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ई उपवास सुधारेगा मनोस्वास्थ्य

-जिला चिकित्सालय में आयोजित हुई “इन्टरनेट एडिक्शन जनित मनोदुष्प्रभाव“ विषयक कार्यशाला

– सत्तर फीसदी से अधिक युवा हैं इंटरनेट एडिक्ट

 

अयोध्या। डिजिटल मीडिया की बेतहासा बढ़ती लत से मनोस्वास्थ्य को नया खतरा पैदा हो गया है। सत्तर फीसदी से ज्यादा किशोर व युवा इंटरनेट की लत के शिकार हैं ही,बच्चे व वयस्क भी अछूते नही रह गये है। इंटरनेट की लत एक नये मनोरोग का रुप ले चुका है जिसे मनोविश्लेषण की भाषा में फोबो या फियर ऑफ बीइंग ऑफ़लाइन कहा जाने लगा है।

इसकी वजह से इंटरनेट से दूर होने पर बेचैनी,अनिद्रा, आक्रमकता, अवसाद,उन्माद,मादक द्रव्य व्यसन, मनोसेक्स विकृति व कंपल्सिव गेमिंग व गैम्बलिंग जैसे लक्षण सामने आ रहे हैं। यह जानकारी जिला चिकित्सालय में आयोजित कार्यशाला में वरिष्ठ मनोरोग विशेषज्ञ डॉ बृज कुमार व किशोर मनोपरामर्शदाता डॉ आलोक मनदर्शन द्वारा संयुक्त रूप से दी गयी।

सलाहः

डिजिटल मीडिया से आनन्द की अनुभूति कराने वाले हार्मोन डोपामिन का स्तर कम होते ही मन इसे फिर पाने के लिये व्यग्र हो जाता है और इंटरनेट की दुनिया से अलग थलग होने पर बेचैनी और अनमनापन तब तक बना रहता है जब तक इंटरनेट कनेक्टिविटी वापस नही मिल जाती।

डिजिटल फास्टिंग या डिजिटल उपवास ही इसका सम्यक उपचार व बचाव है जिसमें डिजिटल एक्सपोज़र को जितना ज्यादा हो सके गैप देना चाहिए कुछ घण्टे,कुछ दिन या हफ्ते या जितना सम्भव हो उतना डिजिटल ब्रेक देना चाहिये और अन्य मनोरंजन के पारम्परिक तौर तरीकों व सामाजिक मेलजोल व रचनात्मक क्रिया कलापों को भी बढ़ावा देने के साथ आठ घण्टे की गहरी नींद अवश्य लेनी चाहिये।इस स्वस्थ जीवन शैली को मनोविश्लेषण की भाषा में हैप्पीट्यूड कहा जाता है। इस प्रकार फियर ऑफ बीइंग ऑफ़लाइन फोबो को ज्वाय ऑफ बीइंग ऑफ़लाइन या जोबो में बदला जा सकता है।

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