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दिलकुशा महल

नवाब शुजाउद्दौला के दिलकुशा महल को बेचने पर आमादा नारकोटिक्स के हाकिम

नवाब शुजाउद्दौला के वारिस मामले को लेकर जायेंगे कोर्ट

1953 में किया गया पट्टा हो चुका है रद्द

अयोध्या। अवध के नवाबकालीन धरोहरों में से प्रमुख नवाब शुजाउद्दौला के आलीशान आवास को नारकोटिक्स के आला हाकिम बेचने पर आमादा हैं। इसके लिए गोवा की एक पार्टी से सौदा की बाबत तानाबाना बुना जा रहा है। प्रकरण के उजागर होने के बाद नवाब के वारिस प्रिंस एजाज बहादुर ने ऐतिहासिक महल को बेचने से रोकने के लिए न्यायालय की शरण लेने का मन बना चुके हैं। इसके लिए वह फैजाबाद जिला न्यायालय में सोमवार को याचिका दायर करेंगे।
बताते चले कि अवध के नवाब शुजाउद्दौला ने कोलकाता से फैजाबाद आने के बाद केवड़ा और बबूल के जंगल को साफ कराकर फैजाबाद शहर को बसाया था। उन्होंने तमाम आलीशान महल, मकबरे और स्मारक भी निर्मित करवाया था तथा ईरान से लोगों को बुलाकर यहां बसाया था। ईरानी वास्तु शिल्प् पर बने विशालकाय भवनों के कारण फैजाबाद पूरे विश्व में अपनी अलग पहचान बना चुका था।

दिलकुशा महल

नवाब शुजाउद्दौला की मौत के बाद उनकी बेगम उम्मतुल जोहरा जिन्हें लोग बहू बेगम के नाम से जानते थे से नवाब के पुत्र अशफाउद्दौला से नहीं पटी नतीजतन अवध की राजधानी फैजाबाद से लखनऊ स्थानान्त्रित कर दी गयी। इसी के बाद नवाब अशफाउद्दौला ने ब्रितानी अधिकारियों से सांठ गांठ कर फैजाबाद के खजाना को लुटवा लिया था। इस बींच अंग्रेजी हुक्मरानों और बहूबेगम के मध्य एक करार हुआ जिसके तहत नवाब के भवनों और सम्पत्ति से होने वाली आय से बहू बेगम की रियाया को वसीका दिया जायेगा। जबतक बहू बेगम जीवित रहीं इस करार पर अंग्रेजी हुकूमत अमल करती रही परन्तु जब 1816 में उनका इंतकाल हुआ तो अंग्रेज अधिकारी अपने अहद से पलट गये। नतीजतन मोती महल, खुर्द महल, दिलकुशा महल, कलकत्ता फोर्ट आदि में रहने वाली रियाया कौड़ी-कौड़ी की मोहताज हो गयीं। सैकड़ों की संख्या में नवाब की बेगमें दाने-दाने को तरसने लगी यही नहीं तवारीख गवाह है कि हालात इतने बदतर हो गये कि खाने की दूकानों पर बेगमे जाकर सामानों को लूट लेती और अपनी क्षुधा बुझाती। बहू बेगम के इंतकाल के बाद अंग्रेज अधिकारी नवाब खानदान को अपमानित करने की रणनीति के तहत नवाब शुजाउद्दौला के महल दिलकुशा पर कब्जा कर लिया और उसमें केन्द्रीय नारकोटिक्स विभाग का कार्यालय खुलवाकर उसका नाम अफीम कोठी रख दिया। आजादी मिलने के बाद इस वक्फ सम्पत्ति को 1953 में वक्फ विभाग के कानूनगो ने नारकोटिक्स विभाग को पट्टा कर दिया था।

कोर्ट के आदेश पर दिलकुशा महल का कराया जा चुका है कमीशन: प्रिंस एजाज

प्रिंस एजाज बहादुर

नवाब के वारिस प्रिंस एजाज बहादुर बताते हैं कि नारकोटिक्स विभाग को किया गया पट्टा खारिज हो चुका है तथा अफीम की खेती फैजाबाद में बंद हो जाने के बाद यह दफ्तर पर जनपद बाराबंकी में कई दशक पहले शिफ्ट किया जा चुका है। उन्होंने बताया कि अवध के नवाब की सम्पत्ति होने के कारण दिलकुशा महल पर अपना हक जाहिर करने की एक याचिका हाईकोर्ट लखनऊ बेंच में उन्होंने दायर किया जिसपर कोर्ट ने स्टे दे रखा है यही नहीं कोर्ट के आदेश पर दिलकुशा महल का कमीशन भी कराया जा चुका है।केन्द्रीय नारकोटिक्स विभाग के हाकिम जिन्हें इस सम्पत्ति को बेचने को कोई हक हांसिल नहीं है गुपचुप तरीके से गोवा की एक पार्टी से सौदा कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह नवाबों की सम्पत्ति है और वह उसे किसी सरकारी हाकिम को बेंचने की इजाजत नहीं देंगे और इसीलिए मामले को कोर्ट के सामने ले जा रहे हैं।

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