लोकतन्त्र में तानाशाही का भाव समाज को पहुंचाता है क्षति

by Next Khabar Team
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लोक प्रशासन के समक्ष समसामयिक मुद्दे विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का हुआ समापन

फैजाबाद। डाॅ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय परिसर के संत कबीर स्भागर में दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार के अवसर पर लोक प्रशासन के समक्ष समसामयिक मुद्दे का समापन सत्र आयोजित किया गया। इसके सह प्रायोजक राजीव गांधी युवा विकास संस्थान, भारत सरकार तमिलनाडू रही। इस सत्र के मुख्य अतिथि प्रो कुलपति केरल विवि प्रो. के जया प्रसाद व विशिष्ट अतिथि काशी हिन्दू विवि राजनीति विज्ञान विभाग के प्रो0 के0 के0 मिश्रा रहे। समापन सत्र की अध्यक्षता कुलपति आचार्य मनोज दीक्षित ने किया।
समापन सत्र को सम्बोधित करते हुए मुख्य अतिथि प्रो. के जया प्रसाद ने कहा कि सुशासन हमारी पहली प्राथमिकता है। भारतीय समाज का मूल स्वरूप एवं इसकी मूलभूत आवश्यकताएं क्या हैं यह समझना हमारे लिए नितान्त आवश्यक है। क्योंकि सिद्धान्त और प्रयोग दोनों के बीच बड़ा फासला है इसे ठीक ढंग से समाप्त करना हमारी नीति का हिस्सा होना चाहिए। हम किस प्रकार की प्रषासनिक नीति विकसित करें जो समाज के सभी वर्गों के लिए उपयोगी हो और समाज और संस्कृति का मूल स्वरूप भी नष्ट न हो। विशिष्ट अतिथि प्रो0 के0 के0 मिश्र ने समापन सत्र को सम्बोधित करते हुए कहा कि सेमिनार लोगों के संदेष को पहुंचाने का कार्य करता है। लोकतन्त्र में जनता ही लीडर होती है इसमें तानाशाही का भाव समाज को क्षति पहुंचाता है। भारतीय समाज की आदिकाल से व्यवस्था रही कि जो सदैव तानाशाही के विरूद्ध ही संदेश दिया है। भारत लोकतन्त्र की सबसे बड़ी तस्वीर है, भारत के रक्त में, जीवन में, संस्कृति में, लोकतान्त्रिक परिपक्वता रही है। देष की संस्कृति व धर्मग्रन्थ इसी व्यवस्था के पोषक रहे है। उन्होंने महाभारत के षान्ति पर्व का उल्लेख करते हुए कहा कि राजा कालस्य कारणम्। लोकतन्त्र में राजनीति व्यवस्था का लीडर नीति बनाती है।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कुलपति आचार्य मनोज दीक्षित ने कहा कि प्राचीन काल से ही भारत विद्या की तपो भूमि रहा है। भारत की संस्कृति में लोकतन्त्र पग पग पर स्पष्ट रूप से परिभाषित होता चला आ रहा है। हम आप दोनों पढ़े, हम आप दोनों बढ़े, जैसी गुरू शिष्य परम्परा हमारी विरासत का एक महत्वपूर्ण अंग रहा है। भारत की संस्कृति में ही सब कुछ बसता है। प्राचीन काल से ही भारतीय विश्वविद्यालय विश्व स्तर के शैक्षिक व गुणवत्ता परक शोध कार्यों के लिए विश्व प्रसिद्ध रहे परन्तु कुछ समय में हम सभी ने अपनी उन बौद्धिक सम्पदाओं को खो दिया जो कभी हमारी पहचान के रूप में जाना जाता रहा है। आज की स्थिति यह है कि गुणवत्तापरक शोध कार्यों के लिए हमारे पास कुछ ही गिने-चुने संस्थान बचे हैं। समापन सत्र को प्रो0 अवधेश कुमार उड़ीसा ने भी सम्बोधित किया। उन्होंने कहा कि नौकरषाही की प्रधानता स्वस्थ्य समाज के लिए घातक है। लोक प्रशासन विकासशील देषों के लिए उसी देश की रीतियों के अनुरूप होना चाहिए। लोक प्रषासन में जागरूकता एवं नैतिकता की आवश्यकता होती है तभी सजग समाज का निर्माण हो सकता है।
इस अवसर पर प्रो0 प्रदीप परिदा रायबरेली, प्रो0 ए0 चन्द्र मोहन, कुलसचिव राजीव गांधी नेषनल इंस्ट्यिूट आॅफ तमिलनाडू, विभागाध्यक्ष प्रो0 मृदुला मिश्रा, प्रो0 इन्द्रजीत सोढ़ी, प्रो आषुतोष सिन्हा, प्रो0 सिद्धार्थ षुक्ला, कार्य परिषद सदस्य ओम प्रकाष सिंह, डाॅ0 षैलेन्द्र वर्मा, डाॅ0 विनोद चैधरी, डाॅ0 प्रिया कुमारी, डाॅ0 प्रदीप कुमार त्रिपाठी, के0 के0 मिश्र, अवधेश यादव, विनीत सिंह, आषीष मिश्रा, सरिता द्विवेदी, पल्लवी सोनी सहित बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन आयेाजक सचिव डाॅ0 विनोद श्रीवास्तव ने किया।

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