“यदि दुख मिला है तो उसे जीतो ,निर्बल हो तो बलवान बनो”

by Next Khabar Team
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विश्वपटल पर हिंदुत्व की जीवंत प्रस्तुति थे स्वामी विवेकानन्द : संजय

अयोध्या। गुरु रामकृष्ण परमहंस की तीन शिक्षाओं यथार्थ जीवन की अभिलाषा, आजीवन उद्योग, और अविरल साधना को अंगीकार कर पहली बार 1893 में एक हिन्दू युवा संत विदेश की धरती पर धर्म संसद को सम्बोधित करने गया तो वहां की भौतिकता की चकाचौंध में एकबार थोड़ा विचलित हुआ, मंच पर गया और अपने गुरु को प्रणाम करते हुए जब उसके होंठों से भारत के सच्चे भाव शब्दों में फूटे तो अमेरिका का सारा वैभव उस संत के चरणों मे जैसे समर्पित हो गया, जो व्यक्ति स्वयं विशेषण बन चुका था और जिसे सारी दुनिया ने एक पल में स्वीकार कर लिया ऐसे स्वामी विवेकानंद ने अपने परिचय में कहा कि ऐसे धर्म के अनुयायी होने में वह गर्व महसूस करते हैं। जिसने संसार को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति की  शिक्षा दी है। 

“व्यक्तित्व का विशेषण विवेकानन्द” विषय पर वर्चुअल माध्यम से युवाओ और प्रबुद्धजनों को संबोधित करते हुए अयोध्या विभाग प्रचारक सजंय ने स्वामी विवेकानन्द जयंती पर उनके जीवन के संस्मरणो को प्रकट करते हुए शब्दांजली अर्पित की। उन्होंने बताया स्वामी जी कहते थे यदि दुख मिला है तो उसे जीतो , निर्बल हो तो बलवान बनो। गरीबी और अशिक्षा को वह देश का दुश्मन मानते थे। विदेश के वैभव से वापस भारत की धरती पर आते ही लोट गए जब उनसे पूछा गया तो बोले पहले भारत को वह सिर्फ प्रेम करते थे दुनिया देखने के बाद उसे तीर्थ की तरह पूजनीय मानते है।इं रवि तिवारी ने कहा स्वामी विवेकानन्द जी के व्यक्तित्व के कई पहलू थे वह युवा संत, क्रांतिकारी, आध्यत्मिक , धार्मिक दार्शनिक गुरु, चिंतक थे जिनके हृदय में भारत का गरीब और असहाय बसता था। नर सेवा ही उनके लिए नारायण सेवा थी।

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होम्योपैथी महासंघ के महासचिव डॉ उपेन्द्र मणि त्रिपाठी ने कहा युवाओं के लिए व्यक्तित्व की पाठशाला बन गया वह युवक जो संसार के सभी बंधनो से मुक्त हो सन्यास अपना लिया था फिर भी उसके हृदय में प्रेम था तो केवल देश के उत्थान से और चिंतन शोक था तो केवल देश के पतन का। इसी चिंतन ने उन्हें स्वामी विवेकानन्द बना दिया जिसने गरीबी , तिरस्कार भी झेला किन्तु स्वाभिमान ज्ञान दर्शन धर्म और चिंतन के प्रबल आत्मबल से दुनिया के वैभव को चरणों में झुकाकर युवाओं को स्वावलम्बन का आदर्श सिखा गए। इसलिए वह सदैव मां भारती के अमृत पुत्र की तरह अमर हो गए। वर्चुअल माध्यम में पहले अयोध्या विभाग प्रचारक ने स्वामी विवेकानन्द जी के चित्र पर माल्यार्पण किया, फिर स्वामीजी के जीवन पर वक्तव्य किये गए।इस माध्यम से जिले व महानगर के युवाओं सहित, इं रवि तिवारी, पुष्कर, आदर्श, सूरज, दीपक, हरिओम चतुर्वेदी, अंकुर, श्रीकांत, अनूप, रामरक्षा, अभिनव चौरसिया, अंकित मिश्र, शिशिर मिश्र, पंकज पांडेय, सत्येंद्र प्रताप सिंह, विष्णु मिश्र, हरिश्चंद्र शर्मा, सुनील, संतोष आदि जुड़े।

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