फैजाबाद। रोग के मूल कारण को मनुष्य के अंदर खोजकर और मानवीय संवेदना को समझते हुए उसकी पीड़ा का जड़ से निदान की पद्धति होम्योपैथी को विकसित कर डॉ हैनिमैन ने आधुनिक दुनिया को सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक चिकित्सा पध्दति का उपहार दिया। होम्योपैथी के जनक डॉ हैनिमैन की 175वीं पुण्यतिथि पर जेबी होम्यो काम्प्लेक्स में आयोजित पुष्पाजंलि कार्यक्रम में यह विचार होम्योपैथी महासंघ के महासचिव डॉ उपेन्द्र मणि त्रिपाठी ने व्यक्त किये। उन्होंने कहा डॉ हैनिमैन तत्कालीन चिकित्सा पद्धति के पीड़ादायी तरीको ,एवं होने वाले दुष्परिणामों से मानवता को मुक्त करना चाहते थे इसीलिए चिकित्सा विज्ञान की पुस्तकों के अध्ययन के साथ उन्होंने चिकित्सा के सिद्धांतों को वैज्ञानिक एवं तार्किक तरीके से स्वयं पर परीक्षण कर उस पीड़ा को महसूस करना प्रारम्भ किया और यह सिद्ध किया कि प्रत्येक तत्व शरीर की कार्यशीलता को प्रभावित कर सकता है किंतु उसकी शक्तिकृत और न्यूनतम मात्रा समान लक्षणों को जड़ से ठीक कर सकती है। मानव जीवन और प्रकृति के सम्बंध को विज्ञान की कसौटी पर मानव स्वास्थ्य के लिए उनका यह प्रयोग भारतीय वेद ग्रन्थों की भी वैज्ञानिक पुष्टि थी जिसमे समः समे शमयति का सिद्धांत बताया गया था। डॉ हैनिमैन के तथ्यों से बड़ी माता (स्माल पॉक्स )से अंधा या बहरा होने या उसके बाद इनके ठीक होने के अंधविश्वास का भी समाधान दिया। इस तरह मनोविज्ञान, दर्शन, विज्ञान, अध्यात्म और तर्क को मानव कल्याण के लिए होम्योपैथी के रूप में प्रस्तुत करने हेतु पुण्यात्मा हैनिमैन सदैव अमर रहेंगे। डॉ हैनिमैन को पुष्पाजंलि अर्पित करने वालों में नृपेंद्र सिंह, जयेंद्र सिंह, प्रवीण, वेद, नवीन, डॉ एस बी सिंह, डॉ वी एन सिंह, डॉ शैलेश सिंह,डॉ दीपांकर गुप्त, डॉ पवन पांडेय, डॉ सितांशु पाठक, डॉ योगेश, डॉ गौरव पांडेय, डॉ शालू सिंह, राकेश,कुमुद रंजन,सुधीर सिंह, आदि उपस्थित रहे।
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