पंचनद घाटी में हर शहीद के गांव से मिट्टी लाकर इस संविधान स्तम्भ को विकसित किया जाएगा.
ब्यूरो। पंजाब में फिरोजपुर जिला मुख्यालय से करीब 10 किलोमीटर दूरी पर बने भारत-पाक बॉर्डर हुसैनीवाला पर ये वही जगह है, जहां पर शहीद भगत सिंह के अलावा सुखदेव, राजगुरु और बटुकेश्वर दत्त जैसे आजादी के दीवानों की समाधि है. यहां पर वह पुरानी जेल भी है, जहां भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को लाहौर जेल में शिफ्ट करने से पहले रखा गया था.
इस क्रांतिवीरों की शहादत के बाद उनके पार्थिव शरीर के साथ अंग्रेज किस बेरहमी से पेश आए, यह जगजाहिर है. दहशतजदा फिरंगी हुकूमत ने तयशुदा तारीख से एक दिन पहले 23 मार्च 1931 को शाम 7 बजे तीनों क्रांतिकारियों को फांसी दे दी. उसके बाद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के शवों के टुकड़े-टुकड़े कर अंग्रेजों ने पिछली दीवार तोड़कर सतलज दरिया के किनारे लाये और रात के अंधेरे में यहां बिना किसी रीति रिवाज के चुपके से जला दिया था
.गौरतलब है कि सतलुज नदी के किनारे बसा गांव हुसैनीवाला बंटवारे के वक्त पाकिस्तान के हिस्से में चला गया था. जन भावनाओं को देखते हुए आजादी के 14 साल बाद 17 जनवरी 1961 को एक समझौता के तहत पाकिस्तान ने 12 गांवों के बदले में इस गांव को लौटाया था. सन् 1968 में यहां इन तीनों शहीदों की मूर्ति स्थापित कर स्मारक स्थल का रूप दिया गया.
बिट्रिश पालिर्यामेंट में 8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह के साथ बम फेंक कर धमाका करने वाले बटुकेशवर दत्त का निधन 19 जुलाई 1965 को दिल्ली में हुआ तो उनकी अंतिम इच्छा का सम्मान करते हुए अंतिम संस्कार भी इसी स्थान पर किया गया. इसी जगह पर बीके दत्त की समाधि के साथ भगत सिंह की मां विद्यावती की भी समाधि स्थल आने वालों को बरबस याद दिलाती है.
आजादी आंदोलन पर दो दशक से अधिक समय से काम कर रहे चंबल संग्रहालय के संस्थापक शाह आलम इसी शहादत स्थल की मिट्टी लेकर चंबल पहुंचे. जहां सैकड़ों उपस्थित समुदाय ने इस चंदन माटी को नमन किया. इस दौरान शाह आलम ने कहा कि शहीदों ने देश की आज़ादी के लिए सब कुछ कुर्बान कर दिया. उनके बलिदान की कीमत पर देश आजाद हुआ. पंचनद घाटी के ज्ञात अज्ञात क्रांतिवीरों की इस धरा पर हुसैनीवाला गांव से लाई मिट्टी के साथ देश के और भी शहादत स्थलों से लाई मिट्टी की बुनियाद पर देश का पहला संविधान स्तंभ पांच नदियों के संगम पर बनेगा.
बताते चलें कि पंचनदा पर चंबल जनसंसद भी होता रहा है. आजादी के पहले और आजादी के बाद सबसे ज्यादा उपेक्षित रहे पंचनद घाटी में हर शहीद के गांव से मिट्टी लाकर इस संविधान स्तम्भ को विकसित किया जाएगा. संविधान स्तम्भ का उद्देश्य बताते हुए शाह आलम ने बताया कि चम्बल का क्षेत्र भी आजादी आंदोलन से बहुत गहरे से जुड़ा हुआ है जिसके विषय में अपने शोध कार्य और चम्बल के बीहड़ों की 2800 किमी की साइकिल यात्रा के दौरान मुझे नजदीक से जानने और देखने का अवसर मिला. लिहाज़ा यह फैसला लिया कि अमर शहीदों के पवित्र स्थानों से मिट्टी लाकर चम्बल में संविधान स्तम्भ का निर्माण यह संदेश देगा कि भारत के शहीदों ने विभिन्न जातियों धर्मों आदि के साथ रहते हुए अपनी एक मात्र पहचान भारतीयता के लिए अपने प्राण निछावर करके की. आजाद भारत के संविधान के जन्म हेतु भूमि तैयार की और भारत का संविधान अपनी नीतियों जिनमें समानता स्वतंत्रता और बंधुत्व की भावना निहित है. इसके माध्यम से अनवरत शहीदों की उसी भावना को चरितार्थ कर रहा है एवं इसके विषय में जन जन को जागरूक किए जाने की ज़रूरत है.