श्रीरामचरित मानस श्रीराम का ग्रंथावतार : डॉ जनार्दन उपाध्याय

by Next Khabar Team
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-गोस्वामी तुलसीदास पखवाड़े के अवसर पर आयोजित हुआ व्याख्यान एवं कवि गोष्ठी

अयोध्या। श्रीराम मंगलावतार हैं और श्रीरामचरित मानस भगवान श्रीराम का ग्रंथावतार है। ऐसा विद्वानों का मत है। और यह धार्मिक, अध्यात्मिक, भौतिक, प्रयोग और अनुप्रयोग के धरातल पर समय-समय पर सिद्ध भी होता रहा है। ये विचार तुलसी साहित्य के मर्मज्ञ डॉ. जनार्दन उपाध्याय ने व्यक्त किए।

डॉ उपाध्याय अखिल भारतीय साहित्य परिषद, डॉ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के अवधी भाषा विभाग व अमर शहीद संत कंवरराम साहिब सिंधी अध्ययन केंद्र के संयुक्त तत्वावधान में गोस्वामी तुलसीदास पखवाड़े के अवसर पर आयोजित व्याख्यान एवं कवि गोष्ठी को मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित कर रहे थे। व्याख्यान का विषय था गोस्वामी तुलसी दास का लोक चिंतन। यह व्याख्यान अवध विश्वविद्यालय के सिंधी अध्ययन केंद्र के सभागार में आयोजित हुआ।

डॉ. उपाध्याय ने कहा कि भारतीय आर्ष ग्रंथों में जिस प्रकार से काव्य व कथा दोनों प्रकार के वैभव निहित हैं, ठीक उसी प्रकार से गोस्वामी जी के साहित्य में भी यह अनुशासन देखने को मिलता है। कविता में कोई बंद बार-बार सुनने की इच्छा होती है, और कथा में आगे की कथा जानने की जिज्ञासा होती है, ये दोनों तत्व गोस्वामी जी के ग्रंथों में विशेष रूप से श्रीरामचरित मानस में समाहित हैं।

उन्होंने तुलसी साहित्य में लोक चिंतन पर कहा कि किसी भी मनीषी की रचना के तीन तत्व प्रमुख होते हैं, एक आध्यात्मिक-धार्मिक चिंतन, दूसरा काव्य और तीसरा लोक मंगल की भावना। भगवान श्रीराम तो मंगलावतार हैं। उनका पूरा जीवन ही लोक कल्याण को ही समर्पित है। उनकी कथा भी उनके चरित्र के अनुरूप ही होगी। गोस्वामी जी ने तो लोक को प्रथम रखा और लोकभाषा में ही अपनी रचनाएं कीं। व्याख्यान की भूमिका बीएनकेबी स्नातकोत्तर महाविद्यालय, अकबपुर अंबेडकरनगर के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष प्रो. सत्य प्रकाश त्रिपाठी ने प्रस्तुत की।

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उन्होंने कहा कि गोस्वामी जी का कालखंड ऐसा था कि देश के राजे-रजवाड़े जिन पर लोक हित की चिंता का दायित्व था, वे कंचन-कामिनी में फंसे थे, ऐसे में गोस्वामी जी ने लोकभाषा में एक आशा का संचार किया और भगवान राम के धनुर्धारी रूप को लोकमंगलकारी स्वरूप जन मानस के समक्ष लोकभाषा में अपनी रचनाओं के माध्यम से प्रस्तुत किया।

पूरे देश में जिस प्रकार से धर्मांतरण और शोषण का कुचक्र विदेशी आक्रांता शासक चला रहे थे, उस काल में एक जागृति उत्पन्न की। व्याख्यान के प्रारंभ में अतिथियों का स्वागत साकेत महाविद्यालय के अंग्रेजी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ असीम त्रिपाठी व सिंधी अध्ययन केंद्र के सलाहकार ज्ञानप्रकाश टेकचंदानी सरल ने किया।

कार्यक्रम का आरंभ संस्था के संरक्षक प्रो. लक्ष्मीकांत सिंह की वाणी वंदना से हुआ। कार्यक्रम का संचालन अवधी विभाग की प्राध्यापिका डॉ. प्रत्याशा मिश्र ने तथा धन्यवाद ज्ञापन राम प्रकाश त्रिपाठी ने किया। सहायक आचार्य कपिल कुमार, नीलम वरियानी व सीतू वरियानी सहित अन्य उपस्थित थे।

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