श्रीमद्भागवत कथा सप्ताह के समापन में भगवान के सभी अवतारों की लीलाओं का रसपान किया भक्तों ने
फैज़ाबाद। त्रेतायुग में मानवोचित मर्यादा में उच्चतम आदर्शों की स्थापना के लिए श्रीरामावतार में ईश्वर ने धर्म की स्थापना की किन्तु देशकाल परिस्थितियों में परिवर्तन के साथ द्वापर में उन्होने श्रीकृष्ण रूप में धर्मस्थापना हेतु कर्मयोग राजनीतिज्ञ और कूटनीति का सफल प्रयोग किया। राम के एकपत्नीव्रत की जगह 16108 विवाह किया, लंका की तरह द्वारिका को समुद्र में मध्य स्थापित किया।इसी तरह तमाम दृष्टांतो के साथ सामाजिक विषमताओं के धर्मसंगत समाधान का संकेत देती कथाओं के माध्यम से श्रीमद्भागवत कथा व्यास स्वामी हरिनारायणाचार्य ने मोदहा में श्रद्धालुओं को जीवन कौशल का सन्देश दिया। उन्होंने कहा आजकल फिल्में समाज का आईना कही जाती हैं किंतु जिस तरह श्रीकृष्ण सुदामा की मित्रता का चित्रण किया जाता है वैसा कोई उल्लेख शास्त्रों में नहीं मिलता। शास्त्रों में स्पष्ट है मित्रता सदैव समान लोगों में होती है इसप्रकार श्रीकृष्ण के ब्राह्मण मित्र का जिक्र है जो स्वयं बहुत विद्वान और स्वाभिमानी थे, सुदामा उनका लाक्षणिक नाम है जिसका अर्थ है सुंदर बन्धन अर्थात मित्र।इसी क्रम में उन्होंने कहा दान लेने और देने का अधिकार सुपात्र को ही है।
कथा व्यास ने कलियुग के लिए भविष्य पुराण में शास्त्रोक्त सामाजिक व्यवस्था पर प्रहार करते हुए कहा कलियुग में एक समय ऐसा आएगा जब 700 वर्ष म्लेच्छ शासन होगा, तदुपरांत गौर शासन होगा, और फिर मौन शासन होगा। वर्तमान शासन व्यवस्थाएं ऐसी ही प्रतीत होती हैं किसी भी निर्णय पर कोई स्पष्ट राय नही मेज थपथपाकर बहुमत से मौन स्वीकृति दी जाती है।योग्यता उपेक्षित और बाहुबली सम्मान पद प्रतिष्ठित होंगे। जब धरा कलियुग के पूर्ण प्रभाव में होगी तो पुनः धर्मस्थापना के लिए भगवान सम्भल ग्राम में एक ब्राह्मण कुल में कल्कि के रूप में अवतार लेंगे। कथा यजमान डॉ सुरेंद्र बहादुर सिंह ने सकुटुम्ब व्यासपीठ की आरती की।इस अवसर पर डॉ जेपी तिवारी, डॉ सीबी सिंह, वेद, प्रवीण, नवीन, डॉ उपेन्द्र मणि त्रिपाठी,कौशिक, सहित स्थानीय बुजुर्ग, महिलाएं, और युवा लोग उपस्थित रहे।