सूचना का अधिकार करेगा क्रान्ति का शंखनाद: डाॅ. अशोक

by Next Khabar Team
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सूचना का अधिकार वर्तमान स्थिति एवं चुनौतियाँ विषय पर हुआ व्याख्यान

फैजाबाद। रूदौली एजूकेशनल इंस्टीट्यूट, सरायपीर, भेलसर में सूचना का अधिकार वर्तमान स्थिति एवं चुनौतियाँ विषय पर बी0एड्0 छात्र-छात्राओं के लिये व्याख्यान का आयोजन किया गया। का0सु0 साकेत स्नातकोत्तर महाविद्यालय अयोध्या, फैजाबाद विधि विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर एवं जनसूचना अधिकारी डाॅ0 अशोक कुमार राय ने कहा कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में आम आदमी ही देश का असली मालिक होता है। मालिक होने के नाते जनता को यह जानने का हक है कि जो सरकार उसकी सेवा के लिये बनायी गयी है वह क्या, कहाॅं और कैसे कार्य कर रही है। इसके साथ ही हर नागरिक इस सरकार को चलाने के लिये टैक्स देता है। इसलिए भी नागरिकों को यह जानने का हक है कि उनका पैसा कहाॅं खर्च किया जा रहा है। डाॅ0 राय ने कहा कि जनता को यह जानने का अधिकार ही वास्तव में सूचना का अधिकार है। 1976 में राजनारायण बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के मामले में उच्चतम न्यायालय ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद-19 के अन्तर्गत सूचना के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित किया। न्यायालय ने कहा कि जनता जब तक जानेगी नहीं तब तक अभिव्यक्त नहीं कर सकती। 2005 में देश की संसद ने एक कानून पारित किया जिसे सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 के नाम से जाना जाता है। इस अधिनियम में व्यवस्था की गयी है कि किस प्रकार नागरिक सरकार से सूचना मांगेेगे और किस प्रकार सरकार जवाबदेह होगी।
डाॅ. राय ने कहा कि भगत सिंह ने कहा था कि हमारी लड़ाई हमारी कमजोरियों के खिलाफ है। हम ऐसे उज्ज्वल भविष्य में विश्वास करते हैं जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को पूर्ण शान्ति और स्वतंत्रता का अवसर मिल सके। क्रान्ति की तलवार विचारों की शान पर तेज होती है। उन्होंने यह भी कहा कि जनसूचना कानून में कमियाँ भी हैं जिसे दूर करने की आवश्यकता है। इसमें ऐसा कोई मैकेनिज्म ही नहीं बनाया गया जिससे यह पता चल सके कि किस आवेदक को सूचना मिली या नहीं मिली। जनसूचना प्रकोष्ठ में कर्मचारियों की भयंकर कमी है और इनकी संख्या बढ़ाने हेतु प्रशासन का रवैया उदासीन है। इस प्रकोष्ठ में कोई कर्मचारी काम करने के लिये सामान्य रूप से तैयार नहीं होता जिससे जनसूचना का कार्य प्रभावित होता है। ज्यादातर विभागों में जनसूचना प्रकोष्ठ में कोई को-आर्डीनेटर ही नहीं है जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि आवेदक को 30 दिनों के भीतर सही सूचना प्राप्त हुई अथवा नहीं।
डाॅ. राय ने यह भी कहा कि जनसूचना कानून का दुरूपयोग भी प्रायः देखने को मिलता है। कभी कभी दूसरे व्यक्तियों को परेशान एवं व्यथित करने के लिये भी इसका सहारा लिया जाता है। सामाजिक परिवर्तन सदैव सुविधा सम्पन्न लोगों के दिलों में खौफ पैदा करता रहा है। आज सूचना का अधिकार धीरे-धीरे ही सही परन्तु लगातार सफलता की ओर बढ़ रहा है। कार्यक्रम का संचालन महाविद्यालय की प्राचार्या डाॅ0 मधूलिका मिश्रा एवं धन्यवाद ज्ञापन प्रबन्धक सैय्यद शाहिद हुसैन उर्फ रोमी ने किया। व्याख्यान में बब्लू सिंह एवं अन्य प्राध्यापक गण तथा बी0एड्0 की छात्र-छात्रायें उपस्थित रहीं।

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