-विश्व होम्योपैथी दिवस 10 अप्रैल
अयोध्या। जर्मनी के मेसन्स शहर में वर्ष 1755 में 10 अप्रैल को मिट्टी के बर्तनों पर चित्रकारी करने वाले गॉटफ्राईट के गरीब परिवार में प्रातः एक बालक का जन्म हुआ , माता पिता ने उसका नाम हैनिमैन रखा। प्रारंभिक शिक्षा नगर के स्कूल में ही हुई किन्तु वहाँ के एक शिक्षक मुलर को बालक में अद्भुत प्रतिभा दिखाई देती रही और उन्होंने उसके पिता को आगे पढ़ाने के लिए राजी कर लिया। चिकित्सा की पढ़ाई के लिए वियना भेजते हुए गरीब पिता ने 20 मुद्राएं देते हुए कहा बेटा जीवन मे सब कुछ परख कर जो सर्वश्रेष्ठ हो वही स्वीकार करना ।पिता के शब्दों के भाव परिवार की स्थिति में कई भाषाओं के ज्ञानार्जन को अपनी पढ़ाई व जीविकोपार्जन का माध्यम बनाया।
एमडी के बाद चिकित्सा के तरीके उन्हें संतुष्ट न कर सके तो पुनः डॉ हैनिमैन ने अंग्रेजी पुस्तको का जर्मन में अनुवाद शुरू कर दिया, और कलेन की पुस्तक में सिनकोना के बारे में पढ़कर कि वह बुखार उत्पन्न करती है इसलिए ठीक कर सकती है, इस तथ्य पर पिता के वचन उनकी प्रेरणा बने और अध्यात्म उनकी दृष्टि। स्वयं पर छः वर्ष परीक्षण करने के बाद वह प्राकृतिक चिकित्सा नियम समं समे शमयति को विश्व के सामने एक सरल सहज समलक्षणी उपचार की पद्धति होम्योपैथी के रूप में प्रस्तुत किया।
तमाम विरोधों प्रतिबन्धों के बाद भी अपनी प्रभाविता के कारण होम्योपैथी का विस्तार जर्मनी की सीमाओं के बाहर तक होने लगा और 1832 में महाराज रंजीत सिंह जी के चेहरे के पक्षाघात को होम्योपैथ डॉ हिंनगबर्गर द्वारा ठीक किये जाने के साथ हुआ। भारत अध्यात्म का पोषक राष्ट्र है अतः यहां होम्योपैथी के सिद्धांतों को दर्शन विज्ञान के साथ अध्यात्म की दृष्टि मिली, आयुर्वेद की सैद्धांतिक समानता के कारण यहां होम्योपैथी को फलने फूलने का पर्याप्त अवसर मिला,और डॉ हैनिमैन को होम्योपैथी के जनक के रूप में स्वीकार्यता के साथ ही उनके जन्मदिन को विश्व होम्योपैथी दिवस के रूप में मनाए जाने की शुरुआत भी भारत से ही हुई।
इस वर्ष इसकी थीम है शोध एवं अनुसंधान । होम्योपैथी में औषधियों को आयुर्वेद के सदृश ही मर्दनम गुण वर्धनम के सिद्धांत पर शक्तिकृत किया जाता है जिससे निष्क्रिय एवं विषाक्त पदार्थों का भी औषधीय उपयोग हो सकता है। मानसिक लक्षणों को मनुष्य के भाव या उसके व्यक्तित्व के समकक्ष वरीयता देकर समग्र मनुष्य की चिकित्सा करने का सिद्धांत है अतः एक होम्योपैथ बेहद संवेदनशील हृदय भी होना चाहिए जो अपने रोगी की भाषा शरीर की भंगिमा और उन सबमे अव्यक्त भाव को पढ़ सके जिससे वह रोग के मूल कारण तक पहुँच सके और अपने रोगी में आई जीवनीशक्ति जिसे हम प्राण कहते हैं, में आई न्यूनता को दूर कर सके।
होम्योपैथी पर बार बार अवैज्ञानिक होने का मिथ्यारोपण किया जाता है , इसलिए भौतिक विज्ञानी एलेक्जेंड्रा डेलनिक ने अपने डेलनिक मीटर पर होम्योपैथी औषधियों का चुम्बकत्व, विद्युत, प्रकाश, ऊर्जा, तरंग, आयनन के सिद्धांतों पर परीक्षण किया और विक्षोभ पाया। नोबल पुरस्कार विजेता जैक बेन्विस्टि ने जल में विलयित पदार्थो के इलेक्ट्रोमैग्नेटिक सिग्नल बने रहने को सिद्ध किया था, जो होम्योपैथी औषधियों की उपस्थिति को पुष्ट करता है।
नोबल पुरस्कार विजेता ला मोंटेगनियर ने होम्योपैथिक डायल्यूशन में औषधीय संभावना व्यक्त कर शोध की आवश्यकता पर बल दिया था। होम्योपैथी दवाओं से गठिया, दर्द, क्रोनिक शारीरिक मानसिक रोगों, पथरी, बवासीर, मासिक धर्म अनियमितता, गांठ,त्वचा रोगों से मुक्ति पाने के कारण और तमाम संक्रामक वायरल रोगों महामारी काल मे अपनी उपयोगिता सिद्ध करने के कारण इसकी उपयोगिता व जन विश्वास बढ़ा है, सरकार ने पृथक मंत्रालय स्थापित कर आयुष चिकित्सा में जोड़ते हुए इसे बढ़ाने का सराहनीय प्रयास किया है किंतु अभी पर्याप्त नहीं, शोध अध्ययन व प्रोत्साहन की एवं जन जन को सरल सहज स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धि हेतु सभी चिकित्सको की सेवाएं आवश्यक कर देनी चाहिए।
यदि यह कार्य निजी व सरकारी अनुबंध आधारित सेवा अवसर के रूप में लाया जाय तो ओपीडी समय मे निजी चिकित्सको को सेवा के लिए भूमि या भवन उपलब्ध करा उन्हें सेवा समय का समुचित मानदेय देकर सरकार सहज ही जन जन तक आरोग्यदायिनी पद्धति का लाभ पहुँचा सकती है। अयोध्या में डॉ उपेन्द्र मणि त्रिपाठी के संयोजन में होम्योपैथी चिकित्सा विकास महासंघ द्वारा हैनिमैन के चित्र पर माल्यार्पण व दीप प्रज्ज्वलन किया गया । इस अवसर पर पूर्व जिला होम्योपैथी अधिकारी डॉ आर वी त्रिपाठी, डॉ अखिल मिश्र, डॉ कल्पना कुशवाह, डॉ मनीष राय धीरेन्द्र, सौरभ, आर एस त्रिपाठी आदि उपस्थित रहे।