-सिंधु संस्कृति एवं सनातन जीवन मूल्य विषय पर हुई संगोष्ठी
अयोध्या। 1947 में भारत का भूगोल बँटा था किंतु अवधारणा नहीं। सिंध का भू-भाग पाकिस्तान को मिला तो क्या उसकी अवधारणा भी उसे मिल गई? भूगोल बँट सकता है अवधारणा नहीं। यह प्रश्नात्मक विचार श्री अनादि पंचमुखी महादेव मंदिर, गुप्तारघाट के आचार्य मिथिलेश नंदिनी शरण ने व्यक्त किए हैं। वे डॉ० राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय में संचालित अमर शहीद संत कँवरराम साहिब सिंधी अध्ययन केंद्र द्वारा आयोजित सिंधु संस्कृति एवं सनातन जीवन मूल्य विषय पर अपने विचार व्यक्त कर रहे थे।
उन्होंने प्रश्न पूछा कि क्या सिंध का भू-भाग उतना ही था जो सरहद के उस पार पाकिस्तान के पास है और उसे स्वयं ही स्पष्ट भी किया कि जब हिंदुस्तान और हिंदुत्व की बात होगी तो उसकी परिभाषा सिंध से ही बनेगी। सिंध के बिना हिंद की परिकल्पना की ही नहीं जा सकती क्योंकि भारत की ऋषि परंपरा सिंध और सिंधु से ही अवधारित होती है। आचार्य श्री मिथिलेश ने कहा कि सिंधु ही मूल संस्कृति है और यह संस्कृति तब तक नष्ट नहीं हो सकती जब तक उस पर विश्वास कायम है। विश्वास खत्म होने पर संस्कृति नष्ट होती है। उन्होंने मंदोदरी, मारीचि और विभीषण का रावण में विश्वास खत्म होने से उसके नाश हो जाने के कथानक से इसे स्पष्ट किया। उन्होंने एक और बात कही कि संस्कृति की प्रतिष्ठा से पहले स्वयं से पूछें कि मैं अन्यों से किस प्रकार भिन्न हूँ। इसका उत्तर ही सनातन सिंधु संस्कृति को प्रतिष्ठित करेगा। आचार्य श्री ने अपने व्याख्यान में कहा कि सिंधी समाज ने जीवित रहने का मूल्य विभाजन की कसौटी पर कस कर चुकाया है, किंतु अब वे संस्कृति की नहीं समाज के अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि संस्कृति के क्षरण से समाज भी नहीं बच सकता। सिंधियों ने भौतिक सम्पदा तो प्राप्त कर ली किंतु सांस्कृतिक प्रतिष्ठा प्राप्त करने में पीछे रह गए हैं। कार्यक्रम की अध्यक्षता अखिल भारतीय साहित्य परिषद, महानगर इकाई के संरक्षक प्रो० लक्ष्मीकांत सिंह ने की।
अध्ययन केंद्र के मानद निदेशक प्रो० आर० के० सिंह ने अभ्यागतों का स्वागत एवं आचार्य श्री का परिचय कराया। संयोजन एवं संचालन अध्ययन केंद्र के मानद सलाहकार ज्ञानप्रकाश टेकचंदानी सरल ने किया। कार्यक्रम के अंत में हरीशंकर सफरी वाला और विश्वप्रकाश रूपन की शंकाओं को आचार्य श्री ने समाधान किया। इस आयोजन में प्रो० राजीव गौड़, डॉ० दिनेश प्रताप सिंह, विनीत सिंह, डॉ० मुकेश वर्मा, डॉ.राजेश सिंह, डॉ० जर्नादन उपाध्याय, सिंधी समाज के गणमान्य सन्नी वीरानी, राजकुमार मोटवानी, लक्ष्य टेकचंदानी, संतोष मेहता, संजय, शालिनी राजपाल, साक्षी साधवानी, मोहन तिवारी, अरूण सिंह, आशीषकुमार जायसवाल, अमनविक्रम सिंह, अनीता देवी आदि प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।