रिट्रो इवैल्यूएशन सिन्ड्रोम-आरईएस से बचें परीक्षार्थी : डा. आलोक मनदर्शन

by Next Khabar Team
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-आरईएस का अगले प्रश्नपत्र पर पड़ता है दुष्प्रभाव, एग्जाम-स्ट्रेस का ही रूप है आरईएस

अयोध्या। बोर्ड-परीक्षा पेपर देकर आने के बाद अधिकांश छात्र अपने उस दिन के प्रश्न पत्र के प्राप्तांक का आंकलन करना शुरू कर देते हैं। इतना ही नहीं अपने मित्रों से भी उनके सम्भावित प्राप्तांकों का तुलनात्मक आंकलन करने लगते हैं। यह भी इग्जाम-स्ट्रेस का ही एक लक्षण है जिसे मनोविश्लेषण की भाषा में रिट्रो-इवैलुएशन सिन्ड्रोम या आर ई एस कहा जाता है ।

दुष्प्रभाव :

इस सिन्ड्रोम का दुष्प्रभाव यह होता है कि अगले पेपर की तैयारी के लिए जिस शान्त व एकाग्र मनोदशा की आवश्यकता होती है, उससे मन विचलित हो सकता है और समग्र मनोयोग से अगले प्रश्न पत्र की तैयारी में खलल पैदा कर सकता है, क्योंकि रिट्रो-इवैल्युएशन या पिछले प्रश्न-पत्र के संभावित प्राप्तांक से मन अति-उत्साहित या ओवर-कॉन्फिडेंट या अंडर-कॉन्फिडेंट या हताशा व आत्मग्लानि से भर सकता है ।

सलाह :

डॉ आलोक मनदर्शन के अनुसार प्रत्येक पेपर के पश्चात प्राप्तांक का स्वमूल्यांकन व तुलनात्मक-उहापोह व द्वन्द में न पड़ कर अगले पेपर की तैयारी में समग्र रूप से जुट जाना चाहिये । परिजन भी छात्र से सम्भावित प्राप्तांक के बारे में ज्यादा पूछताछ व तुलनात्मक उदाहरण से बचें और यदि छात्र ऐसा करता है तो उसे ऐसा करने से हतोत्साहित करें।

पढ़ाई के साथ मनोरंजक के छोटे-छोटे ब्रेक व खुशमिजाजी के माहौल से भावनात्मक- सकारात्मकता व आत्मविश्वास के मनोरसायन डोपामिन व सेराटोनिन के संचार से परीक्षा-परफॉर्मेस सुगम व बेहतर होता है।

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