अवध विश्वविद्यालय में शोध प्रविधि पर सात दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का हुआ शुभारम्भ
अयोध्या। डाॅ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के संत कबीर सभागार में सात दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन शोध प्रविधि पर किया गया। आई0क्यू0ए0सी0 के तत्वाधान में आयोजित कार्यशाला के मुख्य अतिथि प्रो0 जे0 के0 मण्डल, निदेशक आई0क्यू0ए0सी0 कल्याणी विश्वविद्यालय, कल्याणी, नाडिया, पश्चिम बंगाल रहे। कार्यशाला की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 मनोज दीक्षित ने किया।
कार्यशाला के उद्घाटन सत्र को सम्बोधित करते हुए प्रो0 जे0 के0 मण्डल ने शोध प्रविधि के तहत तकनीकी लेखन उसके समरूप प्रबंधन पर कहा कि गुणवत्तापरक शोध कार्यों के लिए मानकों को पूर्ण करना आवश्यक होता है। प्रो0 मण्डल ने कहा कि शोध पत्रों को तैयार करने के लिए विषयवस्तु का चयन महत्वपूर्ण चरण होता है। शोध प्रविधि में डेटा संग्रहण, डेटा तैयार करने के तरीकें और उसके प्रमुख बिन्दु काफी महत्वपूर्ण होते है। शोध के अलग-अलग चरणों पर जानकारी देते हुए प्रो0 मण्डल ने कहा कि वर्तमान समय में बढ़ रही साहित्यिक चोरी एक बड़ी चुनौती है। वर्तमान तकनीक से अब इस पर काफी कुछ नियंत्रण किया जा सका है। इस सन्दर्भ में उन्होंने बताया कि साहित्यिक चोरी अब एक दण्डनीय कृत्य की श्रेणी में रखा गया है। इसकी जाॅच के लिए कई प्रकार के साॅफ्टवेयर जाॅच करने वाली संस्थानों के पास उपलब्ध है। प्रो0 मण्डल ने बताया कि शोध श्रोतों का स्पष्ट रूप से उल्लेख करें। सदन्र्भ सूची को मानकों के अनुरूप प्रस्तुत करें ताकि गुणवत्तापरक शोध तैयार हो सके।
शोध को सांस्कृतिक मुल्यों का होना चाहिए संवाहक : प्रो. मनोज दीक्षित
कार्यशाला को सम्बोधित करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 मनोज दीक्षित ने बताया कि सामाजिक विषयों के शोध और विज्ञान विषयों के शोध में अलग-अलग प्रक्रियाएं अपनायी जाती है। वैज्ञानिक शोधों में निष्कर्ष तक पहुंचा जा सकता है। परन्तु सामाजिक शोध के सन्दर्भ में यह नहीं कहा जा सकता कि शोध का निष्कर्ष यही होगा। बहुत सारी धाराणाएं शोध की प्रक्रिया से गुजरती हैं। शोध के लिए प्रामाणिक तथ्यों और सन्दर्भों को एकत्रित करना आवश्यक होता है। शोध को सांस्कृतिक मुल्यों का संवाहक होना चाहिए। क्योंकि जब शोध संस्कृति से जुड़े होंगे तो भी वे वैज्ञानिक ही कहे जायेंगे। घटनाओं को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखना चाहिए। शोधकर्ता की मानसिकता स्वीकार करने के लिए होनी चाहिए अस्वीकार करने की नहीं। शोधकर्ता को पढ़ने की क्षमता विकसित करनी चाहिए तभी वह गुणवत्तापरक निष्कर्ष की तरफ बढ़ पायेगा। प्रो0 दीक्षित ने बताया कि भारत के सन्दर्भ में शोध प्रणाली प्राचीनकाल से ही काफी समृद्व रही है। बहुत से भाषायी शोध व्यक्तिगत अनुभव में कमी के कारण असफल हो गये। रामायण की प्रमाणिकता पर किये गये शोधों पर प्रो0 दीक्षित ने बताया कि श्रीलंका में अब तक किये गये शोध कार्य भारत से काफी आगे है। सांस्कृतिक मूल्यों से जुड़े रहने के लिए सामाजिक शोधों का एक अलग महत्व है शोध कार्य आगे की पीढी़ को समृद्व बनाने के लिए किये जाने चाहिए।
कार्यशाला के स्वागत उद्बोधन में प्रतिकुलपिति प्रो0 एस0 एन0 शुक्ल ने बताया कि गुणवत्तापरक शोध कार्य एक नई दिशा देता है। तथ्यपरक शोध के लिए मानकों का अनुकरण एक आवश्यक प्रक्रिया है। शोध कार्य मात्र उपाधि के लिए नहीं अपितु ज्ञान संबर्धन के लिए किया जाना चाहिए। कार्यशाला का संचालन आई0क्यू0ए0सी0 के निदेशक एवं संयोजक प्रो0 ए0के0 शुक्ल ने किया। उन्होंने बताया कि वर्तमान में शोध प्रक्रियाएं उपाधि प्राप्त करने का माध्यम बन गई है। इससे मुक्त होने की आवश्यकता है क्योंकि इस प्रकार के कार्यों से ज्ञान का प्रवाह अवरूö होता है। शोध का मूल नवीन ज्ञान की ओर अग्रसर होना और उसकी गुणवत्ता बनाये रखना है। कार्यशाला के द्वितीय तकनीकी सत्र को सम्बोधित करते हुए प्रो0 राजीव मनोहर, भौतिकी विभाग लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ ने बताया कि प्रोजेक्ट प्रपोजल के लिए कौन-कौन से तथ्य उपयोगी एवं महत्वपूर्ण है, पावर प्वांइट प्रजेटेंशन के माध्यम से प्रस्तुत किया।
कार्यशाला का उद्घाटन मां सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलन से किया गया। मुख्य अतिथि को पुष्पगुच्छ एवं स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर मुख्य नियंता प्रो0 आर0एन0 राय, प्रो0 के0 के0 वर्मा, प्रो0 जसवन्त सिंह, प्रो0 एम0पी0 सिंह, प्रो0 नीलम पाठक, प्रो0 फारूख जमाल, प्रो0 एस0 एस0 मिश्रा, निदेशक डाॅ0 अनुप कुमार, डाॅ0 शैलेन्द्र वर्मा, डाॅ0 शैलेन्द्र कुमार, डाॅ0 नरेश चैधरी, डाॅ0 गीतिका श्रीवासतव, डाॅ0 विनोद चैधरी, पुस्तकालयाध्यक्ष प्रो0 आर0 के0 सिंह सहित बड़ी संख्या में प्रतिभागी उपस्थित रहे। आयोजित कार्यशाला में 200 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया।