50 निजी चिकित्सकों को डेंगू के सही इलाज के लिए दी गई सतत चिकित्सा शिक्षा
डेंगू से डरने की नहीं, अपितु बचने और लड़ने की जरूरत: डाॅ. हरिओम श्रीवास्तव
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अयोध्या। डेंगू से डरने की नहीं, अपितु बचने और लड़ने की जरूरत है। डेंगू बुखार के लक्षण दिखने पर तुरंत अस्पताल जाना चाहिए। उक्त विचार शाने अवध सभागार में विश फाउंडेशन द्वारा जी.एस.के. कंज्यूमर हेल्थ केयर लिमिटेड, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन अयोध्या व राजा दशरथ मेडिकल कॉलेज, अयोध्या के सहयोग से डेंगू से बचाव, नियंत्रण एवं प्रबंधन विषय पर आयोजित कार्यशाला में कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ हरिओम श्रीवास्तव ने व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि जिला चिकित्सालय अयोध्या में डेंगू बुखार से बचने हेतु पर्याप्त व्यवस्था है। जरूरी नहीं कि हर तरह के डेंगू में प्लेटलेट्स चढ़ाए जाएँ। केवल हेमरेजिक और शॉक सिंड्रोम डेंगू में प्लेटलेट्स कि जरूरत होती है। अगर डेंगू के मरीज का प्लेटलेट्स काउंट 10,000 से ज्यादा हो तो प्लेटलेट्स ट्रांसफ्यूजन कि जरूरत नही होती और न ही ये खतरे का संकेत है।
इसके पूर्व कार्यशाला का उद्घाटन करते हुए विश फाउंडेशन के परियोजना निदेशक डॉ गुलफाम अहमद हाशमी ने विश संस्था द्वारा लोक स्वास्थ्य के क्षेत्र में चलाई जा रही परियोजनाओं के बारे में बताया। विश द्वारा राज्य सरकारों के साथ मिलकर अनेकों परियोजनाएं किर्यान्वित की जा रही हें, जो नयी नयी पद्धतियों के माध्यम से सरकारी कार्यक्रमों को असरदार बनाने तथा सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं को लोगों से जोड़ने पर केन्द्रित हैं। उत्तर प्रदेश में डेंगू बुखार से बचाव नियंत्रण एवं प्रबंधन हेतु सुबह (स्ट्रेंन्थनिंग अर्बन बिहेवियर अराउंड हेल्थ)परियोजना को क्रियान्वित कर किया जा रहा है, जिसका लक्ष्य समुदाय आधारित गतिविधियों द्वारा डेंगू के रोगियों की संख्या में कमी लाना तथा डेंगू को महामारी का रूप लेने से रोकना है। इस कार्यक्रम के तहत वाराणसी, प्रयागराज, मिर्जापुर, गोरखपुर एवं अयोध्या के चिकित्सकों को सी. एम. ई. के माध्यम से डेंगू के डेंगू के डायग्नोसिस, निगरानी, प्रयोगशाला परीक्षण एवं रोकथाम से सम्बंधित अधतन प्रोटोकाल्स पर क्षमतावर्धन किया जा रहा है, जिससे डेंगू के मरीज को गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा प्रदान कर उसकी जान बचाई जा सके। यह परियोजना कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व के तहत विश द्वारा जी.एस.के. कंज्यूमर हेल्थकेयर के मिशन हेल्थ कार्यक्रम के सहयोग से क्रियान्वित कि जा रही है।
कार्यशाला में विशेषज्ञ चिकित्सक डॉ निशांत सक्सेना नें बताया कि डेंगू के शुरुआती लक्षणों में रोगी को तेज ठण्ड लगती है, सिरदर्द, कमरदर्द और आँखों में तेज दर्द हो सकता है, इसके साथ ही रोगी को लगातार तेज बुखार रहता है। इसके अलावा जोड़ों में दर्द, बैचेनी, उल्टियाँ, लो ब्लड प्रेशर जैसी समस्याएँ हो सकती हैं। डेंगू के उपचार में यदि देरी हो जाये तो यह डेंगू हेमरेजिक फेवर का रूप ले लेता है जो अधिक भयावह होता है। डेंगू बुखार के लक्षण दिखने पर तुरंत अस्पताल जाना चाहिए नहीं तो यह लापरवाही रोगी की जान भी ले सकती है। डेंगू से बचाव के लिए अभी तक कोई टीका नहीं है, इसलिए इसके बचाव के लिए हमारी सजगता और भी जरूरी हो जाती है।
राजा दशरथ मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य प्रो. (डॉ.) विजय ने बताया कि लोगो की यह भ्रान्ति दूर होनी चाहिए कि प्लेटलेट कम होने का मतलब डेंगू ही है। अन्य बिमारियों में भी प्लेटलेट कम हो सकते हें डेंगू के इलाज के लिए भारी भरकम इलाज एवं महँगी दवाइयों की आवश्यकता नही है
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ एस. पी. बंसल. ने बताया कि डेंगू एक आम संक्रामक रोग है जो एडीज नमक मच्छर के काटने से फेलता है। डेंगू से बचाव हेतु लोगों का जागरूक होना इलाज होने से ज्यादा आवश्यक है। उन्होंने विश फाउंडेशन को धन्यवाद देते हुए कहा कि इस समय डेंगू की कार्यशाला को आयोजित करना बहुत आवश्यक है क्योंकि इस बिमारी के प्रकोप का अनुकूल समय शुरू होने वाला है। कार्यशाला का संचालन विश संस्था के कार्यक्रम प्रबंधक अंजुम गुलवेज नें किया।
चिकित्सकों को मिले खास टिप्स-
- बुखार का कोई भी केस आए, सीबीसी जांच अवश्य करवाएं।
- डेंगू के मरीज के पर्चे पर बरतने वाली सावधानियां अवश्य लिखें।
- बुखार के चैथे से सातवें दिन में विशेष निगरानी व सावधानी रखें।
- बीपी, शुगर और गर्भवती महिलाओं के लिये मानक वैज्ञानिक पद्धति का इलाज दें।अगर मां को डेंगू है तो नवजात बच्चे को भी डेंगू हो सकता है, यह सूचना परिजनों को अवश्य दें।
- मरीज के इलाज के साथ उसके काउंसिलिंग पर ज्यादा ध्यान होना चाहिए।
- अनावश्यक एंटीबायोटिक का इस्तेमाल न करें।
- जब तक आवश्यक न हो तब तब आईवी फ्लूड का इस्तेमाल न हो।
- मायोकार्डिटीज की अवस्था में जान बचने की गुंजाइश कम होती है, यह अवश्य बता दें।
- मरीज किसी ग्रुप के डेंगू से पीड़ित है उसके पर्चे पर लिख दें।
- सामान्यतया पैरासिटामाल और नार्मल सैलाइन का ही इलाज में इस्तेमाल हो।
- मरीजों का यह भ्रम खत्म करें कि डेंगू के हर मामले में प्लेटलेट्स चढ़ाने की आवश्यकता होती है।