राम मन्दिर निर्माण में हो शास्त्रोक्त विधि का अनुपालन : मानव

by Next Khabar Team
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कहा-मन्दिर निर्माण में क्षत्रियों की हो अनिवार्य भागीदारी

अयोध्या। हिन्दुओं के आराध्य मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम के भव्य मन्दिर की निर्माण प्रक्रिया धर्मनगरी अयोध्या में चल रही है। मन्दिर निर्माण में क्षत्रियों की भागीदारी अनिवार्य है तभी शास्त्रोक्त-विधि का अनुपालन होगा। शास्त्रोक्त-विधि अनुपालन क्रम में मन्दिर निर्माण के पहले और बाद में होने वाले भूमि पूजन, शिलान्यास, विग्रह प्राण प्रतिष्ठा, यज्ञ आदि धार्मिक अनुष्ठान में क्षत्रिय की उपस्थिति अनिवार्य है। यह विचार समाजसेवी राजेश सिंह मानव ने पत्रकार वार्ता में व्यक्त किया। उन्होनें कहा कि पद्धति ग्रन्थ पाणिनीय सूत्र में वर्णित है कि यज्ञ विधिविधान में क्षत्रिय ही अधिकारी माना गया है। किसी अन्य को नहीं, वहीं ग्रन्थ शतपथ ब्राम्हण में कहा गया है कि यज्ञ करने का अधिकार उसी कुलीन क्षत्रिय को है जो मूर्धाभिषिक्त राजा हो, ब्राम्हण या वैश्य को इसका अधिकार नहीं है। ऐसे में मन्दिर निर्माण के मध्य होने वाले धार्मिक अनुष्ठान में कुलीन क्षत्रियों की भागीदारी आवश्यक है।
उन्होने कहा कि इसी क्रम में उल्लिखित लाला सीताराम द्वारा लिखित पुस्तक ‘‘अयोध्या का इतिहास’’ में वर्णित है कि राजा विक्रमादित्य ने अयोध्या की पहचान कर मन्दिरों का पुनः निर्माण कराना आरम्भ किया तो पंडितों ने उन्हें श्रीराम चन्द्र जी के वंशजों को यज्ञ में भाग लेने की सलाह दी थी अन्यथा यज्ञ हो ही नहीं सकता था। राजा विक्रमादित्य ने जब वर्तमान श्री अयोध्या का रेखांकन एवं पुर्नवासन किया तो श्रीराम चन्द्र जी के वंशजो को लाकर अयोध्या तीर्थ के मन्दिरों का निर्माण कराना आरम्भ किया था। राजा विक्रमादित्य ने सनातन वैदिक परम्परा को बरकरार रखने के लिए बनारस के पंडितो की सलाह पर श्री धौराहर सिंह महाराज को अयोध्या के सिंहासन पर बैठाया और परम्परागत वैदिक विधान का पालन कराते हुए अयोध्या में मन्दिरों के निर्माण का कार्य प्रभुराम वंशी राजा धौराहर सिंह से सम्पादित कराया था। उन्होनें कहा कि राजा धौराहर सिंह त्रेता ठाकुर मन्दिर का भी निर्माण कराया था। जिसमें माँ सीता प्रभू राम की सोने की मूर्तियाँ स्थापित थीं यह बातें भगवान राम के अश्वमेघ यज्ञ से प्रमाणित हैं का ‘‘पुर्ननिर्माण कुल्लू के राजा ने प्राचीन भग्नावशेष मन्दिर के स्थान पर बनाया गया था और फिर इंदौर की प्रख्यात रानी अहिल्याबाई ने इसमें कुछ सुधार किये थे।‘‘ लाला सीताराम द्वारा लिखित पुस्तक ‘‘अयोध्या का इतिहास’’ में वर्णित है जो मौजूद समय मे जीर्ण-शीर्ष अवस्था मे हैं। स्मृति चिन्ह धौराहर टीला अयोध्या मे आज भी अवस्थापित (अवस्थित) है। अयोध्या मे मन्दिरों का निर्माण के मध्य यज्ञ अनुष्ठान का कार्य राम वंशीय राजा धौराहर सिंह के द्वारा राजा विक्रमादित्य ने सम्पन्न कराया गया था। उन्होनें कहा कि हम सरकार से मांग कर रहे हैं कि अयोध्या में बनने वाला राम मन्दिर राजा विक्रमादित्य की परिकल्पना तथा सनातन परम्परा के अनुरूप निर्मित हो और 84 कसौटी शिला के खम्भे लगाये जायें। हमारी यह भी मांग है कि भव्य प्रसाद इतना गगनचुम्बी हो कि भारत में उतना ऊँचा कोई अन्य मन्दिर न हो। संसद मे इसके लिए कानून बनाया जाय। राजा विक्रमादित्य ने जिस मन्दिर का निर्माण कराया था। उसका शिखर आज के 42 किलोमीटर दूर से दिखाई पड़ता है। हमारी सरकार से यही मांग है कि राम मन्दिर निर्माण के लिए गठित ट्रस्ट श्रीराम जन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र में बड़ी संख्या में क्षत्रियों को स्थायी सदस्य नामित किया जाये।
उन्होनें ने कहा कि सनातन वैदिक परम्परा के रक्षार्थ सनातन समाज सदैव प्रतिबद्ध एवं कटिबद्ध रहा है। सनातन वैदिक परम्परा आर्य पुत्र श्रीरामलला की विभूति है। सभी सनातन धर्मी इसकी उपासना करते हैं। वेद-मर्मज्ञ ब्राम्हण के आश्रय में आर्य-धर्म, वैदिक परम्परा का शंखनाद कर सनातन समाज के लामबन्द करने का कार्य आरम्भ कर दिया गया है। शीघ्र ही वैदिक परम्परागत धर्म-रक्षार्थ चरणबद्ध आन्दोलन शुरू किया जायेगा।

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