-सरयू तट पर राजकीय सम्मान के साथ अन्तिम संस्कार
अयोध्या। रविवार को छत्तीसगढ़ में नक्सली हमले में रामनगरी अयोध्या के शहीद हुए कोबरा कमांडो राजकुमार यादव का पार्थिव शरीर देर रात उनके पैत्रिक निवास पर पहुंचा, जैसे ही शहीद राजकुमार का शव रानोपाली स्थित उनके घर पहुंचा परिवार में कोहराम मच गया। परिवार के साथ स्थानीय लोग भी आंसुओं के सैलाब में डूब गए। उनके पार्थिव शरीर को अंतिम दर्शन के लिए रखा गया, जहां सीआरपीएफ के अधिकारियों के साथ जिले के वरिष्ठ अधिकारियों ने श्रद्धांजलि अर्पित किया उसके बाद शहीद की अन्तिम यत्रा निकाली गयी जिसमें रामनगरी व आसपास के लोगों का जनसैलाब उमड़ पड़ा,
सरयू नदी तक तक निकली अन्तिम यात्रा में लोगें ने जगह-जगह शहीद राजकुमार यादव को श्रद्धांजलि अर्पित की सड़क के दोनो तरफ श्रद्धांजलि देने वालों का तांता लगा रहा। सरयू तट पर पूरे राजकीय सम्मान के अंतिम संस्कार किया गया।
बताते चलें कि छत्तीसगढ़ के बीजापुर में नक्सलियों के हमले में पैरा मिलिट्री फोर्स के 22 जवान शहीद हो गए हैं। इसमें उ.प्र. अयोध्या निवासी राजकुमार यादव और चंदौली निवासी धर्मदेव कुमार भी वीरगति को प्राप्त हुए हैं। सोमवार को उनके पार्थिव शरीर चौधरी चरण सिंह अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट लाए गए, जहां से ससम्मान गृह जनपदों को रवाना किया गया। इस दौरान सीआरपीएफ अधिकारी मौजूद रहे।
शहीद राजकुमार यादव में बचपन से था देशसेवा का जुनून
-सीआरपीएफ के कोबरा कंपनी के शहीद जवान राजकुमार यादव में बचपन से ही देशसेवा का जुनून था, वह हमेशा अच्छी पढ़ाई के लिए प्रतिबद्ध थे और कड़ा परिश्रम करते थे। रानोपाली गांव में उनके साथियों की संख्या बहुत कम है। कारण उन्होंने अपनी शिक्षा-दीक्षा अपनी नानी के घर पर खुर्दाबाद में रहकर की थी। वह रानोपाली में शादी के बाद से मुस्तकिल रुप से रहने के आए। फिर भी गांव के हर युवा से उनकी पहचान थी और उन्होंने एक अभिभावक की तरह गांव के नवयुवकों को बेहतर जीवन जीने का रास्ता दिखाने की कोशिश की।
विद्यार्थियों को आर्मी और पुलिस में भर्ती होकर देशसेवा की देते थे सलाह
-गांव का हर व्यक्ति कहता है कि वह इतने मिलनसार और हंसमुख थे कि खुद से लोगों को बुलाकर उनका हालचाल पूछते और कहते कि हमारी कोई जरूरत पड़े तो निःसंकोच बता देना। एक बेहतरीन इंसान की छाप समाज में बनाने वाले जांबाज जवान के बारे में उन्हीं के जूनियर अरुण विश्वकर्मा खुद तो कारपेंटर है, लेकिन शहीद जवान के मुरीद भी। कहते हैं कि उनमें देशसेवा का जज्बा कूट-कूटकर भरा था। वह सभी विद्यार्थियों को आर्मी और पुलिस में भर्ती होकर देशसेवा की सलाह देते थे। उनकी ही प्रेरणा से अरुण ने भी पढ़ाई की और सेना में भर्ती होने के लिए परीक्षा भी दी लेकिन किस्मत ने साथ नहीं दिया। बताते हैं कि उन्हीं की प्रेरणा थी कि गांव का ही एक जवान आशीष यादव सेना की नौकरी कर रहा है।
ड्यूटी से आने के बाद अपने सभी परिचितों का लेते थे हालचाल
-शहीद परिवार के पड़ोसी आनंद यादव का कहना है कि वह बड़े देशभक्त व्यक्ति थे और हम सभी को देशभक्ति और सैनिक के जाबांजी की कई कहानियां सुनाया करते थे। वह हमेशा एक अभिभावक की ही भूमिका में दिखते थे। हमेशा पढ़ने-लिखने और सेहत दुरुस्त बनाने के लिए प्रेरित करते थे। इसी तरह उन्हीं के पड़ोसी मोहित पाण्डेय का कहना है कि वह बहुत सपोर्टिंग नेचर के थे। ड्यूटी से आने के बाद अपने सभी परिचितों का हालचाल लेते थे। गांव से सम्बन्धित लोगों की भी खोज खबर लेते और परिवार के बच्चों व उनकी पढ़ाई-लिखाई के बारे में जरूर पूछते थे। यहां रहते तो शादी-समारोह में जाते और परिवार की सदस्य की तरह काम में भी हाथ बंटाने की कोशिश करते थे।