विश्व किडनी दिवस विशेष : भारत मे लगभग 17.2 प्रतिश लोग किडनी रोग से पीड़ित होते हैं
अयोध्या। यूं तो मनुष्य शरीर ही बहुमूल्य है किंतु शरीर मे रक्त की शुद्धता हेतु विषाक्तता के उत्सर्जन का महत्वपूर्ण कार्य जिस प्राकृतिक छन्नी द्वारा किया जाता है उसे ही किडनी या गुर्दे कहते है यह संख्या में दो और पीठ की तरफ रीढ़ की हड्डी के दोनों तरफ अस्थिपंजर के नीचे पाई जाती है।अध्ययन बताते है कि भारत मे लगभग 17.2 प्रतिश लोग किडनी रोग से पीड़ित होते है और 6 प्रतिशत क्रोनिक रोगी हैं। किडनी रोग धीरे धीरे विकसित होते हैं इसलिए समय पर ध्यान न देने से मृत्यु का आठवां सबसे बड़ा कारण है, अतः मार्च माह के दूसरे गुरुवार को विश्व किडनी दिवस मनाया जाता है
उक्त जानकारी देते हुए होम्योपैथी चिकित्सा विकास महासंघ के महासचिव व होम्योपैथी विशेषज्ञ डॉ उपेन्द्र मणि त्रिपाठी ने बताया किडनी का मुख्य कार्य हमारे रक्त यूरिया, क्रिएटिनिन, एसिड व अन्य नाइट्रोजनयुक्त विषाक्त पदार्थों को छानकर मूत्रमार्ग से शरीर से बाहर करना, रक्तनिर्माण में सहायता, हड्डियों की मजबूती व रक्तचाप को नियंत्रित करना है। इसलिए आहार विहार में असंतुलन, किसी अन्य बीमारी के उपचार में बिना चिकित्सक के परामर्श के दर्द, या अनावश्यक लंबे समय तक एंटीबायोटिक्स, पैरासिटामोल या अन्य दवाओं का सेवन, अथवा किसी जन्मजात विकृति या आनुवंशिक कारणों से व्यक्ति की किडनी की कार्यक्षमता प्रभावित होती है और उसमे एक्यूट रीनल फेल्योर, पथरी, एसिडोसिस, सिस्ट, ट्यूमर, संक्रमण आदि रोग उत्पन्न होने की संभावनाएं प्रवृत्त हो जाती हैं।
कारणो पर चर्चा करते हुए डॉ उपेन्द्र मणि त्रिपाठी ने कहा किडनी को प्राकृतिक छन्नी कहा गया अतः इसे प्रभावित करने वाले कारक किडनी से पहले भोजन या औषधीय विषाक्तता, अधिक रक्तस्राव, हृदयरोग, या कम पानी पीने से हुए डिहाइड्रेशन, या किडनी में नेफ्रोन में सूजन, उच्चरक्तचाप, अथवा किडनी के बाद की नलियों में संकरापन,सूजन या अवरोध हो सकता है। पहचान के लक्षण बताते हुए डॉ त्रिपाठी ने कहा रक्त में खनिज व लवणों के असंतुलन से शरीर मे थकान, सुस्ती, किसी कार्य मे मन न लगना, विचारों में भ्रम जैसी स्थिति,रात्रि में बार बार मूत्र त्याग की इच्छा, प्रोटीन या आयरन मूत्र में जाने से मूत्र में सफेद झाग का बनना, पैर के टखनों व पिंडलियों में दर्द, सूजन, सामान्यतः प्रातः काल दिखने वाली आंखों की निचली पलक के नीचे सूजन प्रथम दिखने वाला संकेत माना जाता है, बाद में चेहरे पर सूजन, मूत्रमार्ग संक्रमण होने पर मूत्रत्याग के साथ या बाद में जलन दर्द, पथरी होने पर रीनल क्षेत्र में भारीपन दर्द, जो क्रमशः आगे नीचे बढ़ते हुए मूत्र की थैली नाभि के नीचे तक जाता है, कभी कभी मूत्र में रक्त, का आना, भूख की कमी, नींद के समय दिक्कत,त्वचा सूखी व खुजली, इलेट्रॉलाईट्स असंतुलन से मांसपेशियों में ऐंठन, तनाव, किडनी रोगों की संभावना के प्रमुख पहचान के लक्षण हैं।
क्या करायें जांच
उपरोक्त में से यदि कोई लक्षण नजर आएं तो तुरंत चिकित्सकीय परामर्श लेना चाहिए जिसमें सामान्यतः रक्त जांच में क्रियेटिनिन , सोडियम, आदि की जांच , अल्ट्रासाउंड, केयूवी एक्स रे, आदि के माध्यम से सही रोग की पहचान कर उचित पद्धति से उपचार करना चाहिए ।
क्या है डायलिसिस
रक्त की बढ़ी हुई विषाक्तता की पहचान क्रियेटिनिन के बढ़े हुए स्तर से की जाती है और तब डियलिसिस सलूशन को अर्ध पारगम्य झिल्ली के माध्यम से शरीर की रक्तनलियो के रक्त को छानने की विधि अपनायी जाती है।
क्या हैं होम्योपैथी में संभावनाएं
होम्योपैथी व्यक्ति के समग्र लक्षणों पर आधारित समान शक्तिकृत औषधि निर्वाचन प्रक्रिया से शरीर की प्रतिरोध क्षमता व अंगों की क्रियाशीलता को पुनर्स्थापित करने की पद्धति है। पथरी रोग में होम्योपैथी तो जनसामान्य में होम्योपैथी के विश्वास का प्रमाण व पहचान है।यह दवाएं न केवल पथरी को पूरी तरह ठीक ही करती हैं अपितु व्यक्ति में बार बार पथरी बनने की प्रवृति को भी जड़ से मिटाती हैं , कार्यक्षमता को पुनर्स्थापित कर व्यक्ति को डायलिसिस से बचाया जा सकता है या वापस लाया जा सकता है।