-जुआखोरी बन रही है घातक मनोमहामारी
अयोध्या। जुआखोरी एक मनोरोग है जिसे कम्पल्सिव गैम्बलिंग तथा इस लत से ग्रसित लोगो को कम्पल्सिव गैम्बलर कहा जाता है । ऐसे लोग जुआ खेलने के नये नये तरीके व मौके खोजते रहते है । क्रिकेट मैच त्योहार विशेष या अन्य मुद्दों विशेष पर यह लत इस कदर हावी हो जाती है कि वे लगातार अपनी नींद व भूख त्यागकर सट्टेबाज़ी या जुआ खेलने में जुट जाते हैं।
जुआखोरों में नशाखोरी ,अवसाद, उन्माद, हिंसा, मारपीट तथा परघाती या आत्मघाती प्रवृत्ति भी होती है। ऑनलाइन गैंबलिंग या सट्टेबाजी तो जंगल की आग की तरह किशोर व युवाओं को मनोरोगी व दीवालियापन की तरफ ले जा रही है। यह बातें परमहंस महाविद्यालय में भारत सरकार के उपक्रम सिफ्प्सा द्वारा स्थापित युवा मनो परामर्श केन्द्र क्यू क्लब में आयोजित जुआखोरी मनो-महामारी विषयक कार्यशाला में डॉ आलोक मनदर्शन द्वारा दी गयी।
जिला चिकित्सालय के किशोर व युवा मनोपरामर्शदाता डा. आलोक मनदर्शन के अनुसार कम्पल्सिव गैम्बलिंग से ग्रसित लोगों में जुआखोरी के प्रति मादक खिचाव पैदा बार बार होता है, भले ही कितनी भी आर्थिक हानि हो चुकी हो। इन लोगों के ब्रेन में डोपामिन नामक मनोरसायन की बाढ़ आ जाती है जिससे तीव्र मनोखिचाव पैदा होता है। इसलिये ऐसे लोगों को डोप हेड भी कहा जाता है। यह लत ओब्सेसिव कंपल्सिव मनोरोग के अंतर्गत आता है । यह एक प्रोसेस अडिक्शन है और किसी अन्य नशे की लत की तरह इसकी भी मात्रा बढ़ती जाती है जिसे एडिक्शन टॉलरेंस कहा जाता है।
उन्होंने बताया कि गेमिंग व बेटिंग एप्लीकेशन के तेज़ी से बढ़ते बाज़ार के उत्तेजक लुभावने सेलेब्रिटी विज्ञापन युवा मन को इस तरह मनोअगवापन की तरफ ले जा रहें हैं कि लत लगने की वैधानिक चेतावनी भी उन्हे सतर्क करने मे विफल है। उन्होंने बताया कि कम्पल्सिव गैम्बलर को प्रायः यह पता नहीं होता कि वह एक मनोरोग का शिकार हो चुका है। उसको इस बात के लिए जागरूक किया जाना चाहिए तथा जुआखोरी की लत कर पूरी न हो पाने पर पैदा होने वाली बेचैनी से निपटने के लिये बेहैवियर ट्रेनिंग व दवाए काफी मददगार है।
गैम्बलिंग ग्रुप से पर्याप्त दूरी बनाते हुये अन्य रचनात्मक कार्यों में खुद को व्यस्त रखे। पारिवारिक भावनात्मक सहयोग व सकारात्मक माहौल का भी बहुत योगदान होता है। काग्निटिव बिहैवियर थिरैपी व इम्पल्स कन्ट्रोल थिरैपी बहुत ही कारगर है। कार्यक्रम की अध्यक्षता क्यू क्लब के नोडल ऑफिसर प्राचार्य डा सुनील तिवारी ने तथा संयोजन कार्यक्रम अधिकारी डा अमरजीत व डा सुधांशु ने किया।