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कुंभ का आयोजन विश्व समुदाय के लिए समरसता का संदेश : डॉ. महेन्द्र सिंह

प्रथम दिवस दो सत्रों में हुआ उद्बोधन

अयोध्या। डॉ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के नवीन परिसर में आयोजित समरसता कुंभ 2018 उद्घाटन के बाद समरसता के उद्बोधन में अखिल भारतीय सह-सरकार्यवाह, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के भागैय्या जी ने कहा कि समरसता जीवन मूल्य का संदेश है। सनातन धर्म सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है इसकी संकल्पना है कि पत्ते-पत्ते में परमेश्वर है। भारतीय समाज में छुआ छूत, अस्पृश्यता का कभी कोई स्थान नहीं रहा। वेद उपनिषद रामायण जैसे प्रमुख ग्रथों में भी छुआ छूत के लिए कोई स्थान नहीं है। संत रविदास के वक्तव्य को उल्लेख करते हुए उन्होंने बताया कि जाति के आधार पर कोई छोटा-बड़ा नहीं है।
वहीं पुणे से ओय गोविन्द देव गिरी ने कहा कि समरसता का अद्भूत दर्शन कुंभ में आकर किया जा सकता है। विश्व के सभी सम्प्रदाय अलग-अलग होकर भी कुंभ में समरस हो जाते है। राष्ट्र के एकात्म का कुंभ एक अद्वितीय उदाहरण है। समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा का वाहक भारतीय जनमानस क्या था अब क्या हो गया है आओं मिलकर विचारें और समर्थ राष्ट्र का निर्माण करें। सभी में एक ही परमात्मा का निवास है हम एक चेतना के आविष्कार है।
राज्यमंत्री ग्राम्य विकास उत्तर प्रदेश सरकार के डॉ. महेन्द्र सिंह ने कहा कि कुंभ का आयोजन पूरे विश्व समुदाय के लिए समरसता का संदेश है। भेद-भाव के बगैर संत समाज, धर्मावलंबी एवं गृहस्थ एक होकर विश्व समुदाय को सांस्कृतिक एकता का संदेश देते है। राष्ट्र की सम्पन्न सनातन परंपरा में सामाजिक भेद-भाव के लिए कोई स्थान नही है। समरसता कुंभ के स्वागत उद्बोधन में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 मनेज दीक्षित ने कहा कि कुंभ का आयोजन आदिकाल से देश में चार स्थानों पर होता आ रहा है। यह महज धार्मिक आयोजन न होकर यह हमारी समृद्ध परंपरा का एक हिस्सा है। विश्व समुदाय में राष्ट्रीय एकता एवं वसुधैव कुटुम्बकम की संकल्पना का संदेश है। इस सांस्कृतिक विरासत को संजोये रखना प्रत्येक भारत वासी का कर्तव्य है। समरस समाज समर्थ राष्ट्र का निर्माण तभी संभव हैं जब हम अपनी इन समृद्ध धरोहरों के मूल्य स्वरूप को बनाये रखेंगे। मर्यादा पुरूषोत्तम राम की नगरी अयोध्या का यह आयोजन निश्चित रूप से सामाजिक समरसता का उद्देश्य पूर्ण करेगा। प्रो0 दीक्षित ने बताया कि समाज में जागरूकता लाने के लिए हमें अपने धर्म ग्रन्थों की ओर पुनः ध्यान देना आवश्यक होगा एवं वाल्मीकि, संत कबीर, गुरूनानक देव जैसे गुरूओं के बहुमूल्य योगदान को जन-जन में पहॅुचाना होगा तभी समरस समाज का निर्माण हो सकेगा।
द्वितीय सत्र के उद्बोधन में डॉ0 सुनीता शास्त्री ने कहा कि यह अयोध्या का पहला कुंभ है और इस वैचारिक कुंभ की पूर्णता इसकी शुरूआत से प्राप्त होती है कि आज राम की धरती पर देश के कोने-कोने से विद्वतजन आये हुए यही समरसता का परिदृश्य है। वाल्मीकि रामायण धरती का पहला आदि काव्य है। सृष्टि की नगरी अयोध्या की भूमि हैं। यह हम सभी का परमसौभाग्य है कि हमारे धर्म ग्रन्थों में सामाजिक समरसता वृहद उल्लेख है। सत्र की अध्यक्षता प्रो0 कौशल किशोर, काशी ने की उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि सामाजिक समरसता ने सबसे बड़ी शिक्षा हमें धर्म ग्रन्थों से मिलती है। शिक्षा से चरित्र का निर्माण होता है और चरित्र से राष्ट्र का निर्माण होता है। अन्य वक्ताओं में पूज्य भंते राहुल बोधी, मुम्बई ने भी संबोधित किया। कार्यक्रम का शुभारम्भ मॉ सरस्वती की प्रतिमा प्रर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन के साथ किया गया। विश्वविद्यालय की छात्राओं ने कुलगीत एवं राष्ट्रगान प्रस्तुत किया। कुलपति प्रो0 मनोज दीक्षित ने अतिथियों का स्वागत स्मृति चिन्ह एवं अंग वस्त्रम भेटकर स्वागत किया। कार्यक्रम का संचालन प्रो0 अशोक शुक्ला ने किया। धन्यवाद ज्ञापन समाज कल्याण मंत्री रमापति शास्त्री ने किया।

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