प्रधानाचार्य पिता की डांट से आहत हो पलायन कर बन गया था सन्यासी
फैजाबाद। प्रधानाचार्य व कड़क मिजाज पिता की डांट व उलाहना से कक्षा 8 का छात्र इतना मरमाहात हुआ कि घरद्वार से पलायन कर दर-दर की ठोकरें खाने के लिए निकाल पड़ा। एकांकित छड़ों में उसे अपनी मां और भाई का स्नेह दुलार याद आता और वापस लौटाने का मन बनता परन्तु उसी क्षण पिता की तनी भृकुटी आंखों के सामने कौंध जाती और हर बार घर वापसी को टाल जाता 20 साल बाद मां के आंचल की छांव की ललक दिलों दिमाग पर इस कदर छाई की उसके पग अनायस अपने गांव की ओर चल पडे़ और सूरहूरपुर जाकर ही रूके ।
एसएसवी इंटर कालेज के पूर्व प्रधानाचार्य डाॅ. वीरेन्द्र कुमार त्रिपाठी के चार पुत्र थे जिसमें सबसे छोटा राघवेन्द्र वर्ष 1998 में कक्षा 8 में पढ़ता था। 14 मई को कक्षा 8 का परिणाम आया तो कम अंक पाने के कारण प्रधानाचार्य कक्ष में ही डाॅ. त्रिपाठी ने उसे इतना डांटा की राघवेन्द्र को अंतर तक झकझोर गया। राघवेन्द्र स्कूल से निकाला तो वापस घर नहीं लौटा । डाॅ. त्रिपाठी के सामाने जब-जब लापता पुत्र का जिक्र आता उनकी आंखे नम हो जाती और चेहरे पर अपने कठोर स्वभाव के प्रति आत्म ग्लानि की झलक उभर आती।
अम्बेडकरनगर जनपद के सुरहुरपुर गांव के चैराहे पर लोगों ने देखा कि पीताम्बरधारी एक युवा सन्यासी खड़ा हुआ है। लोगों ने जब उससे बात किया तो उसने अपना घरद्वार खोने की दास्ता लोगों को बताया। सूचना पाकर डा. त्रिपाठी के करीबी अजय भी पहुंचे और राघवेन्द्र को पहचाना तथा उसे लेकर गांव के स्कूल चले गये। वहां डा. त्रिपाठी मौजूद थे उन्होंने जब 20 साल से लापता पुत्र को देखा तो विश्वास नहीं हुआ उसे मन्दिर में ठहराने का निर्देश दे फैजाबाद शहर स्थित अपने घर आये और पत्नी को पूरी बात बताया। 20 साल बाद खोये पुत्र को देखने के लिए मां की आंखे खुशी से डबडबा गयीं। उन्होंने अपने बड़े पुत्र सेना में तैनात निलेश त्रिपाठी को भी राघवेन्द्र के लौटने की जानकारी दी और तत्काल सुरहुरपुर के लिए रवाना हो गये। मन्दिर में ठहरे राघवेन्द्र को देखकर मां विभल हो उठीं और राघवेन्द्र को आंचल की ओट में लेकर फूट-फूटकर रोने लगी यह रूदन खुशी का था। जब राघवेन्द्र घर से गया था तो उस समय उसकी आयु मात्र 13 साल की थी। भाई नीलेश त्रिपाठी भी सेना से आपात अवकाश लेकर घर लौटा और दोनो भाई गले मिलकर रूदन करने लगे। डाॅ. त्रिपाठी भी बाद में सुरहुरपुर गांव पहुंचे परन्तु उन्होंने पुत्र से कुछ नहीं कहा और उसे परिवार सहित लेकर फैजाबाद शहर के बछड़ा सुल्तानपुर स्थित अपने आवास लेकर आये। राघवेन्द्र ने 20 साल दर-बदर भटककर जो अनुभव अर्जित किया वह जीवन के अन्त तक उसे याद रहेगा।