खेती व संस्कृति दोनों में बसतें है राम : परिहार

by Next Khabar Team
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”लोक मे राम” विषय पर आयोजित कान्क्लेव के दूसरे दिन वक्ताओं ने रखे अपने विचार

अयोध्या। डॉ0 राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय, संस्कार भारती, ललित कला अकादमी, नई दिल्ली एवं अयोध्या शोध संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में ”लोक मे राम” विषय पर आयोजित कान्क्लेव के दूसरे दिन 05 मार्च, 2020 को सुबह 10ः30 बजे एकेडमी सत्र का आयोजन किया गया। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए निवाण के श्री राम परिहार ने कहा कि भारत की पवित्र धरती पर राम और श्रीकृष्ण के रूप में प्रभु ने अवतार लिया है। भारत जैसा सुन्दर देश पूरे पृथ्वी पर कही नही है। एक सास्वत परम्परा को लोक परम्पराओं ने काफी संभाल कर रखा है। अंग्रेजो और मुगलों की गुलामी के बाद भी भारत अभी भी बचा है। अब भविष्य के निर्माण की सामग्री को बचा कर रखना होगा। उन्होंने कहा कि हल्दी घाटी की लड़ाई में लोक खड़ा है। संस्कृति की असली रक्षक मातायें व बहनें है। उन रीति रिवाजों को अपनी परम्पराओं के अनुरूप बचाकर रखना है। सांस्कृतिकता की अमर धारा है जबतक सरयू में जल रहेगा तब तक संस्कृति रहेगी। बाल्मीकि की विराट छाया में मॉ धरती के विशाल ऑचल में सीता ने लवकुश को जन्म दिया। लोक सारी विद्याएं प्रदान करता है। परिहार ने कहा कि खेती और संस्कृति दोनों में राम बसते है। हम राजनीतिक रूप से गुलाम रहें लेकिन हमारी लोक परम्पराओं ने हमें बचाएं रखा। जन्म से मृत्यु के गीतों में भी उत्सव मनाया जाता है। उसमें भी राम बसते है। उठते राम चलते राम भारतीय लोक के राम आत्मा में बसते है। भगवान राम सघर्ष के समय आत्मीय सम्बल प्रदान करते है। उन्होंने कहा कि मनक्रम वचन की संस्कृति हमें राम से मिली है।
वरिष्ठ साहित्यकार एवं चिन्तक नरेन्द्र कोहली ने कहा कि राम कथा में सबसे महत्वपूर्ण घटनाक्रम वनगमन है। सारी अयोध्या उनके पीछे जा रही है। वनगमन से रोकने के लिए। एक भी ऋषि ने राम को रोकने के लिए कोशिश नही की कि वनगमन राम न करें। ऋषि बुद्धिजीवी कहे जाते है। ऋषियों ने ही राम के चरित्र को लोक का राम बनाया। विश्वामित्र ने राम को प्रजा का शासन सिखाया, राजा को प्रजा के पास जाना चाहिए। कोहली ने कहा कि राजा अपने राज्य की रक्षा करता है ऋषि सम्पूर्ण राष्ट्र की चिन्ता करता है। यज्ञ से तात्पर्य हवन से नही है यज्ञ के पीछे संकल्प होता है। यह आप भी देखे कि आपके राष्ट्र को कौन खण्डित कर रहा है। राम की आध्यात्मिक, शारीरिक शक्ति की परीक्षा धनुष भंग है। मॉ कौशल्या का उद्धरण देते हुए कहा कि पिता ने कहा है वन जाओं। मै कहती हॅू कि तुम वन में मत जाओं। मेरा पिता के वचन से कही बड़ा मेरा वचन है। उन्होंने कहा कि बुद्धिजीवियों को यदि समाज से हटा दिया जाये तो समाज का कल्याण नही हो सकता। राम का संकल्प पूरी पृथ्वी से राक्षसों से हीन कर दूगा। राम का यह आश्वासन समाज के प्रति प्रतिबद्धता का परिचायक है। उन्होंने कहा कि राम रावण युद्ध तो वानरों का था सिर्फ नेतृत्व राम ने किया था। राम के नेतृत्व की यह क्षमता थी कि वे एक प्रभुतासम्पन्न राज्य से युद्ध किया। राष्ट्र के एकीकरण का कार्य भी राम ने किया। सत्र की अध्यक्षता करते हुए मालनी अवस्थी ने कहा कि लोक संस्कृति में राम अकेले नही है सीता संयुक्त है। हमारे पुरूखों ने यह मान्यता दी है कि सीता महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाती है। लोक संस्कृतियों ने राम को संवारा है। भारतीय लोक मानस में सीता स्थापित है। सीता का सघर्ष लोक मान्यताओं को गढ़ता है। सीता का चरित्र महिलाओं का आत्मनिर्भर बनाने का संदेश है। सीता का सौभाग्य बेटियों से जोड़ा गया है। सीता को अखंड सौभाग्यवती होने का वरदान मिला है। लोक में सीता का स्थान सर्वश्रेष्ठ है सभी प्रतीक सीता और राम के है। परिवार की छवि भी सीता और राम की है।
गोवा की पूर्व राज्यपाल श्रीमती मृदुला सिन्हा ने कहा कि सीता और राम को कर्तव्य पालन के लिए जाना जाता है। भारतीय संस्कृति में दाम्पत्य जीवन एक वचन है। एक रिश्ता है जो दलहन के एक दाने का छिलका जैसा है। लोकमन के राम और सीता भारत के कण-कण में बसते है। सीता में राम है या राम में सीता यह दोनों एक समान है। डॉ0 स्वर्ण अनिल ने कहा कि विश्व के राम सीता एक आदर्श युगल नायक है। भारत के विभिन्न हिस्सों में रामायण की अलग-अलग कहानियां है। राम और खीना की कहानी मिजोरम गाई जाती है। मिजोरम के देव पर्वत पर राम कथा चित्रों में अंकित है। पूवोत्तर की लोक कथाओं में माधव कन्दली की कथा विख्यात है। पूर्वोत्तर क्षेत्र में कर्वी की लोककथा के जनक एक राजा के साथ एक किसान है। सीता को एक किसान की बेटी के रूप में मान्यता दी गई है। वैवाहिक परम्पराओं में राम लक्ष्मण को भी कृषि से जोड़ा गया है। भानुभक्त पाताल लोक की कथा में राम को अलग-अलग वर्णित किया गया है। सीता का वैक्तित्व तिवा रामायण में एक शक्ति के रूप में माना गया है।
श्रीमती शुभ्रास्था ने कहा कि भारतीय लोक संस्कृति की शुरूआत राम गीतों से होती है। राम सीता से ही भारतीय मानस का चरित्र निर्माण हुआ है। सगुन के गीतों में भी राम सीता पाये जाते है। सीता राम का चिन्ह छठ के गीतों में भी स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। डॉ0 विद्या बिन्दु सिंह ने कहा कि सीता का चरित्र भारतीय जनमानस के लिए सर्वोत्तम शिखर माना जाता है। जो सहता है वह कमजोर नही होता सीता इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। लोक में राम और श्रीकृष्ण का भेद मिट गया है। राम का वनगमन आदर्श चरित्र निर्माण एवं सामाजिक समरसता का अनुपम उदाहरण है। लवकुश के मार्मिक गीतों से राम के भावों का वर्णन लोक गीतों में मिलता है। डॉ0 रानी झा ने कहा कि मिथिला के लिए सीता एक संस्कार है और यह सीता के जन्म से चला आ रहा है। सीता की दृढता शक्ति का परिचायक है जो लक्ष्मण रेखा पार करने की क्षमता रखती है। मिथिला शक्ति की उपासक स्थली है। सीता के स्वाभिमान को आदर्श चरित्र के रूप में समाज में स्थापित किया गया है। सम्भ्रर गीत मंडप में विवाह के समय गाया जाता है। सीता की वजह से राम को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। कार्यक्रम का संचालन अमित पाण्डेय एवं राहुल चौधरी ने किया। कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत पुष्पगुच्छ एवं अंगवस्त्रम प्रदान कर किया गया। कार्यक्रम में कुलपति प्रो0 मनोज दीक्षित, डॉ0 विमलेन्द्र मोहन मिश्र, डॉ0 यतीन्द्र मोहन मिश्र, विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति प्रो0 एसएन शुक्ल, मुख्य नियंता प्रो0 आरएन राय, प्रो0 अशोक शुक्ल, कार्यपरिषद सदस्य सरल ज्ञापटे, ओम प्रकाश सिंह, प्रो0 के0 के0 वर्मा, प्रो0 हिमांशु शेखर सिंह, प्रो0 एसएस मिश्र, डॉ0 आर0के0 सिंह, प्रो0 विनोद श्रीवास्तव, डॉ0 गीतिका श्रीवास्तव, डॉ0 नरेश चौधरी, डॉ0 विनोद चौधरी, डॉ0 विजयेन्दु चतुर्वेदी, डॉ0 विनय मिश्र, डॉ0 राजेश सिंह कुशवाहा, डॉ0 आर0एन0 पाण्डेय, डॉ0 अनिल विश्वा, सहित बड़ी संख्या में संस्कार भारती, ललित कला अकादमी, नई दिल्ली एवं अयोध्या शोध संस्थान के पदाधिकारी उपस्थित रहे।

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