अयोध्या। जिला चिकित्सालय के बच्चा वार्ड की व्यवस्था अत्यंत खस्ताहाल एवं दयनीय है छोटे-छोटे मासूम बच्चे जिनमें से कइयों की हालत अत्यंत दयनीय थी और उनकी देखरेख करने वाला बच्चा वार्ड में कोई भी स्टाफ नहीं था यह स्थिति लगभग 1 घंटे तक बनी रहे एक घंटा इंतजार करने के बाद भी कोई भी जिम्मेदार स्टाफ बच्चा वार्ड में तड़पते बच्चों को देखने के लिए नहीं आया यह सूचना देने के बाद की मौके पर कुछ प्रेस कर्मी भी आए हुए हैं मौके पर डॉ. ए.के. वर्मा बच्चा वार्ड में आए और पत्रकार के द्वारा यह पूछने पर कि डॉक्टर साहब बच्चा वार्ड में बच्चों की हालत सीरियस है और उनकी देखरेख करने वाला कोई भी स्टाफ विगत 1 घंटे से नहीं है यह सुनते ही डॉक्टर एके वर्मा बिगड़ गए और कहा कि ड्यूटी लगाना हमारी जिम्मेदारी नहीं है यह आप सीएमएस से पूछे, आप जैसे मीडिया कर्मियों की वजह से ही सरकारी अस्पतालों के डॉक्टर नौकरी छोड़ दे रहे हैं और मैं भी छोड़ने वाला हूं और उन्होंने यह भी कहा कि अगर आप लोग पत्रकार हैं तो आप भर्ती करने वाली सुरक्षा एजेंसियों के पास जाइए और उनसे पूछिए कि जिस स्टाफ को उन्होंने ड्यूटी में लगाया था उसे हटाया क्यों और आप जो कुछ भी कर सकते हैं वह कर लीजिए चाहे आप डीएम साहब से बोल दीजिए या फिर आप मुख्यमंत्री से शिकायत कर दीजिए वैसे भी हमें बहुत दिनों तक नौकरी नहीं करनी है।
सरकारी डाक्टरों ने तलाश लिया कमाई का नया जरिया, कमीशन के लालच में लिख रहे सीटी स्कैन
अयोध्या। जिला अस्पताल में बाहर से दवाइयां लिखने की मनाही और जिला प्रशासन की सख्ती के बाद चिकित्सकों ने कमाई का एक नया जरिया खोज निकाला है। जिला अस्पताल में धड़ल्ले से सीटी स्कैन कराने की एडवाइज लिखी जा रही है। इसके पीछे खेल मोटी कमीशन खोरी का है।
प्रदेश सरकार स्वास्थ्य सेवाओं को आमजन तक पहुंचाने के लिए कवायद में जुटी है। सरकार की ओर से गरीब बेसहारा को इलाज उपलब्ध कराने के लिए आयुष्मान योजना चलाई गई है तो प्रदेश में मेडिकल कॉलेजों का जाल बिछाया जा रहा है। सरकार की कोशिश हर नागरिक तक सरकारी स्वास्थ्य सुविधा पहुंचाने और उपलब्ध कराने की है लेकिन जिम्मेदार ही सरकार की नियति को पलीता लगा रहे हैं। बीते 9 सितंबर को जिलाधिकारी अनुज कुमार झा ने जिला अस्पताल का औचक निरीक्षण किया था। निरीक्षण के दौरान जिलाधिकारी ने जिला अस्पताल के चिकित्सकों की ओर से बाहर की महंगी नान ब्रांडेड दवाई लिखे जाने का मामला पकड़ा था। इसको लेकर जिला अस्पताल के तीन चिकित्सकों को कड़ी फटकार लगाई थी और भविष्य में ऐसी पुनरावृति होने पर सीधे मुकदमा दर्ज करवा जेल भिजवाने की बात कही थी। जिलाधिकारी के सख्त तेवर के बाद चिकित्सकों ने बाहर की दवाइयां लिखनी बंद कर दी तो डॉक्टरों के आसपास मड़राने आने वाले दलालों और सांठगांठ रखने वाले मेडिकल स्टोर संचालकों में खलबली मच गई। दलालों व काकस के दबाव के बावजूद अस्पताल के डॉक्टर बाहर की दवाएं लिखने को तैयार नहीं हुए तो काकस ने एक नया फार्मूला इजाद कर लिया। मरीजों को तगड़ी आर्थिक चोट पहुंचा कर अपनी जेब भरने वाले इस काकस ने सांठगांठ वाले डॉक्टरों से अल्ट्रासाउंड और सीटी स्कैन की एडवाइस लिखवानी शुरू कर दी है। इस गोरखधंधे से दोनों की चांदी है, डॉक्टरों को भी मोटा कमीशन मिल रहा है और दलालों को भी। साथ ही सांठगांठ वाले पैथोलॉजी की पौ बारह है। जानकारों की माने तो एक अल्ट्रासाउंड पर डॉक्टरों को 300 और सीटी स्कैन पर 1000 से 12 सो रुपए तक कमीशन मिल रहा है। खास बात यह है कि जिला अस्पताल की सीटी स्कैन मशीन विगत ढाई साल से खराब पड़ी है इसके चलते मरीजों को बाहर की पैथोलॉजी पर ही सीटी स्कैन कराने की मजबूरी है। व्यवस्थागत मजबूरी का डॉक्टर और दलाल भरपूर उपयोग कर रहे हैं और अपनी जेब भारी करने में जुटे हैं। डॉक्टरों की बेखौफी का आलम यह है कि ऐसे डॉक्टर जो विधिक रूप से सीटी स्कैन और अल्ट्रासाउंड की एडवाइस लिखने के लिए इनटाइटल नहीं है वह भी धड़ल्ले से यह एडवाइस लिख रहे हैं। नियम के मुताबिक अल्ट्रासाउंड और सीटी स्कैन के एडवाइस य तो विशेषज्ञ चिकित्सक लिख सकता है य फिर सर्जन, लेकिन धड़ल्ले से यह एडवाइस इमरजेंसी ड्यूटी के डॉक्टरों की ओर से भी लिखी जा रही है।
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