-मौज मस्ती से शुरुवात बनाती है तलबगार, मनोपरामर्श है लत छोड़ने मे सहायक
अयोध्या। किशोरों में छद्म सुकून व मौज- मस्ती की अनुभूति के चंगुल में फंसकर नशे की लत बढ़ती जा रही हैं। पारम्परिक छोटे नशे से शुरु होकर ओपिआयड- पदार्थो, नारकोटिक -टेबलेट, सिरप व इंजेक्शन तक यह जा सकती है। नशे के प्रमुख शॉर्ट-टर्म दुष्प्रभावों में एकाग्रता की कमी, पढ़ाई में मन न लगना,आँखों का धुंधलापन व लाल होना, चिड़चिड़ापन, क्रोधित व ठीट स्वभाव, भूख कम या ज्यादा लगना, अनिद्रा, साइबर सेक्स व गेम में मस्त रहना, रैस ड्राइविंग, यौन सक्रियता, हिंसा जैसे व्यवहार दिखतें हैं ,वही लॉन्ग-टर्म इफ़ेक्ट मनोविक्षिप्ता से लेकर लीवर,किडनी आदि के लिए घातक होते हैं ।
नशीले पदार्थ के सेवन से ब्रेन न्यूक्लियस में एडिक्टिव-हार्मोन डोपामिन की बाढ़ आ जाती है और मस्ती का एहसास होने लगता है फिर डोपामिन का स्तर सामान्य होने पर हिप्पोकैम्पस द्वारा डोपामिन की तलब पैदा होती है जिसे ड्रग-डिपेंडेंस कहा जाता है। इस प्रकार नशे की मात्रा बढ़ती जाती है जिसे ड्रग-टोलेरेन्स कहा जाता है। मनोविकार से ग्रसित या नशे की पारिवारिक पृष्ठभूमि या मित्रमण्डली से सरोकार के टीनेज व यूथ में यह अधिक होता है। एक स्टडी के अनुसार, दो तिहाई ड्रग-यूजर्स की लत किशोरवस्था में ही शुरु होती है ।
बचाव व उपचारः
यदि किशोर के व्यवहार में असामान्यता दिखने लगे तो अभिभावक उसकी गतिविधियों पर मैत्रीपूर्ण व पैनी नजर रख उसके गोपनीय नशे की लत के बारे में जाने व जागरूक करें। फिर भी यदि लत के लक्षण दिखें तो निःसंकोच मनोपरामर्श ले। कॉगनिटिव थिरैपी व ड्रग- रिप्लेसमेंट थेरैपी नशे से उबारने में कारगर है। यह बाते राजकीय पालिटेक्निक में विश्व नशारोधी दिवस 26 जून संदर्भित सब्स्टेंस-यूज़ डिसऑर्डर जागरूकता कार्यशाला में डा आलोक मनदर्शन द्वारा बतायी गयी। कार्यशाला की अध्यक्षता प्रिंसिपल जयराम ने किया जिसमें सभी टीचर व स्टूडेंट मौजूद रहे।