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समझना चाहिए राष्ट्रवाद व देशप्रेम में अन्तर : प्रो. जगमोहन सिंह

शान-ए-अवध सभागार में हुआ संवाद कार्यक्रम

अयोध्या।अमर शहीद भगत सिंह के भतीजे एवं प्रसिद्ध मानवाधिकार कार्यकर्ता प्रो. जगमोहन सिंह से शहर के प्रगतिशील बुद्धिजीवियों, सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं और नौजवानों का एक संवाद कार्यक्रम होटल शान-ए-अवध के सभागार में आयोजित हुआ। यह आयोजन भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के संयोजन में किया गया। इस अवसर पर अपना वक्तव्य देते हुए प्रो. जगमोहन सिंह ने कहा कि आज नौजवानों को राष्ट्रवाद और देशप्रेम में अन्तर समझना चाहिए। राष्ट्रवाद यूरोप से ली गयी विचारधारा है और इस नये राष्ट्रवाद में सामने कोई न कोई शत्रु खड़ा करना आवश्यक हो जाता है। साथ ही, इतिहास का विकृतीकरण भी इस नये राष्ट्रवाद का प्रमुख संकेत है, स्थानों के नाम बदलना भी इसी विचारधारा का अंग है। देशप्रेम का वास्तविक अर्थ है सबका समावेशीकरण जबकि यह नया राष्ट्रवाद कतिपय समूहों को अपविर्जत करने का काम करता है। वस्तुतः देशप्रेम और नव-राष्ट्रवाद के बीच की यह लड़ाई प्रेम और नफरत के बीच की लड़ाई है। इस तथ्य को सदी के प्रारम्भ में स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान प्रचलन में आये शब्दों, स्वदेशी और स्वराज्य के माध्यम से समझा जा सकता है, जहाँ स्वदेशी का सन्दर्भ बदहाल किसानों की स्थिति में परिवर्तन से जुड़ा हुआ था। आज़ादी की लड़ाई के दौरान गदर पार्टी ने समानता, स्वतंत्रता और बन्धुत्व का नारा दिया था, यही वह पार्टी थी, जिसने पहली बार साम्राज्यवाद की अवधारणा को लोगों के सामने रखा। आज़ादी की लड़ाई के दौरान हिन्दू-मुस्लिम एकता के तमाम उदाहरण मिलते हैं, जलियाँवाला बाग की घटना के बाद इस एकता को तोड़ने के लिए अंग्रेजों द्वारा कराये गये दंगों के प्रयास को इस भाईचारे ने असफल किया था। आज भी यह मानना होगा कि आगे बढ़ने का रास्ता केवल एकता ही है। स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान एक अन्य बड़ी परिघटना नौजवान सभा का अभ्युदय है, राष्ट्रवाद की भिन्न अवधारणों को लेकर इसे आरएसएस के प्रतिपक्ष के रूप में देखा जाना चाहिए। शहीद भगत सिंह का कहना था कि हम उस स्वराज के लिए काम कर रहे हैं जो अट्ठानबे फीसद लोगों के लिए होगा और उनकी हिस्सेदारी से ही आयेगा। प्रजातांत्रिक सोशलिस्ट पार्टी का भी यही कहना था कि साम्राज्यवाद से किसी भी सूरत में समझौता सम्भव नहीं है। आज नव-राष्ट्रवादियों के तथाकथित नायक सावरकर के माफीनामों की बहुत चर्चा होती है, यह भी देखा जाना चाहिए कि माफी मांगने के बाद उन्होंने पुनः साम्राज्यवाद की नीतियों को आगे बढ़ाने के अतिरिक्त कुछ नहीं किया। शहीद भगत सिंह नागरिक सुरक्षा बिल की बात करते हुए कहते हैं कि यदि व्यक्ति के अधिकार सुरक्षित नहीं हैं तो सम्पूर्ण स्वतंत्रता की बात कैसे सम्भव है। इसी तरह भगत सिंह ने यह भी कहा कि यदि लोगों के पास राइट टू एसोसिएशन नहीं है तो लोकतंत्र की स्थापना कैसे सम्भव होगी। आज साम्राज्यवाद और फासीवाद के इस गहरे अंधेरे दौर में यह समझना ज़रूरी है कि जनसरोकार से जुड़े लोगों का प्रतिपक्ष बड़े शातिर ढंग से नैरेटिव बदलने का काम कर रहा है। भगत सिंह कहते थे कि अगर मुझे जिन्दगी और उसूल में चुनना होगा तो मैं उसूल को चुनूँगा। हमें भी इन साजिशों से न सिर्फ सावधान रहना है बल्कि आम जनता को शिक्षित भी करने का कार्य करना है। गोष्ठी के प्रारम्भ में संयोजक साकेत कॉलेज के हिन्दी विभाग के एसो. प्रो. अनिल कुमार सिंह ने प्रो. जगमोहन सिंह का परिचय देते हुए बताया कि वे भगत सिंह के वंशज हैं। उन्होंने उनके रचनात्मक और सामाजिक अवदान को रेखांकित करते हुए बताया कि श्री सिंह शहीद भगत सिंह की रचनाओं को सहेजने और उनके प्रकाशन का काम कर रहे हैं। साथ ही, प्रो. सिंह द्वारा भगतसिंह की रचनाओं के डिजिटाइजेशन का काम किया गया है। गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ पत्रकार शीतला सिंह ने कहा कि हमें यह भी देखना चाहिए कि इस दौर में हमारे प्रयास कैसे हो रहे हैं। हम विचारों को कितना महत्व दे रहे हैं, कहीं हम विचारों की बजाय कुछ चुने हुए प्रतीकों को स्थापित तो नहीं कर रहे हैं। आज गांधी तक को अप्रासंगिक सिद्ध किया जा रहा है, दरअसल शहीदों के कृत्य का वास्तविक अर्थ अब समझा जाना चाहिए। इस बदले हुए समय में हमारे लिए यह सकारात्मक होगा कि हम सामुदायिक कार्य प्रारम्भ करें। गोष्ठी में का. माताबदल, रामप्रसाद रसिक, मोहम्मद इशहाक़, डॉ. विशाल श्रीवास्तव, रवीन्द्र कबीर, डॉ. नजमुल हसन गनी, हरिओम मौर्य, अनुराग यादव, आरजे यादव, आरडी आनंद एवं सत्यभान सिंह जनवादी ने अपने विचार रखे। इस अवसर पर डॉ. प्रदीप कुमार सिंह, कमलेश यादव, नीरज जायसवाल, डॉ. अशहद करीम, डॉ. ममनून आलम, डॉ. बुशरा खातून, पवन कुमार वर्मा, विनोद सिंह, उमाकांत, आफाक, रेशमा बानो, पूजा वर्मा, सुमन, पूनम, निगार खान, अखण्ड प्रताप यादव, चाँद, मुकेश वर्मा, रामजी तिवारी, आलोक पाठक, धीरज द्विवेदी, अनीस चौधरी, आशीष, दीपक कुमार, अजय प्रताप, निधि नन्दिनी सिंह, विश्वजीत सिंह सहित बड़ी संख्या में जनपद और बाहर से आये बुद्धिजीवी, अधिवक्ता, पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता उपस्थित रहे। अयोध्या।

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