-बसंत पंचमी से प्रारंभ होकर गंगा दशहरा तक चलती है साधना
अयोध्या। अयोध्या तपस्या की भूमि है, यहां पर अनंतो संत हुए है। जिन्होंने अपने जप तप के बल पर पूरी दुनिया में अपने प्रभुत्व को स्थापित किया है। वैष्णो त्यागी संतो महात्माओं में पंचाग्नि में बैठकर साधना करने का बहुत महत्व है। यह साधना बसंत पंचमी से प्रारंभ होकर गंगा दशहरा तक चलती है।जो महात्मा पंचाग्नि तपस्या का संकल्प लेता है, उसे यह तपस्या 18 वर्षों तक लगातार करनी होती है। किसी कारण बस एक भी दिन खंडित होने पर पुनः यह प्रक्रिया एक से प्रारंभ होकर 18 वर्षों तक चलेगी। यह साधना खुले आसमान में होती है इसमें अपने चारों तरफ आग का गोला बनाकर सर पर अग्नि रखकर जपतप अनुष्ठान करना होता है।
अयोध्या में त्यागी संतो के आश्रमों में बसंत पंचमी के पावन तिथि से अनुष्ठान प्रारंभ हो गया है और इसी क्रम में धर्मपथ पर स्थित श्री संकट मोचन हनुमान किला में संतों ने पंचाग्नि तपस्या अनुष्ठान को प्रारंभ कर दिया है जो प्रतिदिन सुबह लगभग 10 बजे इस तपस्या में बैठते हैं और जब सूर्य भगवान अपनी पूर्ण ऊष्मा प्रदान करते हैं तब तक यह तपस्या करते हैं माघ मास से प्रारंभ होकर यह तपस्या फागुन चैत्र वैशाख ज्येष्ठ मास में जब सूर्य भगवान पृथ्वी पर सबसे अधिक उसका प्रदान करते हैं उसे समय भी यह तपस्या होती है और इसका विश्राम बरसात प्रारंभ होने के पहले गंगा दशहरा के अवसर पर समापन किया जाता है पुनः अगले वर्ष बसंत पंचमी से यह तपस्या प्रारंभ होती है।
अवध उत्थान समिति के अध्यक्ष पंचाग्नि साधक संकट मोचन हनुमान किला के पीठाधीश्वर महंत परशुराम दास ने बताया कि श्रीसंकट मोचन हनुमान किला मंदिर में बसंत पंचमी को लगभग आधा दर्जन संतों ने संकल्प के साथ पंचाग्नि तपस्या का शुभारंभ किया उन्होंने बताया कि इसको संतों की भाषा में धूनी तपस्या भी कहा जाता है और जब ठंड का मौसम समाप्त होता है और बसंत ऋतु प्रारंभ होती है और वर्षा ऋतु तक यह तपस्या की जाती है
उन्होंने बताया कि अयोध्या में दर्जनों संत इस तपस्या को करते हैं और कई संत तो ऐसे हैं जो एक बार 18 वर्ष का संकल्प पूरा करके दूसरी बार कर रहे हैं उन्होंने बताया कि गुरुदेव भगवान और प्रभु श्री राम के आशीर्वाद से मैं भी यह साधना कर रहा हूं और इसका विश्राम गंगा दशहरे के दिन सभी संत मां सरयू के पूजन हवन यज्ञ तर्पण के साथ करते हैं।