युवा अंतर्दृष्टि जागरूकता कार्यशाला का हुआ आयोजन
अयोध्या। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन व सिफ़्सा के संयुक्त तत्वधान में परमहंस शिक्षण प्रशिक्षण महाविद्यालय अयोध्या के 40 छात्र छात्राओं का दो दिवसीय युवा अंतर्दृष्टि जागरूकता कार्यशाला शरू हुई । इस प्रशिक्षण कार्यशाला में युवाओं के विभिन्न मनोस्वास्थ्य समस्याओं का निदान व समाधान का व्यवहारिक प्रशिक्षण दिया गया । एन एस एस वॉलन्टिअर्स केन्द्रित इस कार्यशाला में एन एच एम व सिफ़्सा के प्रमुख किशोर व युवा मनोपरामर्शदाता डॉ आलोक मनदर्शन ने किशोर व युवा के मनोगतिकीय पहलू का विश्लेषण करते हुए युवा पलायन व्यक्तित्व विकार या अवायडेंट पर्सनालिटी डिसऑर्डर का मनोविविश्लेशण किया।डॉ मनदर्शन ने बताया कि इस विकार से ग्रषित युवा दूसरों द्वारा स्वीकार न किये जाने के डर से किसी भी नए व्यक्ति से मिलने में या उससे बात करने में कतराते हैं. ऐसे में प्रतिभा और योग्यता होने के बावजूद ये युवा जीवन में सामजिक व व्यावसायिक क्षेत्र में प्रायः विफल रहते हैं.
कारण
इस प्रकार की दब्बू और नकारात्मक प्रवृत्ति के पीछे कुछ हद तक आनुवंशिक गुण भी उत्तरदायी हैं. इसके अलावा व्यक्तित्व विकास में बाधक पारिवारिक माहौल और जीवन में जुड़ीं परिस्थितियां व तल्ख़ तजुर्बे भी व्यक्ति को इस रोग से ग्रस्त कर सकते हैं. यदि बच्चे के माता या पिता उसके हर काम में कमीं निकलते हैं और उसकी तुलना दूसरों से करते है तो बच्चे में हीन भावना घर कर जाती है। माता पिता में परस्पर झगड़ा होना भी कारण होता है।
लक्षण
आत्मविश्वास में कमी हीन भावना का मुख्य लक्षण होता है। * आत्मविश्वास की कमी के चलते ऐसे रोगी हमेशा अपने हुनर, गुण, व उपलब्धियों को अनदेखा कर देते हैं या उन्हें पहचानने से इंकार कर देते हैं। * ऐसे व्यक्ति निर्णय लेने में असमर्थ हो जाते हैं और किसी भी नए काम की शुरुआत से पहले ही उन्हें असफलता या किसी बुरी घटना के होने की चिंता सताने लगती है।* वे हीनभावना से ग्रस्त रहते हैं और मन ही मन अपने को दूसरों से नीचा समझते हैं। * ऐसे में ये रोगी अन्य लोगों से मिलने पर या पूर्ण रुप से खुलकर बातचीत करने में संकोच महसूस करते हैं। * दूसरों से बात करते समय ये रोगी हमेशा दुविधा में रहते हैं और अपनी बात प्रभावशाली ढंग से नहीं रख पाते हैं। * दूसरे लोगों द्वारा की गयी सकरात्मक बातों को भी ये रोगी अपने ख़िलाफ़ गंभीर नकारात्मक टिप्पणी समझते हैं और मन ही मन बुरा मान जाते हैं। * ऐसे रोगी परिवार के सुरक्षित माहौल में बने रहना चाहते हैं और नौकरी भी ऐसी करते हैं जिसमें चुनौतियां कम से कम हो।* ऐसे लोग अपने रंग रूप, बोलचाल, कद-काठी और अपने कपड़ों से हमेशा असंतुष्ट रहते हैं।
इलाज
* इस व्यक्तित्व के विकार के इलाज में मनोचिकित्सा का प्रमुख स्थान है. मनोचिकत्सा के दौरान परिजनों की सहायता से रोगी को उसकी संबेदनशीलता को पहचानना व उससे निपटने की विधियाँ सिखाई जाती हैं. * परिज़न कि सहायता से रोगी को सकारात्मक दृष्टिकोण उत्पन्न करने व अपनी खूबियों को पहचान कर उसमें प्रवीणता हासिल करने के लिए प्रेरित किया जाता है। * माता पिता को बच्चे की कमियों को अनदेखा कर सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए ट्रेनिंग दी जाती है। इसितरह माता पिता में आपसी मतभेद व झगड़े को बच्चे की अनुपस्थिति में ही निपटना चाहिए। * बच्चे ऐसे दोस्तों के बीच ज़्यादा समय बिताए जो दूसरों की कमियां नहीं निकलते व दूसरों की सुनते भी हैं* कई बार रोगी में व्याप्त घबराहट, डिप्रेशन, और कुंठा को दूर करने की लिए दवाओं का उपयोग किया जाता है। कार्यशाला की अध्यक्षता प्राचार्य डॉ सुनील तिवारी तथा नोडल अधिकारी डॉ अमरजीत पाण्डेय व कार्यक्रमाधिकारी डॉ सुधांशु द्वारा संयोजन किया गया।कार्यशाला में छात्र छात्राओं सहित महाविद्यालय परिवार उपस्थित रहा।