक दवाओं की बिक्री को कम करने के लिए नियम लागू किए गए हैं। लेकिन भारत में ओवर-द-काउंटर दवाओं को पूरी तरह से खत्म करना संभव नहीं है, क्योंकि बहुत से लोग स्वास्थ्य देखभाल, चिकित्सकों और परामर्श तक पहुंच नहीं पाते हैं। वर्ष 2014 में, भारत सरकार ने 24 प्रकार के एंटीबायोटिक दवाओं के लिए परामर्श की आवश्यकता शुरू कर दी थी, जिसे विशेष रूप से चिह्नित बक्से में बेचा जाता था। इसे रोकने का सबसे अच्छा उपाय है टिकाकरण द्य टीकाकरण एंटी -बायोटिक दवाओं के प्रयोग को कम करने और संक्रमण को रोकने के लिए एंटीबायोटिक प्रतिरोध के प्रसार को धीमा करने के लिए एक और तरीका है। वर्तमान भारतीय राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम में कई महत्वपूर्ण टीके शामिल हैं, लेकिन भारत में केवल तीन चौथाई बच्चो को ही पूरी तरह से टीका लगाए जाते हैं।
भारत में एक सर्वेक्षण में पाया गया कि 7 प्रतिशत रोगियों ने एक अस्पताल में स्वास्थ्य-संबंधी संक्रमण से ग्रस्त है। बाकी देशो की तुलना में भारत में सबसे अधिक एंटीबायोटिक दवाओं का निर्यात होता है। भारत की नई समृद्धि का एक और परिणाम चिकन मांस की बढ़ती मांग है, जो 2030 तक ट्रिपल होने की उम्मीद है। मुर्गी के विकास में तेजी लाने के लिए एंटीबायोटिक दवाओं की कम खुराक भारतीय पोल्ट्री फीड में जोड़ दी जाती है जिससे उन्हें प्रतिरोध के लिए एक आदर्श इनक्यूबेटर बनाया जा सकता है।
डा. जोशी ने कार्यक्रम में उपस्थित छात्र-छात्राओं एवं अन्य लोगों से आग्रह किया कि चाहे वह मानव के लिए हो या पशुओं के लिए एंटीबायोटिक दवाओं का डॉक्टरों से सलाह लेकर ही प्रयोग करें। इस मौके पर सुधीर सिंह विद्यालय के प्रधानाचार्य राजेश कुमार सिंह, लक्ष्मी कांत मिश्रा, राणा प्रताप भूषण, आनंद सिंह मिंटू, प्रेमपता, अनीता, विद्यालय के कर्मचारियो सहित क्षेत्र के अन्य गणमान्य लोग मौजूद रहे।