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सहित्य महारथी डॉ स्वामीनाथ पांडेय का महाप्रयाण

-85 वर्ष की उम्र में ली अन्तिम सांस


अयोध्या। 85 वर्षीय वरिष्ठ कवि-साहित्यकार- समालोचक, हिन्दी, अग्रेजी,संस्कृत, बंग्ला सहित अनेक भाषाओं के मर्मज्ञ, दर्जनों पुस्तकों के लेखक, अनुवादक, कहानीकार बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी, श्री हनुमान जी के अनन्य भक्त डॉ स्वामी नाथ पांडेय जी का 31 जनवरी 2023 को प्रातः लगभग 10 बजे साकेत वास हो गया। डॉ पांडेय के निधन से सहित्य, सामाजिक एंव सांस्कृतिक जगत में शोक की लहर है।

ऋषि तुल्य,सहज आचरण वाले, बहुविज्ञ,भाषाविद, साहित्य सर्जक एवं समालोचक डॉ. स्वामीनाथ पाण्डेय विगत पाँच दशकों से भी अधिक समय से अयोध्या में वास कर रहे थे। डॉ. पाण्डेय का.सु. साकेत महाविद्यालय में संस्कृत विभाग के रीडर पद से दो दशक पूर्व सेवानिवृत्त होने के बाद से निरंतर अध्ययन एवं साहित्य साधना में लगे हुए थे। लगभग 85 वर्ष की उम्र में भी साहित्य साधना के प्रति उनकी सक्रियता बनी हुई थी।

उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के कोप ग्राम में जन्मे डॉ. स्वामीनाथ पाण्डेय की इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई बलिया में हुई। इसके बाद काशी विश्वविद्यालय से स्नातक किया और जीविका की तलाश में कोलकाता चले गए। वहीं कोलकाता विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम.ए. करने के बाद एक दशक तक जाधवपुर विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य किया। तदनंतर वहीं से पी.एच.डी. की। तत्पश्चात अयोध्या के साकेत महाविद्यालय में आ गये और यहीं से सेवानिवृत्त हुए।वर्तमान में वे आनंदबाग( कनीगंज) मोहल्ले में अपने भतीजे ओंकार नाथ पांडेय के साथ रह रहे थे।

हाल ही में उनकी तीन नई साहित्यिक कृतियाँ ’तोड़ जीवन की कारा’(काव्य-संग्रह), ’एक मरे हुये कवि की पीठ पर’ ( व्यंग्य काव्य -संग्रह) और ’’सुबह हुई, न हुई’ (काव्य-संग्रह) प्रकाशित हुई उनके द्वारा संस्कृत, हिन्दी एवं अंग्रेजी में लिखित पन्द्रह पुस्तकें अब तक प्रकाशित हो चुकी है । तोड़ जीवन की कारा पुस्तक में कुल 54 हिंदी और 15 अंग्रेजी की कविताओं का संकलन है। एक मरे हुए कवि की पीठ पर पुस्तक में डॉक्टर पांडेय की व्यंग्य कविताओं का संग्रह है जिसमें कुल 74 रचनाएं हैं। सुबह हुई ना हुई डॉक्टर पांडेय की अब तक की अंतिम काव्य कृति है। इसमें हिंदी के 48 कविताओं के साथ-साथ संस्कृत की 6 कविताएं भी प्रकाशित की गई हैं। उनका पहला काव्य-संग्रह ’झांवा’ 1978 में प्रकाशित हुआ था, इसमें सन 61 से 78 के बीच की कवि द्वारा रचित कुल 50 कविताएं संकलित है इस संग्रह की अधिकांश कविताएं जनवादी विचारधारा से ओतप्रोत है। झांवा के लगभग 12 वर्ष बाद 1990 में खेल जो कि व्यंग्य कविताओं का संग्रह है प्रकाशित हुआ इसमें कुल 86 कविताएं हैं।

पथहारा काव्य संग्रह का प्रकाशन सन 1993 में हुआ इसमें भाषा शिल्प और भावभूमि की दृष्टि से सर्वोत्तम स्तर का काव्यत्व है। पथहारा वस्तुतः ऐसे आहत ह््रदय की आत्म प्रस्तुति है जो किसी निर्वेद के छाया की तलाश में नहीं है।यह राग की उस वेदिका पर अभी भी अपना तिल -तिल होम करने को आतुर है जिसकी ज्योति- शिखा बुझ चुकी है और धुएं की एक धूसर रेखा ही शेष बची है। अजायबघर डॉक्टर पांडेय के व्यंग्य लेखों का संग्रह है इसमें कुल 81 लेख संकलित हैं इसमें राजनीतिक,धर्म, विज्ञान,दर्शन साहित्य के तमाम परतों तक पहुंचने वाले व्यंग्य मिलेंगे। भारतेंदु युग और हिंदी पत्रकारिता पुस्तक का प्रकाशन सन् 2012 में हुआ है। डॉक्टर पांडेय ने भारतेंदु और भारतेंदु युगीन लेखकों के अवदान को जिस तरह इस अनुशीलन कृति में संयोजित किया है वह अतिशय प्रशंसनीय है। नवाब साहब डॉक्टर पांडेय की कहानियों का संग्रह है। यह कहानियां बड़ी ही सुगठित है। इसमें बड़े-बड़े कथानक को बहुत कम में समेटने का प्रयास है। वाल्मीकि आश्रम और तमसा, लेखक के अधिकांशतः शोधपरक लेखों का संग्रह है। इसमें हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में लेख हैं। विश्व प्रसिद्ध महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी की काव्य रचनाओं की गुणवत्ता से डॉक्टर पांडेय सदा अभिभूत रहते थे। गोस्वामी जी की कई कृतियों के काव्यांशो का उन्होंने संस्कृत काव्यानुवाद किया है जो कि संस्कृत- हनुमद बाहुकम्, दोहावली संस्कृतम् और तुलसी सुधा -बिंदुशतकम् पुस्तक में है। इसमें कहीं कहीं अनुवाद का कार्य मूल भाव से भी सटीक और उच्च अभिव्यक्ति प्रदान करता है।

डॉक्टर पांडेय की दो पुस्तक अंग्रेजी में है- गोस्वामी तुलसीदास : हिज लाइफ एंड वर्क्स और सम गलीम्पसेस आफ ग्रीक एंड संस्कृत लिटरेरी क्रिटिसिजम। कुल मिलाकर कहा जाए तो डॉक्टर पांडेय अयोध्या की एक बहुत बड़ी धरोहर हैं। 10 हिंदी में दो अंग्रेजी में 3 संस्कृत में पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है डॉ. पाण्डेय के ऊपर डॉओंकार नाथ त्रिपाठी ( पूर्व विभागाध्यक्ष हिंदी डिपार्टमेंट बीएनकेबी डिग्री कॉलेज अकबरपुर ) और डॉ सुनीता पांडेय ( हिंदी लेक्चरर आर्मी पब्लिक स्कूल फैजाबाद ) ने पुस्तक लिखी है।

 

 

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