-किसी कृत्य की बारम्बारता है ओसीडी के लक्षण, फिजूल की चिंता घबराहट है ओसीडी की आहट
अयोध्या। ओवर-थिंकिंग या अनचाहे विचारों से ग्रसित रहने तथा आत्मविश्वास मे कमी के कारण दिनचर्या के कृत्यों को समय से संपादित न कर पाने की रुग्ण मनोदशा ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर ओसीडी या जुनूनी मनोबाध्यता विकार कहलाती है। चिंतालु व्यक्तित्व के लोगों तथा पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में यह अधिक पायी जाती है। ऐसे लोगों में सोशल फोबिया, क्लास्ट्रोफोबिया, अगोराफोबिया, जनरलाइज्ड फोबिया, परफारमेंस फोबिया जैसे अन्य भय भी दिखते है ।
पैनिक अटैक या तीव्र घबराहट के दौरे भी पड़ सकते है। ओ सी डी का मनोशारीरिक या साइकोसोमैटिक असर भी होता है। पाचन क्रिया से लेकर हृदय की धड़कन तक शरीर की हर एक कार्यप्रणाली इससे दुष्प्रभावित होती है। ओसीडी जनित मेन्टल स्ट्रेस से कार्टिसाल व एड्रेनिल हॉर्मोन बढ़ जाता है जिससे चिंता, घबराहट, डर,भय, एडिक्टिव इटिंग,आलस्य, मोटापा , अनिद्रा,हृदय की असामान्यत अनुभूति या कार्डियक न्यूरोसिस, पेट खराब रहना या गैस्ट्रिक न्यूरोसिस व नशे की घातक स्थिति पैदा हो सकती है। यह बातें अंतरराष्ट्रीय मनोजागरूकता माह कार्यक्रम के तहत बी एन एस डिग्री कॉलेज में आयोजित कार्यशाला में डा. आलोक मनदर्शन ने कही।
उन्होंने कहा कि मन के प्रत्येक भाव पीड़ा, तनाव, सुख, आनन्द, भय,क्रोध, चिंता, द्वन्द व कुंठा आदि का सीधा प्रभाव शरीर पर पड़ता है। स्ट्रेस व एंग्जायटी एक हफ्ते से ज्यादा महसूस होने पर मनोपरामर्श अवश्य लें। किसी कार्य को सामान्य से अधिक समय तक करने या दोहराने के जूनून व बाध्यता के प्रति जागरूकता व मनोपरामर्श काफी कारगर होता है। स्वस्थ, मनोरंजक व रचनात्मक गतिविधियों को दिनचर्या में शामिल कर आठ घन्टे की गहरी नींद अवश्य लें। इस जीवन शैली से मस्तिष्क में हैप्पी हार्मोन सेरोटोनिन व डोपामिन का संचार होता है। कार्यशाला की संयोजिका डॉ० नीलम सिंह ने धन्यवाद ज्ञापित किया।