‘‘इंटरडिसपिलिनरी एडवांसमेंट इन बायोकेमेस्ट्री’’ विषय पर हुआ राष्ट्रीय सेमिनार
स्वास्थ्य संरक्षण में बायोकेमेस्ट्री का अहम योगदान: प्रो. मनोज दीक्षित
अयोध्या। डॉ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के बायोकेमेस्ट्री विभाग एवं उच्च शिक्षा विभाग के संयुक्त तत्वावधान मेें “इंटरडिसपिलिनरी एडवांसमेंट इन बायोकेमेस्ट्री“ (एन0सी0आई0ए0बी0-2019) विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन संत कबीर सभागार में किया गया। सेमिनार के उद्घाटन में मुख्य अतिथि बी0एच0यू0, वाराणसी बायोकेमेस्ट्री विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो0 आर0 एस0 दूबे, विशिष्ट अतिथि के रूप में बी0बी0ए0यू0 लखनऊ के प्रो0 एम0वाई0 खान एवं लखनऊ विश्वविद्यालय लखनऊ के प्रो0 यू0 एन0 द्विवेदी रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 मनोज दीक्षित ने की।
उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि पूर्व कुलपति गुरूघासी दास केन्द्रीय विश्वविद्यालय विलासपुर, एवं बी0एच0यू0, वाराणसी बायोकेमेस्ट्री विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो0 आर0 एस0 दूबे ने कहा कि वैज्ञानिक परम्परा को भारत सदियों से संजोये हुए है। ऋषि मुनियों द्वारा किये गये वैज्ञानिक शोध कार्य वर्तमान संदर्भ की वैज्ञानिक प्रगति से कहीं आगे रही है। प्रो0 दूबे ने महाभारत के संदर्भ पर कहा कि उस काल की वैज्ञानिक प्रगति विश्व के लिए अनुकरणीय है। स्टेमसेल पर काफी पहले से हमारे प्राचीन धर्म ग्रन्थों में सदर्भ मिलता है। महर्षि चरक, कणादि, आर्य भट्ट जैसे मनीषियों का वैज्ञानिक शोध कार्य आज भी काॅफी प्रासंगिक है इससे अभी काॅफी कुछ सीखना बाकी है। प्रो0 दूबे ने बताया कि हरित क्रांति में भारत को खाद्यान्य के मामले में आत्मनिर्भर बना दिया इसका श्रेय बायोकेमेस्ट्री को जाता है। स्वास्थ्य संबंधित बढ़ रही चुनौतियों में शरीर पर एंटीबायोटिक दवाओं के प्रभाव व संरक्षण पर काॅफी प्रगति हुई है। परन्तु रोग प्रतिरोधक क्षमता को बनाये रखने के लिए किये जा रहे शोध-कार्य अभी संतोषजनक स्थिति पर नहीं पहॅुचे है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 मनोज दीक्षित ने कहा कि निरन्तर वैज्ञानिक प्रगति ने निश्चित रूप से मानवीय सुविधाओं का विकास किया है। स्वास्थ्य संरक्षण की दिशा में बायोकेमेस्ट्री का अहम योगदान रहा है। परन्तु दिनचर्या में शामिल होते रसायनों ने कई चुनौतियां भी उत्पन्न की है। प्रो0 दीक्षित ने कहा कि दवाओं का शरीर पर जो कुप्रभाव पड़ रहा है उसे संतुलित करने की आवश्यकता है। भारत प्राचीन काल से की प्रकृति का पोषक रहा है प्रकृति के साथ संतुलन बनाये रखना हमारी सांस्कृतिक परम्परा भी रही है। आज के संदर्भ में बढ़ते रसायनिक प्रभावों पर बहुदृष्टकोणीय शोध की आवश्यकता है। ताकि सामाजिक आवश्यकताओं के अनुरूप वैज्ञानिक शोधों को अपनाया जा सके। विश्वविद्याालय ने वैज्ञानिकों शोधों को और प्रासंगिक बनाने के लिए देश की प्रतिष्ठित शोध संस्थाओं से एम0ओ0यू0 किया है और शोधरत छात्र-छात्राओं को आधुनिक लैब की सुविधा मिल सके इस पर भी कार्य किया जा रहा है।
विशिष्ट अतिथि के रूप में बी0बी0ए0यू0 लखनऊ के प्रो0 एम0वाई0 खान ने कहा कि बायो तकनीक एक परम्परा आधारित विज्ञान है। वैज्ञानिक तकनीक तो बहुत तेजी से आगे बढ़ रही है। शोध की गुणवत्ता ने दिनों दिन हो रही प्रगति ने मानव समाज को उस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है कि अब लोग चिकित्सीय प्रगति के बल पर संतानों को अपनी इच्छा के अनुरूप जन्म दे सकेंगे। हाॅल में हुए एक शोध के प्रसंग पर प्रो0 खान ने बताया कि अब वह समय आ गया है जब डी0एन0ए0 एवं आर0एन0ए0 पर हो रहे शोध से समूची दुनियां को नये आयाम से जोड़ा जा सकेगा। लखनऊ विश्वविद्यालय लखनऊ के प्रो0 यू0 एन0 द्विवेदी ने कहा कि बायोटेक्नोलाॅजी एक प्राचीन विषय के रूप में है जब हम किसी सेल को तोड़ते है तो उस प्रक्रिया को बायोकेमेस्ट्री के रूप में पाते है। बायोकेमेस्ट्री के शोध ने ऐसी क्षमता को विकसित कर दिया है जिससे वैज्ञानिक सीमायें समाप्त हो गई है। प्रो0 द्विवेदी ने बताया कि जेनेटिक्स इंजीनियरिंग ने जीवों, वनस्पतियों के शोध में काॅफी विकास किया है। बिटामिंस, प्रोटीन, एंजाइम, जीन आइसोलेशन के शोधों से मानव जीवन को कई उपहार प्रदान किये है। जींन पर हुए शोध कार्याें ने काॅफी बड़े बदलाव किये है। प्रो0 द्विवेदी ने बताया कि भारत ऋषि परम्पराओं का वाहक रहा है। श्रीमद्भगवत गीता के कई वैज्ञानिक संदर्भों पर प्रकाश डाला।
सेमिनार के संयोजक प्रो0 आर0के0 तिवारी ने गंगा जल के औषधीय गुणों पर चर्चा करते हुए कहा कि गंगा जल अमृत के समान है यह विश्वविदित है कि इसका जल कभी खराब नहीं होता। पर्यावरणीय असंतुलन ने इसके स्वरूप को काफी प्रभावित किया है। वैज्ञानिक तर्क है कि प्रकृति और मानव के बीच असंतुलन की स्थिति बड़ी चुनौती बनती है। गंगा जल एक प्राकृतिक औषधि के रूप में पृथ्वी पर विद्यामान है। प्रो0 तिवारी ने वैज्ञानिक शोध पर बताया कि नैनो तकनीक समूची मानवता के लिए एक उपहार सिद्ध हो सकती है। यदि वैज्ञानिक ई0सी0जी0, एम0आर0आई0, अल्ट्रासाउंड में नैनो तकनीक का उपयोग कर उसे उच्च स्तर पर प्रयुक्त हेतु तैयार कर पाते। उच्च क्वालिटी के संेसर तकनीक से रक्त मापक यंत्र को विकसित कर लिया जाये तो ब्लड से शुगर लेबल पर आसानी से मापा जा सकता है। नैनो बायोटैक्नोलाॅजी का अभी कोई विकल्प नहीं है। नैनो केमिकल और नैनो मेडिसिन से काफी कुछ प्राप्त किया जा सकता है। बायोकेमेस्ट्री विभाग के विभागाध्यक्ष एवं आयोजन सचिव प्रो0 फारूख जमाल ने अपने स्वागत उद्बोधन में दूर-दराज से आये शिक्षक वैज्ञानिकों एवं प्रतिभागियों का आभार व्यक्त किया और इस सेमिनार की महत्ता पर प्रकाश डाला।
कार्यक्रम का शुभारम्भ माॅ सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन के साथ किया गया। कुलगीत की प्रस्तुति की गयी। अतिथियों का स्वागत पुष्पगुच्छ, स्मृति चिन्ह एवं अंगवस्त्रम भेटंकर किया गया। इस स्मारिका का विमोचन भी किया गया। सेमिनार का संचालन आयोजन सचिव प्रो0 नीलम पाठक ने किया। धन्यवाद ज्ञापन बायोकेमेस्ट्री विभाग की डाॅ0 नीलम यादव ने किया। इस अवसर पर कार्यपरिषद् सदस्य ओम प्रकाश सिंह, मुख्य नियंता प्रो0 आर0 एन0 राय, प्रो0 के0 के0 वर्मा, प्रो0 आशुतोष सिन्हा, प्रो0 हिमांशु शेखर सिंह, प्रो0 चयन कुमार मिश्र, प्रो0 एस0के0 गर्ग, प्रो0 जसवंत सिंह, प्रो0 राजीव गौड़, प्रो0 मृदुला सिन्हा, प्रो0 विनोद श्रीवास्तव, प्रो0 अनूप कुमार, प्रो0 नीरज जैन, प्रो0 सिद्धार्थ शुक्ल, डाॅ0 वदंना रंजन, डाॅ0 तुहिना वर्मा, डाॅ0 अनिल कुमार, डाॅ0 शैलेन्द्र कुमार, डाॅ0 नरेश चैधरी, डाॅ0 नीलम सिंह, डाॅ0 प्रिया कुमारी, डाॅ0 शशि सिंह, डाॅ0 गीतिका श्रीवास्तव, डाॅ0 विजयेन्दु चतुर्वेदी, डाॅ0 सिंधू, डाॅ0 विनोद चैधरी, डाॅ0 रोहित सिंह राना, डाॅ0 आर0 एन0 पाण्डेय, डाॅ0 अभिषेक कन्नौजिया, डाॅ0 दीप शिखा, डाॅ0 बृजेश यादव, डाॅ0 मणिकांत त्रिपाठी सहित बड़ी संख्या में शिक्षक एवं प्रतिभागी उपस्थित रहे। सेमिनार के तकनीकी सत्र को प्रो0 सुधार मेहरोत्रा अध्यक्ष बायोकेमेस्ट्री लखनऊ विश्वविद्यालय, डाॅ0 ध्रुव निषाद डी0आर0डी0ओ0, नई दिल्ली एवं डाॅ0 अनन्त नरायण भट्ट ने संबोधित किया। इस सत्र के दौरान प्रतिभागियों द्वारा शोध-पत्रों की प्रस्तुति दी गई। दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार में लगभग सौ से अधिक प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया।