-वरिष्ठ पत्रकार कृष्णप्रताप सिंह की किताबों ‘डरते हुए’ और ‘ज़ीरो माइलः अयोध्या’ पर हुई चर्चा
अयोध्या । जनवादी लेखक संघ द्वारा वरिष्ठ पत्रकार कृष्णप्रताप सिंह की हाल में प्रकाशित दो किताबों ‘डरते हुए’ (कविता संग्रह) और ‘ज़ीरो माइलः अयोध्या’ (कथेतर गद्य) पर एक पुस्तक-चर्चा का आयोजन देवकाली स्थित नंद कान्वेंट स्कूल के सभागार में 11 बजे से किया गया। गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कवि स्वप्निल श्रीवास्तव ने कहा कि कृष्णप्रताप सिंह की कविताएँ हमारे समय के यथार्थ को एक ख़ास लहज़े में अभिव्यक्त करती हैं। इन कविताओं में उनके व्यंग्य की भंगिमा के साथ-साथ एक गहरे जीवन-दर्शन की भी अभिव्यक्ति है। उन्होंने कहा कि उनकी किताब ‘ज़ीरो माइल’ अयोध्या शहर का प्रामाणिक दस्तावेज़ है, जिसे पढ़ते हुए निरंतर रोचकता बनी रहती है।
वरिष्ठ कवि और साकेत महाविद्यालय के मुख्य नियंता डॉ. अनिल कुमार सिंह ने कहा कि कृष्णप्रताप सिंह की किताब ‘ज़ीरो माइल’ उनके पत्रकारीय जीवन के संघर्ष से हासिल उस जीवनानुभव का निचोड़ है, जो उन्होंने आम आदमी के दृष्टिकोण से किये पर्यवेक्षण से हासिल किया है। उन्होंने कहा कि इस किताब में उद्धरण भी इस तरह आए हैं, जैसे वे किताब का ही एक हिस्सा हों। उनके अनुसार इस किताब को गहराई से पढ़ने और समझने की ज़रूरत है क्योंकि इसमें कई अन्तर्दृष्टियाँ समाहित हैं और ज़ल्दबाज़ी में पढ़ने से उनके छूट जाने का ख़तरा है।
उन्होंने कहा कि जिस तरह से अयोध्या का एक बहुसंख्यक चेहरा बनाया गया है, यह एकमात्र किताब है जो उसका प्रतिपक्ष रचते हुए शहर के इतिहास, वर्तमान और भविष्य पर सम्यक रूप से बात करती है। उन्होंने इस तथ्य को भी रेखांकित किया कि इस किताब का तेवर व्यंग्यात्मक वक्रोक्ति का है, जिसका तीख़ापन लेखक के जीवन से हासिल हुआ है। इसके पहले किताबों का परिचय देते हुए कवि-प्राध्यापक डॉ. विशाल श्रीवास्तव ने कहा कि ‘ज़ीरो माइल’ किताब कई विधाओं का समुच्चय है, इसमें संस्मरण भी है, इतिहास भी है और कथात्मकता भी है, इसे एक संस्मरणात्मक सांस्कृतिक शहरनामा कहा जाना ही उचित होगा। उन्होंने कहा कि अयोध्या के इतिहास और उसकी विभिन्न धार्मिक परम्पराओं के साथ ही लेखक ने नवाबी दौर, 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में शहर की भूमिका, गांधीजी के आगमन और किसान आन्दोलन जैसी महत्वपूर्ण घटनाओं का विस्तार से ज़िक्र इस किताब में किया है।
शहर की धर्मनिरपेक्ष संस्कृति के वैभव और उसके क्षरण की कथा भी इसमें मौजूद है। शहर का वर्तमान परिदृश्य और उसकी कस्बाई गंध भी पूरी आलोचनात्मक दृष्टि के साथ किताब में दर्ज़ हुई है, जिसे अवश्य पढ़ा जाना चाहिए। उनकी कविताओं के संग्रह ‘डरते हुए’ के बार में बात करते हुए उन्हांने कहा कि यह स्तब्धकारी प्रतीत होता है कि एक व्यक्ति जिसका पूरा जीवन लड़ते हुए बीता हो, उसकी किताब का नाम ‘डरते हुए’ हो, लेकिन दरअसल एक आम आदमी के डर की विविधवर्णी अभिव्यंजनाएँ और उसका प्रतिरोध इन कविताओं में बखूबी दर्ज़ हुआ है। ‘सिंहासन किसी से नहीं डरते बस एक डरे हुए आदमी को छोड़कर’ जैसी पंक्तियाँ उनके इस प्रतिरोधी काव्यात्मक तेवर को अभिव्यक्त करती हैं। उन्होंने कृष्णप्रताप सिंह की ‘डरते हुए’, ‘वे और मैं’, ‘अभी और जलूँगा मैं’, ‘दुर्दिन में पसीना’ और ‘बहुत दिनों से’ जैसी कविताओं से उद्धरण प्रस्तुत करते हुए अपनी बात रखी।
कवि-चिंतक आर.डी.आनन्द ने कहा कि कृष्णप्रताप सिंह की विशेषता उनकी कहने की शैली है। ‘ज़ीरो माइल’ किताब उनके जीवन-संघर्ष का आईना है, जिसमें शहर अपनी सम्पूर्णता के साथ उपस्थित है। इसी तरह उनकी कविताएँ, जो अपने विस्तार में छोटी हैं, अत्यंत मारक व्यंग्य के साथ अपने कथ्य को अभिव्यक्त करती हैं। इन कविताओं में विन्यस्त राजनीतिक संकेतों का महत्व समय के सापेक्ष असंदिग्ध है। हिन्दी-अवधी के वरिष्ठ कवि आशाराम जागरथ ने कहा कि ये दोनों किताबें कृष्णप्रताप सिंह के लम्बे रचनात्मक जीवन का प्रतिफल हैं। उन्होंने विशेष रूप से कविता संग्रह की चर्चा करते हुए कहा कि कई बार उनके पत्रकार रूप के कारण उनका कवि अलक्षित रह गया है, किन्तु यह संग्रह यह सिद्ध करता है कि वे एक परिपक्व कवि हैं। उनकी पुस्तक ‘ज़ीरो माइल’ आज के समय में एक ज़रूरी काम की तरह सामने आई है, आज अयोध्या पर कई पुस्तकें लिखी जा रही हैं, लेकिन यह पुस्तक इसलिए अलग है कि एक पत्रकार और अयोध्या के नागरिक के रूप में कृष्णप्रताप सिंह ने समय का सच्चा बयान इसमें प्रस्तुत किया है।
विद्यालय के प्रबंधक और सृजनधर्मी राजेश नन्द ने कहा कि पुस्तकें झंझावातों से जूझते व्यक्ति के लिए एक रचनात्मक सहारे की तरह होती हैं और ये दोनों पुस्तकें अपने महत्वपूर्ण कथ्य के कारण यह काम बखूबी सम्पन्न करती हैं। उन्होंने कहा कि पुस्तक-संस्कृति का एक समाज में निरंतर विकास होना चाहिए। कार्यक्रम को युवा कवयित्री कंचन जायसवाल ने भी सम्बोधित किया और पुस्तकों पर अपनी राय रखी। कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद देते हुए गोष्ठी के संयोजक और शहीद भगत सिंह स्मृति ट्रस्ट के चेयरमैन सत्यभान सिंह जनवादी ने कहा कि यह एक रेखांकित करने योग्य बात है कि एक शहर की संस्कृति का दस्तावेज़ीकरण उसके इतिहास की व्याख्या के लिए बेहद ज़रूरी है। कृष्णप्रताप सिंह की यह किताब अपने शहर के अतीत और वर्तमान को पूरी ईमानदारी के साथ अभिव्यक्त करती है।
उन्होंने इस अवसर पर मौजूद अतिथियों, वक्ताओं और उपस्थित बुद्धिजीवी वर्ग के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया। इस अवसर पर बीमाकर्मचारी संघ के सचिव श्री रविशंकर चतुर्वेदी,नन्द कान्वेंट स्कूल के प्रबंधक राजेश नन्द, कंचन जायसवाल, अखिलेश सिंह, आफाक़ उल्लाह, जयप्रकाश श्रीवास्तव, पूजा श्रीवास्तव, निर्मल कुमार गुप्त, विजय श्रीवास्तव, अनीता यादव, घनश्याम, महावीर, मालती तिवारी, सरिता, शिवांगी वर्मा, अर्चना पाण्डेय, मीरा मिश्रा, इन्दु कुमारी, फरहीन, सृष्टि श्रीवास्तव, अतुल कुमार श्रीवास्तव, सुमित श्रीवास्तव, रविकांत, प्रिंस कुमार, मंगलाप्रसाद मिश्र,धीरज द्विवेदी ऋषिराज, शैलेन्द्र कुमार, खुशबू मौर्या, सौम्या श्रीवास्तव सहित जनपद के कवि-लेखक एवं संस्कृतिकर्मी उपस्थित रहे।