अयोध्या। जनवादी लेखक संघ, फैजाबाद द्वारा मुंशी प्रेमचंद की जयंती के अवसर पर एक गोष्ठी का आयोजन आभा होटल, मोतीबाग़ के सभागार में किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कवि स्वप्निल श्रीवास्तव ने कहा कि प्रेमचंद की रचनाओं के केंद्र में किसान और स्त्री का जीवन हमेशा मौजूद रहा है। वे उन विसंगतियों को उजागर करते हैं जिनके कारण भारतीय समाज में हाशिए पर रहने वाला वर्ग सदैव वंचना की स्थिति में रहा है।
उन्होंने कहा कि यह बहुत महत्वपूर्ण है कि इन वर्णनों के बीच भी प्रेमचंद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को रेखांकित करना नहीं भूलते। उनके अनुसार यह उल्लेखनीय है कि आज भी ज़मीनी रचनाकारों को प्रेमचंद की परम्परा का रचनाकार कहा जाता है। उर्दू के वरिष्ठ आलोचक मो. ज़फ़र ने कहा कि प्रेमचंद अपने शुरुआती दौर में उर्दू में ही लेखन करते थे, इस तथ्य की पुष्टि करते हुए प्रेमचंद की उर्दू की प्रमुख रचनाओं का परिचय भी उनके द्वारा दिया गया। मो. ज़फ़र के अनुसार प्रेमचंद अपनी अफ़सानानिगारी में तरक़्क़ीपसंद ख़यालात के लिए मशहूर रहे हैं। उनके मुख़्तसर अफ़सानों में अवाम की आवाज़ बुलंद तौर पर मौजूद रही है। प्रेमचंद की ज़बान साफ़ और शफ़्फ़ाक थी और इसीलिए वे मशहूर भी हुए।
वरिष्ठ लेखक आर डी आनंद ने कहा कि प्रगतिशील आंदोलन से प्रेमचंद का सीधा संबंध था। प्रेमचंद के लेखन का प्रारंभ व्यक्ति के जीवन के मध्यममार्ग और मानवतावाद को स्थापित करने से होता है। अपने साहित्यिक जीवन के अगले हिस्से में वे गांधीवाद से प्रभावित होते हैं और उसके बाद वे यथार्थवाद की तरफ़ उन्मुख होते हैं। उन्होंने कहा कि एक रचना लिखने के लिये भी गहरी सृजनात्मक पीड़ा से होकर गुजरना पड़ता है, प्रेमचंद इन अनुभूतियों के बहुत गहरे स्तरों से गुजरे थे। प्रेमचंद अपने समय से बहुत आगे की चेतना में जी रहे थे और जीवन-दर्शन को अभिव्यक्त कर रहे थे। आर डी आनंद ने कहा कि प्रेमचंद की दलित चेतना को समझने के लिए ठाकुर का कुआँ, कफ़न और सद्गति जैसी कहानियों को बार-बार पढ़ा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि दलित साहित्यकारों ने प्रेमचंद की कई कहानियों को ठीक से समझा नहीं, उनके अनुसार भोगे हुए यथार्थ की जैसी अभिव्यक्ति प्रेमचंद के यहाँ है वह अत्यंत महत्वपूर्ण है।
संचालन करते हुए डॉ विशाल श्रीवास्तव ने कहा कि प्रेमचंद दूरदर्शी लेखक थे और इसीलिए उन्होंने आगामी सांस्कृतिक, साम्प्रदायिक और राजनीतिक ख़तरों की पहचान उसी समय कर ली थी। साहित्य को राजनीति के आगे चलकर रास्ता दिखाने वाली मशाल वे यूँ ही नहीं कहते हैं। भारत के किसानों, निम्नमध्यवर्ग और दलितों की स्थितियों का यथार्थ वर्णन करते हुए प्रेमचंद ने सदैव आदर्शवाद को लक्ष्य के रूप में सामने रखा। प्रेमचंद ने आम आदमी की समझ में आने वाली गंगा-जमुनी भाषा का चुनाव किया जिसमें हिंदी के साथ अरबी, फ़ारसी और उर्दू का समावेश था। युवा लेखिका माण्डवी सिंह ने ‘पूस की रात’ कहानी के अंश का अत्यंत प्रभावशाली पाठ किया। वरिष्ठ लेखिका विनीता कुशवाहा ने कहा कि प्रेमचंद अकेले ऐसे लेखक थे जो दलित-वंचित तबके की आवाज़ों को पुरअसर तरीक़े से साहित्य में जगह देते थे।
महिलाओं के जीवन और बीसवीं शताब्दी में उनकी भूमिका पर प्रेमचंद के लिखे को आज पुनः पढ़ने की ज़रूरत है। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद के कथा-साहित्य में स्त्रीचरित्र के व्यापक स्वरूप को अभिव्यक्त किया गया है। प्रेमचंद ग्रामीण जीवन और शहरी जीवन, दोनों का चित्रण करते हैं और उसके अनुरूप स्त्री छवियाँ गढ़ते हैं। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद की कहानियों में वर्णित ज़मीनी यथार्थ आज भी सबसे अधिक प्रभावित और प्रेरित करता है।
युवा कवि और प्राध्यापक प्रदीप कुमार सिंह ने कहा कि हिन्दी का कथा-संसार प्रेमचंद के बिना अधूरा है। प्रेमचंद के साहित्य के केंद्र में रहे किसान, स्त्री, दलित और मज़दूर आज भी संकट में हैं। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद की यह बात आज भी सच है कि राज्य सदैव पूँजीपतियों और महाजनों के लिए काम करता है, किसान और मज़दूर के लिए नहीं।
प्रेमचंद ने स्त्रियों की आर्थिक स्वतंत्रता की भी बात की और कहा कि इसके बिना वे नेतृत्व की भूमिका में नहीं आ सकतीं। प्रेमचंद मुखर और बोलने वाली स्त्री की छवि गढ़ रहे थे, जो स्वावलंबी हो। वरिष्ठ कवयित्री ऊष्मा वर्मा ने कहा कि प्रेमचंद ने सामाजिक विसंगतियों को केंद्र में रखा और आज यह ज़रूरत है कि उन्हें ठीक से पढ़ा जाए। उन्होंने कहा कि आज पुनः सामन्तवाद और साम्राज्यवाद के मुहाने पर हम खड़े हैं, ऐसे में प्रेमचंद के साहित्य की ज़रूरत बढ़ गई है। कार्यकारी सचिव मुज़म्मिल फ़िदा ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि प्रेमचंद हिन्दी और उर्दू के दोआब थे। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद हिन्दी में बाद में आये, वे प्रारंभिक रूप से उर्दू के ही लेखक थे।
कार्यक्रम संयोजक सत्यभान सिंह जनवादी ने आये हुए अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कहा कि शायद ही समाज का कोई वर्ग हो जिसने प्रेमचंद को न पढ़ा हो, उनकी समाज में व्यापक स्वीकृति है और आज भी लोग तलाशकर उनकी रचनाएँ पढ़ते हैं।
इस गोष्ठी में राजीव श्रीवास्तव,जयप्रकाश श्रीवास्तव,अखिलेश सिंह,माहिर सर,कॉम रामदुलारे यादव,पूजा श्रीवास्तव,रेखा शीतल,रीता शर्मा,समाजवादी महिला सभा की जिलाध्यक्ष सरोज यादव,शारदा आनंद,कुमकुम भाग्या, गंगाराम भगत,सीताराम वर्मा,ज्ञान यादव,महावीर पाल,कॉम रामजी राम यादव,समाजवादी पार्टी के प्रांतीय नेता बाबूराम गौड़,नूर बेगम,यासीन बेग,अजय बाबा,रामजी तिवारी,वाहिद अली, सहित संगठन के सदस्य एवं साहित्यप्रेमी, समाजसेवी एवं संस्कृतिकर्मी उपस्थित रहे।