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पैनिक या नेग्लीजेंट नही, प्रोएक्टिव मनोदशा की जरूरत : डॉ. आलोक मनदर्शन

कोरोना पैंडेमिक पर यूनिसेफ़ द्वारा गठित मेंटल हेल्थ व साइको सोशल सपोर्ट टास्क सन्दर्भित जनहित में जारी निदानात्मक निष्कर्ष

👉चिंतालु व्यक्तित्व विकार ले जाता है पैनिक एंग्जायटी में

👉संक्रमित होने की  अकारण आशंका कहलाती है जर्मोफोबिया

अयोध्या। कोरोना संक्रमण की वैश्विक महामारी या पैंडेमिक से पूरी दुनिया की जारी जंग में संयम व सतर्कता के साथ ही स्वस्थ्य व सम्यक मनोदशा का भी अहंम योगदान है।इसके मद्देनजर ही  विश्व स्वास्थ्य संगठन की सहयोगी संस्था यूनिसेफ़ ने कोरोना विश्व महामारी सन्दर्भित मेंटल हेल्थ एंड साइको सोशल सपोर्ट (एम एच पी एस एस )टास्क ग्रुप का गठन कर दिया है जो आम जनमानस के मनोबल के उन्नयन व सम्यक स्वास्थ्य व्यहार को बढ़वा देगा अपितु कोरोना पॉजिटिव व सस्पेक्टेड लोगो मे जीवेषणा अभिवृद्धि में उत्प्रेरक का कार्य करेगा । यूनिसेफ़ एम एच पी एस एस टास्क ग्रुप के मनोपरामर्शदाता डॉ आलोक मनदर्शन के अनुसार वास्तविक संक्रमित लोगो मे आत्मविश्वास व सकारात्मक सोच के साथ इलाज़ व एहतियात अत्यन्त महत्वपूर्ण पहलू है । सस्पेक्टेड केस में भी आत्मसम्बल व आत्मसंयम सकारात्मक परिणाम की दिशा निर्धारक होती है।
 ऐसे लोगों की भी तादात सामने आ रही है जो कोरोना संक्रमण के क्षद्म भय से आसक्त होकर बारबार चिकित्सक से परामर्श या निदान  करवाकर क्षणिक शुकुन या सन्तुष्टि की रुग्ण मनोदशा से ग्रषित हैं। लेकिन यह शुकुन उन्हें केवल क्षणिक सन्तुष्टि ही दे पाता है क्योंकि उनका अतिआवेशित अर्धचेतन मन फिर आशंका और संशय से घिरने लगता है , नतीज़न वे बार बार क्षद्म आत्म सन्तुष्टि प्राप्त करने के दुष्चक्र में फंसकर बार चेकिंग और रिचेकिंग कराते रहतें है जिसे पैथोलॉजी परेडिंग कहा जाता है। इतना ही नही, चिकित्सक द्वारा आश्वस्त किये जाने के बावजूद भी नये नये चिकित्सकों के चक्कर लगाने की मनोदशा से मनोबाध्य भी हो जातें है जिसे डॉक्टर शॉपिंग कहा जा सकता है ।यह रुग्ण मनोवृत्ति  मनोबाध्यता विकार या ओ सी डी स्पेक्ट्रम का एक रूप है जिसे मनोविश्लेषण की भाषा में जर्मोफोबिया कहा जाताहै। इतना ही नही ये लोग  इंटरनेट पर संक्रमण लक्षणों व जांच के बारे में बार सर्च करके अपनी मनोदशा को और भी तनाव व हताशा तथा पैनिक एंग्जायटी  में जाने का मौका देतें रहते है ।इसका दुष्परिणाम इनके सामान्य जीवनशैली पर नकारात्मक तो होता ही है साथ ही ये घोर अवसाद व अन्य मभीर मनोरोग के भी शिकार हो सकते है जिसके दूरगामी व गम्भीर मनोसामाजिक परिणाम हो सकते हैं। साथ ही नेग्लिजेंट पर्सनालिटी डिसऑर्डर से ग्रसित लोगों को स्थिति की गम्भीरता के प्रति संवेदनशील करने के लिये इनसाइट सेंसीटाइजेशन की मनोविधि अपनायी जानी चाहिये ।

👉बचाव व उपचार : 

डॉ मनदर्शन के अनुसार संक्रमित व सस्पेक्टेड संक्रमित को सतर्क व संयमित मनोदशा से चलायमान हेतु संज्ञान व्यहार मनोपरामर्श तथा असंक्रमित लोगों में सम्यक अंतर्दृष्टि विकास के माध्यम से रुग्ण या अकारण भयाक्रांत होने की मनोदशा से निकालने के लिये इम्पल्स कंट्रोल एक्सपोज़र उपचार की विधि अति कारगर है। संक्रमण फोबिया के लोग वास्तविक रूप में तो  वायरस से ग्रसित नही होते है परन्तु उनकी मनोदशा संक्रमित होने की आशंका से भयाक्रात बनी रहती है । ऐसे में उन्हें मनोपरामर्श की आवश्यकता होती है जिससे उनमे स्वस्थ अंतर्दृष्टि व आत्मविश्वास का संचार हो सके।साथ ही ऐसे लोग स्वयं को रचनात्मक व उत्पादक क्रिया कलापों में व्यस्त रखें तथा अनचाही सलाह से बचें। आठ घण्टे की नींद के साथ अपनी स्वस्थ, सतर्क व संयमित दिनचर्या पर फोकस करते हुए मनोरंजक गतिविधियों में सहभगिता करें । भड़काऊ , उत्तेजक या अफवाह भरी किसी तरह की सोशल या अन्य मीडिया संदेशो को हतोत्साहित करें तथा सोशल मीडिया या फोन का सकारात्मक सोशल सपोर्ट के आदान प्रदान के लिये उपयोग करें ।

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