Breaking News

आर्थिक न होकर सबसे ज्यादा सांस्कृतिक था पं. दीनदयाल का विजन: प्रो. मनोज दीक्षित

“पं. दीनदयाल उपाध्यायः जीवन एवं चिंतन” विषय पर संगोष्ठी का समापन

अयोध्या। डॉ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के पं0 दीनदयाल उपाध्याय शोध पीठ द्वारा दिनांक 31 मार्च 2019 को सायं 5 बजे “पं0 दीनदयाल उपाध्यायः जीवन एवं चिंतन“ विषय पर एक दिवसीय विचार संगोष्ठी का समापन हुआ। संगोष्ठी के समापन के दिन मुख्य अतिथि पूर्व विभागाध्यक्ष एवं अधिष्ठाता अर्थशास्त्र विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रयागराज के प्रो0 प्रहलाद कुमार रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 मनोज दीक्षित ने की।
संगोष्ठी के समापन पर मुख्य अतिथि प्रो0 प्रहलाद ने अंत्योदय पर अपनी बात रखते हुए गरीबी पर ध्यान आकृष्ट किया और कहा कि पं0 दीनदयाल जी ने रोटी कपड़ा और मकान में दो शब्द और जोड़ा पढ़ाई और दवाई। उन्होंने देश के विकास में 9 सूत्रीय मंत्र का साझा किया जिसमें स्वच्छता को किसी राजनीति से न जुड़ा जाए। दीनदयाल जी का विचार था कि स्वास्थ्य सुविधाओं का सभी के लिए एक समान हो तथा इसमें अंतर नहीं होना चाहिए स्वरोजगार पर बल दिया। आज के समय में रोजगार के स्किल डेवलपमेंट अत्यधिक आवश्यक है। देश के सभी नागरिकों को सुपौस्टिक भोजन प्राप्त हो जच्चा-बच्चा हेतु विशेष प्रावधान किए जाये। पं0 दीनदयाल जी शिक्षा पर विशेष जोर देते हुए कहा था कि शिक्षा ऐसी हो जो देश के विकास में सहायक हो सके। प्रो0 प्रह्लाद ने कहा कि आज कल जब डिजिटल इकोनाॅमी की बात हो रही है उसे शिक्षा में समाहित किया जाना चाहिए। महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रयास करना होगा।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 मनोज दीक्षित ने कहा कि पं0 दीनदयाल जी का जीवन सादगी भरा रहा है। डॉ0 लोहिया और पं0 दीनदयाल के बीच वैचारिक अंतर होते हुए भी एक साथ मंच का साझा किया करते थे उनका विजन आर्थिक न होकर सबसे ज्यादा सांस्कृतिक था। पंडित जी का मानना था कि सांस्कृतिक शक्ति ही हमारी देश की प्रतिष्ठा रही है। प्रो0 दीक्षित ने कहा कि भारत का समाजवाद बाहर से प्रभावित हो सकता है पर आत्मसात नहीं किया जा सकता है। सांस्कृतिक शक्ति होने के कारण ही आज वैश्विक शक्ति में नंबर वन पर है। कुलपति ने कहा कि भारत को यदि प्रबल या सबल होना है तो सांस्कृतिक ताकत बहुत जरूरी है लेकिन दुनिया मानती है कि जब तक अर्थ नहीं है तब तक प्रसनन्ता नहीं आती है। प्रो0 दीक्षित ने कहा कि दीनदयाल जी के वक्तव्य आज भी हम सभी को प्रभावित करते रहते हैं उनका मानना था कि संस्कृति एवं राज्य को चलाने वाले लोग अलग अलग हो सकते हैं लेकिन संस्कृति शीर्ष पर रही है।
कार्यक्रम के समापन के पूर्व मां सरस्वती एवं पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया। अतिथियों का स्वागत पं0 दीनदयाल उपाध्याय शोध पीठ के समन्वयक एवं संगोष्ठी के संयोजक प्रो0 आशुतोष सिन्हा ने पुष्पगुच्छ स्मृति चिन्ह एवं अंग वस्त्र भेंट कर स्वागत किया गया। कार्यक्रम का संचालन अर्थशास्त्र एवं ग्रामीण विकास विभाग के प्रो0 विनोद कुमार श्रीवास्तव द्वारा किया गया। संगोष्ठी के समापन के पूर्व कौटिल्य प्रशासनिक सभागार में एकात्म मानववाद विषय पर पैनल चर्चा हुई। जिसकी अध्यक्षता प्रो0 ए0 पी0 तिवारी पूर्व अधिष्ठाता एवं विभागाध्यक्ष अर्थशास्त्र विभाग, डॉ0 शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय लखनऊ ने की। विश्वविद्यालय के मुख्य नियंता प्रो0 आर0 एन0 राय, प्रो0 मृदुला मिश्रा, प्रो0 विनोद कुमार श्रीवास्तव, सहित अन्य ने प्रतिभाग किया। तकनीकी सत्र की अध्यक्षता विभाग की विभागाध्यक्ष मृदुला मिश्रा ने किया। तकनीकी सत्र में डॉ0 प्रदीप त्रिपाठी, डॉ0 अलका श्रीवास्तव, सत्येंद्र प्रताप सिंह, अनुजेंद्र तिवारी, अनिल कुमार सहित अन्य ने शोध पत्र प्रस्तुत किया। इस अवसर पर कार्यपरिषद सदस्य सरल ज्ञाप्टे, डाॅ0 आर0के0 सिंह, प्रो0 अशोक शुक्ला,डॉ0 विनय कुमार मिश्रा डॉ0 दिनेश कुमार सिंह, डॉ0 अलका श्रीवास्तव, पल्लवी सोनी, सरिता द्विवेदी, रीमा सिंह सहित बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं एवं प्रतिभागियों ने प्रतिभाग किया।

इसे भी पढ़े  प्राण फाउंडेशन ने 100 मेधावी छात्रों को प्रदान की छात्रवृत्ति

Leave your vote

About Next Khabar Team

Check Also

अवध विवि की गठित समितियों ने दीपोत्सव के कार्यो में लाई तेजी

-मुख्यमंत्री के मंशानुरूप अवध विवि दीपोत्सव में तोड़ेंगा पिछला रिकार्ड अयोध्या। डॉ. राममनोहर लोहिया अवध …

close

Log In

Forgot password?

Forgot password?

Enter your account data and we will send you a link to reset your password.

Your password reset link appears to be invalid or expired.

Log in

Privacy Policy

Add to Collection

No Collections

Here you'll find all collections you've created before.