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भारत की भाषाएं हमारी संस्कृति से जुड़ी हैं : मनोजकांत

-शिक्षा मंत्रालय व राष्ट्रीय सिंधी भाषा विकास परिषद के संयुक्त तत्वावधान आयोजित हुआ भारतीय भाषा उत्सव


अयोध्या। भारत की भाषाओं और प्रत्येक प्रांत की भाषा व परंपराओं में राष्ट्र का एक स्वरूप हमेशा से परिलक्षित होता है। भारत की भाषाएं हमारी संस्कृति से जुड़ी हैं और राष्ट्र को सूत्रबद्ध करने के तत्व इसमें निहित हैं। इसलिए फूट डालो राज करो की कुटिल नीति ने भाषाओं में विरोध की राजनीति का प्रोत्साहित किया। राजनीतिक लोग चाहे जो करैं, समय की आवश्यकता के अनुरूप आज भारतीय भाषाओं की ग्राह्यता और एकसूत्रता पुनः परिभाषित हो रही है। ये बातें भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय और राष्ट्रीय सिंधी भाषा विकास परिषद के संयुक्त तत्वावधान आयोजित भारतीय भाषा उत्सव के मुख्य वक्ता राष्ट्र धर्म पत्रिका के निदेशक मनोजकांत ने कहीं। यह कार्यक्रम प्रेस क्लब सभागार में उत्तर और दक्षिण भारत के सांस्कृतिक सेतु कहे जाने वाले कवि, पत्रकार, विचार, समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी सुब्रह्मण्य भारती की जयंती के उपलक्ष्य में चल रही कार्यक्रमों की श्रृंखला के क्रम में आयोजित किया गया था। बता दें कि 11 दिसंबर को सुब्रह्मण्य भारती का जन्मदिवस है।

मुख्य अतिथि मिश्र ने कहा कि सुब्रह्मण्य भारती जैसे कवि और लेखकों को जब हम पढ़ेंगे तो राष्ट्रीयता के एकसूत्र में स्वतः ही निबद्ध हो जाएंगे। भारती की रचनाओं में प्रकृति के मानवीकरण जैसे भारतीय संस्कृति के मूल तत्व के साथ ही गंगा, हिमालय और हमारी कृषि के दर्शन होते हैं। वह एक संकीर्ण भाषाई कवि या रचनाकार के रूप में कहीं संकुचित नहीं होते। उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक आसेतु हिमालय उनके राष्ट्र में दृष्टिगोचर होता है।
उन्होंने कहा कि सभी भारतीय भाषाएं राष्ट्रीय भाषाएं ही हैं, देश में जब-जब अंग्रेजी के विरोध में भारत के लोग खड़े हु,ए तब तब उत्तर और दक्षिण के बीच हिन्दी और भारतीय भाषाओं के बीच विवाद एक षडयंत्र के तहत प्रस्तुत किया जाता रहा है, जिसे सभी को समझना जरूरी है। हम राष्ट्र पुरुष राम को हर भाषा में सुनते व उपस्थित पाते हैं यह प्रमाण है सभी क्षेत्रीय भाषाओं के राष्ट्रीय होने का। सुब्रमण्यम भारती की भावना उद्धृत करते कहा कि हमारा विनाश क्यों न आ जाए ए स्वतंत्रता की देवी हम तुम्हारा वंदन करना कभी बंद नहीं करेंगे।

मुख्य अतिथि मेयर अयोध्या महंत गिरीश पति त्रिपाठी ने बोलियों के संरक्षण पर बल देते हुए कहा कि अवधी बोलने वालों को भी अपनी बोली बेझिझक बोलनी चाहिए। मुख्य अतिथि ने कहा कि सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की भावना तो जन जन में है ही, उसे मुखर करने के लिए ऐसे आयोजन करने वाले संस्थान और व्यक्ति राष्ट्रीय सिंधी भाषा विकास परिषद के अध्यक्ष केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, उपाध्यक्ष मोहन मंघनानी, निदेशक प्रो रवि प्रकाश टेकचंदानी व संयोजक विश्व प्रकाश रूपन के प्रयास सराहनीय हैं।

कार्यक्रम आयोजक राष्ट्रीय सिंधी भाषा विकास परिषद शिक्षा मंत्रालय भारस के सदस्य विश्व प्रकाश रूपन ने कहा कि सुब्रमण्यम भारती के ओज और आवेश पूर्ण गीत गाकर दक्षिण के युवा आजादी के आंदोलन में कूद पड़े, शाह, सचल, सामी और भगत कंवरराम साहिब के तराने सुन हेमू कालाणी और सिंध के हर घर ने आजादी की लड़ाई में अपना सर्वस्व झोंक दिया, अवधी, हिंदी के तराने गाकर क्रांति वीर मंगल पांडे ने फौज की नौकरी को लात मारकर आजादी के आंदोलन में नायक की तरह उभरे। गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की रचनाएं गाकर बंगाल ने आजादी आंदोलन में अपना बलिदान दिया, पंजाब के खेतों उसकी मिट्टी में रची बसी रचनाएं सुनकर भगत सिंह जैसे किशोरों ने खेतों में बंदूक उगाने से लेकर अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ फेंकने के लिए असेंबली में बम फेंक कर भारत को आजादी आंदोलन में शामिल होने के लिए जागृत कर दिया।

रूपन ने कहा भारतीय भाषाएं चाहे सिंधी, असमी, बांग्ला, हिंदी गुजराती, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मलयालम, मणिपुरी,मराठी, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत,संथाली, तमिल, तेलगु, उर्दू,डोंगरी,बोडो, मैथिली, चाहे सिंधी भाषा हो सभी ने एक होकर आजादी आंदोलन में अपना योगदान दिया। इस अवसर पर सुब्रमण्यम भारती की रचनाओं का अनुवाद कर गद्य व पद्य में सिंधी, तमिल, बांग्ला,अवधी, संस्कृत, हिंदी आदि अनेक भाषाओं में प्रस्तुति वक्ताओं ने दी। पंजाबी गीत “ कर दे सानु तेरा जयगान- कदी धीरज बड़प्पन अते- वीरता दे नाल अपना- धरम वी गंवा बैठे सै- फिर भी तेरा धनम अटल रहया माता- जय हौवे तेरी सदा ही जय हौवे। कल्पना बर्मन ने तमिल की रचना“ ओडि विडेयाड पापा नि,वोन डिरूक्लाडगड पापा“ की बहुत ही सुरीली प्रस्तुति दी तो वहीं सुजीत बर्मन ने बांग्ला रचना से रोमांचित किया तो वहीं विश्व प्रकाश रूपन ने सुब्रमण्यम भारती की रचना का सिंधी अनुवाद“ हिकु देश आ हिकु वेशु आ हिकु असांजो नारो आ- असीं वासी आहियूं भारत जा- भारत देश असांजो आ“ प्रस्तुत किया।

नारी के संस्कार, शर्म,व वीरता का चित्रण कवि राजीव पाण्डेय सरल ने किया तो वहीं देश के प्रसिद्ध हास्य कवि ताराचंद’ तन्हा’ ने अपनी अवधी को तर्क की कसौटी पर कसते अंग्रेजी से श्रेष्ठ साबित किया। आकाशवाणी पर प्रायः कविता पाठ करने वाली कवियित्री ऊष्मा सजल ने भी सुब्रमण्यम भारती की रचना का अनुवाद अवधी में कर सुनाया “नाही ई पानी से पाला-पोसा, अंसुवन से सींचा हो, तोहरिन किरपा से मिली अहै, सुघर आजादी हमै हो“ अयोध्या के विद्वान श्रोताओं ने पहली बार भारतीय भाषा उत्सव के महत्व को करीब से महसूस कर आयोजन समिति को बहुत प्रोत्साहन दिया। अध्यक्षता कर रहे प्रेस क्लब अध्यक्ष सुरेश पाठक ने कहा आज एक अज्ञात नायक रहे सुब्रमण्यम स्वामी के बारे में जानकर बहुत ज्ञानवर्धन हुआ साथ ही यह मैं दावे से कह सकता हूं कि अब तक पढ़ाया जा रहा इतिहास झूठा था।

कार्यक्रम में विचार रखने वाले प्रमुख विद्वानों में प्रो. आर. के. सिंह, प्रो. सत्य प्रकाश त्रिपाठी, डा. असीम त्रिपाठी, राम प्रकाश त्रिपाठी ने रोमांचक तरीके से सुब्रमण्यम भारती के जीवन और भारतीय दर्शन को रेखांकित कर अपनी मौलिक योग्यता को सिद्ध किया। कार्यक्रम का संचालन श्रीकांत द्विवेदी तथा धन्यवाद ज्ञापन विश्व प्रकाश रूपन ने किया।

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