25 नवम्बर स्थापना दिवस पर विशेष
लखनऊ। शक्ति और शाक्त चिन्तन, अनुशीलन और आराधन का अद्वितीय स्थल है लखनऊ स्थित 51 शक्तिपीठ तीर्थ। 51 शक्तिपीठों की पावन रज से सुशोभित यह तीर्थ शक्ति साधकों और उपासकों की अगाध आस्था का केन्द्र बन है। शक्ति और भक्ति का समन्वय यहाँ के कण-कण में विद्यमान है। तीर्थ की संकल्पना से लेकर सृजन तक की सम्पूर्ण विषय-वस्तु, शास्त्रोचित, सिद्धान्तपरक, व्यावहारिक और ज्ञान-विज्ञान सम्मत है। परमश्रद्धेय पं. रघुराज दीक्षित ’मंजु’ और उनकी सहधर्मणी श्रीमती पुष्पा दीक्षित का एक पावन विचार और संकल्प विगत 19 वर्षों में साकार होकर शक्ति दिव्य एवं विलक्षण तीर्थ के रूप में अपनी पहचान स्थापित कर चुका है। शक्ति पीठ तीर्थ में प्रवेश करते ही दाहिने तरफ नर्मदेश्वर महादेव विद्यमान हैं। तदुपरान्त गर्भगृह का प्रवेश द्वार है। प्रवेश द्वार पर विघ्नहर्ता गणेश स्थापित हैं। द्वार पर आमने-सामने स्थापित हाथी के मस्तकयुक्त सूँड़ आकर्षित करते हैं। द्वार की पाँच सीढ़ियाँ चढ़कर गर्भगृह में प्रवेश करते ही सम्मुख तपस्विनी माता पार्वती की भव्य मूर्ति के दर्शन होते हैं। 6 स्तम्भों पर टिके गर्भगृह के अयनों के निकट 51 शक्तिपीठों के चिह्न व विवरण दिए गए हैं। ऊपरी भाग में दस महाविद्याओं के ध्यान चित्र और यंत्र बने हैं। मुख्य द्वार के पीछे भीतर ऊपर की ओर साधना लीन राम कृष्ण देव और माँ शारदा के चित्र लगे हैं।
गर्भ गृह में मूल शक्ति त्रिकोण के साथ सर्व सिद्धेश्वरी तपस्विनी माँ पार्वती विद्यमान हैं। दाहिने ओर रक्षारोही भैरव और बाईं ओर ध्वजारोही हनुमान स्थापित हैं। गर्भ गृह के विग्रह स्थल के दाहिनी ओर 51 शक्तिपीठों से लाई गई रज के दर्शन होते हैं। जबकि बाईं ओर राम और अर्जुन की शक्तिउपासना के चित्र लगे हैं। प्रथम तल पर जाने के लिए बाहर से 35 सीढ़ियाँ चढ़कर मुख्य प्रतिमा माँ महालक्ष्मी की है। दाहिनी ओर माँ सरस्वती तथा र्बाइं ओर माँ महाकाली विद्यमान हैं। यहाँ मूर्ति, रज और भैरव के साथ दाहिनी ओर इन्द्राक्षी देवी, भूतधात्री, अम्बिका, कालिका (कोलकाता), अपर्णा, भ्रामरी (पश्चिम बंगाल), त्रिपुर सुन्दरी, कपालिनी, सावित्री तथा महामाया विद्यमान हैं। जबकि र्बाइं ओर महिषमर्दिनी, देवगर्भा, कालिका (वर्धमान), चन्द्रभागा, विमला, कामाख्या, नर्मदा, काली, सर्वानंदकरी और जयंती स्थापित हैं। इस तल पर 20 शक्ति पीठों के दर्शन होते हैं। द्वितीय तल पर यंत्र शक्ति त्रिकोण विंध्याचल अवस्थित है। यहाँ मुख्य प्रतिमा माँ विंध्यवासिनी की है। उनके सम्मुख महालक्ष्मी यंत्र, दाहिनी ओर महासरस्वती यंत्र तथा बाईं ओर महाकाली यंत्र है। इस तल पर मूर्ति, रजऔर भैरव के साथ दाहिनी ओर यशोरेश्वरी, दाक्षायिणी, ललिता, महालक्ष्मी नन्दनी, महामाया, भ्रामरी (महाराष्ट्र), फुल्लरा, अवन्ती, सिद्धिदा तथा र्बाइं ओर गायत्री, मांगल्य चंडिका, भवानी, बहुला, कुमारी, महादेवी, शर्वाणी, शिवानी, त्रिपुरमालिनी और देवी जयदुर्गा (वैद्यनाथ धाम) अवस्थित हैं।
तृतीय तल पर शैव त्रिकोण काशी अवस्थित है। यहाँ मुख्य प्रतिमा माँ अन्नपूर्णा काशी उनके सम्मुख महालक्ष्मी दिव्यास्त्र, दाहिनी ओर महासरस्वती दिव्यास्त्र तथा बाईं ओर महाकाली दिव्यास्त्र विद्यमान हैं। इस तल पर दाहिनी ओर सुनन्दा, महिषमर्दिनी, उमा, विमला, कोटवीसा, पूर्णागिरी के साथ काशी के भरण-पोषण हेतु अन्नपूर्णा से याचना करते हुए श्री विश्वनाथ अवस्थित हैं। जबकि बाईं ओर विशालाक्षी, जयदुर्गा (कर्नाटक), गंडकी, विश्वेशी, वाराही, नारायणी के अलावा दिव्य श्रीयंत्र स्थापित है।
इस प्रकार प्रथम, द्वितीय और तृतीय तल पर क्रमशः 20, 20 और 11 शक्तिपीठों के दर्शन होते हैं। चतुर्थ तल पर इसी वर्ष भव्य समारोहपूर्वक दस महाविद्याओं की स्थापना की गई है। इस तल पर सामने बगलामुखी, उनके सम्मुख शिवजी, दाहिनी ओर तारा, मातंगी, छिन्नमस्ता, कमला और यज्ञकुण्ड तथा बाईं ओर त्रिपुर भैरवी, षोडषी, भुनेवश्वरी, धूमावती और काली विद्यमान हैं। शीर्ष पंचम तल पर स्फटिक के शिवलिंग की स्थापना के संकल्प को विगत वर्ष साकार किया गया। शीर्ष तल पर सप्तऋषियों मध्य स्फटिक शिवलिंग रजत त्रिशूल और द्वार सम्मुख स्वर्णिम आभा युक्त विशालकाय नंदी विशेष आस्था और आकर्षण का केंद्र है। इस तीर्थ को पूर्णता प्रदान करने के निमित्त गोशाला, यज्ञशाला, पुस्तकालय, शक्ति-साहित्य प्रकाशन केन्द्र तथा निःशुल्क चिकित्सा शिविर आदि का संचालन किया जा रहा है। आज स्थापना दिवस के अवसर पर तीर्थ को अद्भुत साज-सज्जा से अलंकृत किया गया है। आज समस्त विग्रहों के विशेष श्रृंगार के साथ ही संध्याकाल में प्रख्यात गायक किशोर चतुर्वेदी और गायिका स्वाति रिज़वी के मधुर कंठों से भजन के स्वर गुंजित होंगे। तत्पश्चात समस्त साधकों और श्रद्धालुओं को भोजन-प्रसाद ग्रहण कराया जायेगा।
-यदुनाथ सिंह मुरारी