-कंचन की कविताएँ स्त्री-दृष्टि की उदात्त भंगिमा से समृद्ध : स्वप्निल श्रीवास्तव
अयोध्या। जनवादी लेखक संघ के तत्वावधान में रविवार को संगठन की सदस्य युवा कवयित्री कंचन जायसवाल के कविता-संग्रह ‘स्त्रियाँ और सपने’ का विमोचन वरिष्ठ साहित्यकारों की उपस्थिति में सम्पन्न हुआ। विमोचन कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार, केदार सम्मान, रघुपति सहाय सम्मान और रूस के पुश्किन सम्मान से सम्मानित देश के वरिष्ठ कवि स्वप्निल श्रीवास्तव ने कहा कि कंचन जायसवाल की कविताएँ गम्भीर पाठ की मांग करती हैं। उनकी काव्यदृष्टि में स्त्री-दृष्टि की एक उदात्त भंगिमा मौजूद है।
उन्होंने कहा कि पहले संग्रह अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में उन्होंने कंचन जी की कविताओं में उपस्थित संवेदनशीलता की प्रशंसा की और कहा कि कंचन की कविताओं के शब्द उनके समाज और समय से आते हैं। लखनऊ से आए कार्यक्रम जनवादी लेखक संघ, उ.प्र. के सचिव प्रो. नलिन रंजन सिंह ने अपने वक्तव्य में कहा कि कविता में स्त्रियाँ यदि सपने देख रही हैं तो यह एक सकारात्मक वक्तव्य है क्योंकि आधुनिकतावाद ने स्त्रियों की ही नींद सबसे अधिक छीनी है। कंचन जायसवाल अपनी कविता में इस बात को रेखांकित करती हैं कि स्त्री वही है, जिसके भीतर करुणा है।
उनकी कविताओं में जो दुःख, मिथकीयता और प्रेम के संदर्भ हैं वे अमूर्त होते हुए भी अत्यंत व्यापक हैं। उनकी कविताओं में जो राजनीतिक स्टेटमेंट हैं वे अत्यंत स्पष्ट हैं। वे स्पष्ट करती हैं कि प्रश्नाकुलता का समाप्त होना जीवन का समाप्त हो जाना है। उनके अनुसार कंचन जी गहरे तादात्म्य से पूरित दृश्य बिम्ब रचती हैं।
इस अवसर पर लखनऊ से पधारे जनसंदेश टाइम्स के सम्पादक और वरिष्ठ कवि श्री सुभाष राय ने अपने वक्तव्य में कहा कंचन की कविताएँ अंधेरे के विरुद्ध प्रश्न उठाती कविताएँ हैं। उनकी रोशनी की तलाश निजी नहीं है बल्कि वे समूचे स्त्री समाज के जीवन के अंधेरे को ख़त्म करना चाहती हैं।
कार्यक्रम का संचालन कर रहे जनवादी लेखक संघ, फैजाबाद के सचिव डॉ. विशाल श्रीवास्तव ने कहा कि एक सम्भावनाशील युवा कवयित्री के रूप में कंचन जायसवाल की कविताएँ साहित्य के परिदृश्य में एक गहरा हस्तक्षेप हैं। उनकी कविताओं में बुद्ध के जीवन-दर्शन से सामीप्य से प्राप्त करुणा के स्वर से लेकर स्त्री जीवन का अकेलापन, अवसाद और प्रेम की विडम्बनाएँ एक व्यापक फलक पर उपस्थित हैं। इन कविताओं में एक रहस्यात्मक प्रतियथार्थ है जो वास्तविक संसार के दृश्यों से सामग्री ग्रहण कर जैसे अपना एक साहित्यिक मेटावर्स रचता है। इन कविताओं में गहरी उदासी और भावनात्मक अजनबीपन के संकेत स्पष्ट रूप से मिलते हैं, जिनके कारण कंचन की कविताओं की एक अलग काव्यात्मक बुनावट सम्भव हो पाती है।
इस अवसर पर अपने वक्तव्य में वरिष्ठ कवि-आलोचक आर.डी. आनन्द ने कहा कि कंचन जी की कविताओं का पाठ अत्यंत गम्भीर है। उनकी कविताओं में स्त्री निर्मिति का दुःख विकलता के साथ मौजूद है। उनकी कविताएँ निजी पीड़ा और दुःख से गुज़रते हुए भी सहज रूप में एक निर्वैयक्तिकता की ओर बढ़ती हैं। बुद्ध की करुणा के समानांतर स्त्री जीवन का अंतर्द्वंद्व कंचन जी की कविताओं में व्यक्त होता है।
पुस्तक पर बात करते हुए प्रसिद्ध अवधी कवि आशाराम जागरथ ने कहा कि कंचन जी की कविताएँ अर्थ के विभिन्न संस्तरों से आबद्ध होती हैं। इनकी कविताएँ बहती हुई नदी नहीं हैं बल्कि एक शांत गहरी झील की तरह हैं। इन कविताओं का मूल स्वर पीड़ा का स्वर है।
मुज़म्मिल फ़िदा ने अपने वक्तव्य में कंचन जी की कविता के परोक्ष सत्य को गहराई से समझने की बात कही। इस अवसर पर आज़मगढ़ से पधारी युवा कवयित्री प्रज्ञा सिंह ने अपने वक्तव्य में कहा कि स्त्री का अपना जीवन ही दुःख का महाकाव्य होता है, उनके दुःख पुरुष संसार के दुःख से अलहदा होता है। कंचन की कविता में स्त्री और दुःख शब्द सतत रूप से आते रहते हैं। उन्होंने कहा कि हम जिस तरह के समाज में जीते आए हैं उसमें स्त्रियों का सपना देखना एक विचित्र बात है।
विमोचन के अवसर पर अपना वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए कवयित्री कंचन जायसवाल ने अपनी कविताओं की रचना-प्रक्रिया पर बात करते हुए कहा कि यह मेरा पहला संग्रह है, जिसे पूरा करने में मुझे लम्बा वक़्त लगा है। इस संग्रह में स्त्रियों को लेकर कविताएँ तो हैं ही लेकिन उसके साथ राजनीतिक, सामाजिक यथार्थ, स्त्री-पुरुष सम्बन्धों पर भी विभिन्न कविताएँ हैं। इस अवसर पर उन्होंने अपनी कई कविताओं का पाठ किया, जिनमें प्रमुखतः ‘मैं बुद्ध की धरती से हूँ’, ‘एक बीता हुआ दिन यादों में’, ‘स्त्रियाँ और सपने’, ‘चयन’ आदि विभिन्न कविताओं का पाठ किया।
इससे पूर्व संगठन के सदस्य सत्यभान सिंह जनवादी ने आमंत्रित साहित्यकारों, बुद्धिजीवियों, कलाकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं गणमान्य नागरिकों का स्वागत किया और अपने वक्तव्य में इस कविता-संग्रह को एक महत्वपूर्ण कृति बताया। उन्होंने कहा कि एक स्त्री के रूप में कंचन जी ने समाज को जिस तरह देखा है और उसके यथार्थ को अपनी कविता में व्यक्त किया है, वह अनूठा और प्रशंसनीय है। कार्यक्रम के अन्त में धन्यवाद ज्ञापन श्री नीरज जायसवाल द्वारा किया गया। कार्यक्रम में क्रांतिकारियों के चित्र भेंट कर अतिथियों का स्वागत संगठन के सदस्यों नीरज नीर, धीरज द्विवेदी, पूजा, रामदास सरल, अखिलेश सिंह, मालती तिवारी, साधना सिंह एवं जयप्रकाश द्वारा किया गया।
इस कार्यक्रम में विन्ध्यमणि त्रिपाठी, स्वदेश रश्मि, आर.एन. कबीर, बालकिशन, रामदास यादव, साधना सिंह, उष्मा वर्मा, अर्चना द्विवेदी, रामदास सरल, अखिलेश सिंह, सीताराम वर्मा, कबीर, जेपी श्रीवास्तव, सरोज यादव, अपर्णा यादव, घनश्याम जी, कंचन दुवे, धीरज द्विवेदी, महावीर पाल, राधेरमण सिंह, ममता सिंह, शिवानी सिंह, मो. सलीम, मो. सगीर, सैय्यद सुबहानी, कीर्ति यादव सहित शहर के विभिन्न प्रगतिशील साहित्यकार, बुद्धिजीवी एवं पत्रकार सम्मिलित हुए।