-भीड़ का हिस्सा बनने की आतुरता है जन मनोवृत्ति
अयोध्या। समाजघाती व्यक्तित्व विकार या एंटीसोशल पर्सनालिटी डिसार्डर ( एएसपीडी), जैसा कि नाम से ही जाहिर है, ऐसे लोग समाज के लिये छुपे रुस्तम खतरा होते है।ये कपटी, परपीड़क, आक्रामक,जालसाज, दुस्साहसी, निर्दयी और ग्लानिहीन होते हैं । बनावट व दिखावा कर लोगों मे अपना दबदबा बनाकर उनका फायदा उठाने, फसाने , ब्लैक मेल कर ठगने में माहिर होते हैं। एक्सपोज़ होने या सजा पाने के बावजूद फिर ऐसे कृत्यों पर उतारु हो जाते है , क्योंकि इनमें पश्चाताप या अपराधबोध न के बराबर होता है।
इस विकार के शुरुवाती लक्षण किशोरावस्था से ही दिखाई पड़ने लगते हैँ। महिलाओं की तुलना मे ऐसे पुरुषों की संख्या ज्यादा होती है। ऐसे लोग आस्था व धार्मिक ढोंग या पाखंड से जन आस्था से खिलवाड़ कर स्वयंभू ईश्वरीय या दैवीय रूप मे मनोस्थापित करने से भी गुरेज नही करते। यह व्यक्तित्व विकार साइकोपैथिक या सोशियोपैथिक या डिस्सोसल पर्सनालिटी डिसऑर्डर भी कहलाता है।
दूसरा पहलू यह है कि मनुष्य के मन में एक सामूहिक अवचेतन या कलेक्टिव सबकान्शस क्रियाशील होता है जिससे व्यक्ति भीड़ की भेड़चाल को देख भीड़ का हिस्सा होने के लिए उतावला हो जाता है जिसे मास हिस्टीरिया या सामूहिक बुद्धिहीनता कहा जाता है। यह बातें डा आलोक मनदर्शन द्वारा सामयिक जनहित मनोजागरुकता संदर्भित रिपोर्ट मे बतायी गई ।
उन्होंने बताया कि स्वस्थ व परिपक्व मनः स्थिति स्वस्थ मनोरक्षा युक्ति से चलायमान होती है जो मनुष्य को सम्यक-आस्था और आध्यात्मिकता की तरफ ले जाता है, जिससे मनोअंतर्दृष्टि का विकास होता है और मानसिक शान्ति और स्वास्थ्य में अभिवृद्धि होती है द्य जबकि दूसरी तरफ अपरिपक्व, न्यूरोटिक व साइकोटिक मनोरक्षा युक्तियाँ या मेन्टल-डिफेन्स मैकेनिज्म जो की विकृत व रुग्ण होती है, मनो-अंतर्दृष्टि को क्षीण करते हुए किसी बड़ी जन हानि या दुर्घटना का सबब बनती हैँ।