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समरसता के प्रयास से एकरूपता का होगा विकास

दो दिवसीय समरसता कुम्भ में भविष्य कालीन दिशा पर हुआ मंथन

अयोध्या। डॉ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के नवीन परिसर में 15 से 16 दिसम्बर, 2018 तक दो दिवसीय समरसता कुंभ 2018 के दूसरे दिन चतुर्थ सत्र का आयोजन किया गया। इस सत्र के तहत आओं समरस समाज की ओर चले और भविष्य कालीन दिशा पर प्रकाश डालते हुए वक्ताओं ने अपने उद्बोधन प्रस्तुत किये। अपने उद्बोधन में डॉ0 प्रकाश बरतूनिया कुलाधिपति, डॉ0 बाबा साहेब भीमराव आम्बेडकर विश्वविद्यालय लखनऊ ने समरसता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह समृद्ध परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही हमारी धरोहर है। स्वामी रामानंद ने वंचित वर्ग के लोगों को अपना शिष्य बनाया, भगवान राम ने सबरी के आतिथ्य को स्वीकार कर जो संदेश दिया वह आज भी अनुकरणीय है। बाबा साहेब ने भी सामाजिक समरसता के संदर्भ में देश भर में पूर्णता का बोध कराया। कुंभ मेले में आने वाले देश विदेश से लोग आपस में सद्भाव पूर्वक रहते है। वहां कोई भेद-भाव नहीं किया जाता।
वक्ता के रूप में साध्वी हेमलता शास्त्री ने कहा कि समाज में समरसता के प्रयास से एकरूपता का विकास होगा। भेद-भाव पूर्ण समाज में कभी भी समरसता नहीं आ सकती। यह सभी का कर्तव्य है कि वह समरसता के लिए कृत संकल्प हो। सांसद आगरा के रमाशंकर कठेरिया ने कहा कि समाज का विकास तभी संभव हैं जब सभी वर्ग के लोगों को समान अवसर मिले। यदि समरस समाज की स्थापना करनी है तो छोटे और बड़े के भेद को समाप्त करना होगां समरसता स्वयं के आकलन का विषय है। समरसता सौहार्द, चिंतन और मनन है।
समापन के पंचम सत्र में अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्री भारत सरकार के थावरचंद गहलोत ने कहा कि भारत प्राचीन काल से ही समरस समाज के लिए जाना जाता है। इस सांस्कृतिक परंपरा को संजोयो हुए भारतीय समाज विश्व विख्यात है। वसुधैव कुटुम्बकम की तर्ज पर हमारा समाज विश्व बंन्धुत्व का सदैव पक्षधर रहा है। आक्रमण कारियों ने भारत जैसे समरस समाज को काफी क्षति पहुॅचायी। भारतीय समाज तो जीवों और जीने दो के सिद्धांत को माननें वाला रहा है। सर्वे भवन्तु सुखिनाः सर्वे संन्तु निरामया पर विश्वास करने वाली भारतीय संस्कृति सदैव अनुकरणीय है। धर्म संस्कृति की रक्षा के लिए सदैव तैयार रहे कुछ सामाजिक कमियों के चलते कुछ वर्ग के लोगों ने धर्म परिवर्तन कर अपने ही समाज को क्षति पहॅुचा रहे हैं। धर्मान्तरण बंद हो राष्ट्र के प्रति समर्पित रहे यह आचरण बदलने की आवश्यकता है कि समाज में भेद-भाव पूर्ण स्थितियां समाप्त हों।
अखिल भारतीय सह-सरकार्यवाह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, नई दिल्ली के डॉ0 कृष्ण गोपाल ने कहा कि समरसता कुंभ का आयोजन से जो वैचारिक अमृत निकला उसे आप सभी लेकर अपने घर और समाज के बीच जाये। सभ्यता के इस युग में इस प्रकार हम अपने सांस्कृतिक और वैचारिक मूल्यों को बचाकर रख पायेंगे। समरसता कुंभ के मायने उस विरासत का स्मरण किजिये जो हमें आघ्यात्म और परमात्मा से जोड़ती है। परमात्मा सर्वव्यापी है सांस्कृतिक भाव का प्रकटीकरण सारे विश्व का प्रकाश देने वाला है। पूरी दुनियां हमारे समरस समाज की शक्ति को स्वीकार कर चुकी है। 15 सौ वर्ष पूर्व भारत आये विदेशी यात्री विद्वानों ने भी हमारी सांस्कृतिक, धार्मिक समृद्धता की भूरि-भूरि प्रसंशा की है। महर्षि दयानंद ने कहा है कि यज्ञ का अधिकार सभी को है। भेद-भाव हमारे संत समाज की परंपरा में नहीं है। हमारें संविधान में भी सभी को समान अधिकार प्रदत्त है इसलिए इसका उद्बोधन हम भारत के लोग से प्रारम्भ होता है।
सदस्य विधान परिषद बिहार के प्रो0 संजय पासवान ने कहा कि समरसता कुंभ के आयोजन के महत्व पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि यह हमारी बहुत प्राचीन परंपरा है। हमारे संतों मनीषियों ने वाल्मीकि रैदास कबीर, नानक देव जैसे प्रबुद्ध संतों ने समरस समाज की नींव रखी उसी की तर्ज पर समाज हमारा विकसित हुआ। धर्म ग्रन्थों में समरसता के बड़े स्तर पर उद्धरण विद्यमान है। शोध से बोध होता है भविष्य की हितकारी नीतियां इसी से तय होती है। समरसता कुंभ इसी प्रकार का आयोजन है। काशी की डॉ0 मंजू ने कहा कि संत रविदास, संत पीपा दास, गुरू गोविन्द सिंह जैसे संतों ने समरसता की अलख जगाई है। मंतदृष्टा स्त्री शक्ति ने भी समरसता के लिए महत्वपूर्ण योगदान किया है। गार्गी, अपाला, विद्योत्तमा जैसी विद्वानों ने प्राचीन काल से भारत की समद्ध वैचारिक परंपरा को आगे बढ़ाया है।
विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 मनोज दीक्षित ने अतिथियों के आगमन पर आभार व्यक्त करते हुए कहा कि इस महत्वपूर्ण सांस्कृतिक आयोजन से हम सभी ने बहुत कुछ प्राप्त किया है। 6 वृहद और 16 लघु बैठकों में के आयोजन से इस कार्यक्रम को पूरी तरह से सफल बनाने के लिए समरसता कुम्भ के प्रभारी मंत्री रमापति शास्त्री एवं डॉ0 महेन्द्र सिंह का विशेष सहयोग रहा। प्रो0 दीक्षित ने मर्यादा पुरूषोत्तम की जन्मस्थली पर इस सांस्कृतिक आयोजन के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की दूरदर्शिता का प्रतिफल रहा है। सांस्कृतिक संगम के लिए आयोजन से विश्व भर में जो संदेश गया निश्चय ही यह संदेश हमारी ऋषि मुनियों की समृद्ध विरासत को प्रकाशमान किया है। इसी का प्रतिफल है कि महज दो दिनों के भीतर ही सोशल मीडिया पर 10 लाख से अधिक लोगों ने समरसता कुम्भ के आयोजन से परिचित हुए और अपने विचार प्रकट किये। प्रो0 दीक्षित ने सामाजिक समरसता के क्षेत्र में कार्य कर रही मीडिया के प्रति भी भारतीय संस्कृति के प्रचार प्रसार के लिए अपना हार्दिक आभार व्यक्त किया। देश के कोने-कोने से आये संत व विद्वजन के द्वारा दिये गये महत्वपूर्ण संदेश से उपस्थित जनमानस अपनी सांस्कृतिक परंपराओं से परिचित हुआ। इस पर भी प्रो0 दीक्षित ने सफल आयोजन की एक कड़ी मानी है। यह आयोजन सांस्कृतिक नींव की ईट है इसी पर समरस समाज की स्थापना का चित्र खीचां जाना है। समापन अवसर पर कुलपति प्रो0 मनोज दीक्षित एवं प्रति कुलपति प्रो0 एस0एन0 शुक्ला ने राम रेखा जी महाराज गुजरात, कमलेश नान्दियाण, भारत भूषण काशी, अनुराधा जी, श्रीमती निर्मला, श्री थावर चंद्र गहलोत, डॉ0 मंजू, डॉ0 कृष्णगोपाल, रमाशंकर कठेरिया को अंग वस्त्रम एवं स्मृति चिन्ह भेटकर सम्मनित किया। प्रो0 अशोक शुक्ला द्वारा कार्यक्रम का भावपूर्ण संचालन किया गया। इस अवसर पर अयोध्या के प्रमुख संत विद्वानों सहित लोकसभा के सांसद लल्लू सिंह, नगर विधायक अयोध्या, वेद प्रकाश गुप्ता, अवधेश पाण्डेय, सहित विश्वविद्यालय के शिक्षक एवं पदाधिकारी उपस्थित रहे।

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