अवध साहित्य संगम की हुई कवि गोष्ठी
फैजाबाद। अवध साहित्य संगम की कवि गोष्ठी संस्था के कार्यालय वजीरगंज में सम्पन्न हुई जिसकी अध्यक्षता दिल अवधपुरी व संचालन रामानन्द सागर ने किया। वाणी वन्दना मधुकर ने की कर जोरि मधुकर सरन परा, माई हमका ओढावा नेहिया कै अचरा। नाते पाक मशमूम ने पढ़ा इंसाअल्लाह जायंेगें हम भी अब मदीने को चूम करके आयेगें एक एक जीने को। जमशेद अहमद ने गजल पढ़ी इस सलीके से कोई पेड़ लगाया जाए कि आस पास के आंॅगन में भी साया जाए
अवधेश पाल ने कहा जिनकी दोनों जेबें खाली कैसे मनाएं वो दिवाली जिनके घर न जलता चूल्हा उनकी तो हर रात है काली। सत्यनारायण ने गीत पढ़ा एक दिन रावण से मुलाकात हो गयी मेरी उससे दो दो बात हो गयी। ब्रहम देव मधुकर ने लोकगीत सुनाया आपन भला जौ चाहेव बलम हमका न सतायौ। कवियित्री रीता शर्मा की पंक्ति राष्ट्रहित का गला घांेटकर छेद न करना थाली में मिट्टी के ही दिये जलायें अबकी बार दिवाली में। मासूम लखनवी ने कहा यूं झरोखे से छुप छुप न देखा करो तीर नजरों का एक रोज चल जायेगा, चोट पहले से खाया जो नाजुक बड़ा शोख दिल है बहुत ये मचल जायेगा। नवल किशोर लाल ने हंसाया जब से पत्नी चली गय मैइके तब से रहा करित हम नयके, दिन भर करी कबाड़ै हेरा बिन घरनी घर भूत का डेरा। अली सईद मशमूम ने गजल पढ़ी जिन रास्तों से गुजरे वो गुलजार हो गये काॅंटों को छू लिया तो मुस्कबार हो गये। प्रतिमा श्रीवास्तवा ने भी गजल पढ़ी लबपे कुछ ऐसा तराना आ गया याद फिर गुजरा जमाना आ गया। शिव प्रसाद गुप्त शिवम ने मुकतक पढ़ी बेटी बेटे में भेद न हो बेटी जन्में तो खेद न हो। महमूद आलम ने कहा हमारी सोंच में सच्चाईयाॅं उगाने दो नई जमीन नया आसमां बनाने दो। मेरठ से पधारे सचिन ठाकुर ने आतुकान्त व्यंग पढ़ा। डाॅ0 स्वदेश मल्होत्रा रश्मि ने गीत सुनाया मैं निकली हॅंू यह सोंच कर इस डगर मंे मिलेगें कहीं उम्र के इस सफर में। अंजनी कुमार शेष ने खुब हंसाया जहाॅं जहाॅं हम कविता पढ़ने जाया करेंगें कोई पूॅंछे या न पूॅंछे हम बताया करेगें। इल्तिफात माहिर ने भी गजल सुनाई नीम की शाख को सन्दल नहीं होने देता अम्न की बात किसी पल नहीं होने देता। मशरूर आलम ने भी गजल पढ़ी गम का सारा निसाब लिखॅंूगा आॅंसुओें से किताब लिखॅंूगा रामानन्द सागर की पंक्तियाॅं थी जिन्दगी के जो सायबान में हैं, एक जलते हुए मकान में हैं। शाहिद जमाल ने कहा पड़के फनकारी में बरबाद नहीं होना है, शायरी करनी है उस्ताद नहीं होना है। दिलअवधपुरी ने गजल सुनाई ये पनघट सूने सूने और नदी खामोश रहती है तेरे बारे में जब पूॅंछा सखी खमोश रहती है। इनके अलावा शलभ फैैजाबादी, प्रदीप श्रीवास्तव, वाहिद अली, अरविन्द आजाद ने भी काव्य पाठ किया।